महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपनी पुरानी ‘माइक्रो ओबीसी (BJP’s Micro OBC Strategy) रणनीति को फिर से सक्रिय कर रही है। इस बार बीजेपी की नजर मराठा समुदाय की प्रतिक्रिया से बचने और ओबीसी वोट बैंक को साधने पर है। मराठा आंदोलन की पृष्ठभूमि में बीजेपी ने ओबीसी की छोटी-छोटी जातियों पर ध्यान केंद्रित कर अपनी चुनावी रणनीति को धार देने का फैसला लिया है।
बीजेपी ने ‘माइक्रो ओबीसी (BJP’s Micro OBC Strategy) के जरिए महाराष्ट्र के 175 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं तक पहुँचने की योजना बनाई है। इसके तहत बड़ी ओबीसी जातियों के बजाय ऐसी छोटी-छोटी जातियों को प्राथमिकता दी जा रही है जिनकी संख्या सीमित है, लेकिन अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली वोट बैंक रखती हैं।
महायूति सरकार का ओबीसी जातियों की सूची में विस्तार
बीजेपी ने महायूति सरकार के माध्यम से ओबीसी समुदायों के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। हाल ही में, सात नई ओबीसी जातियों को केंद्रीय सूची में शामिल किया गया है और क्रीमी लेयर की सीमा को 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया गया है। इन जातियों में ‘लोध, बदगुजर, सूर्यवंशी गुज्जर, डांगरी’ जैसी जातियाँ शामिल हैं। इस कदम से बीजेपी का इरादा विदर्भ, उत्तरी महाराष्ट्र, और मराठवाड़ा के सीमावर्ती निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी पकड़ को और मजबूत करना है।
‘MADHAV’ फॉर्मूला से आगे बढ़ने का निर्णय
बीजेपी का ओबीसी वोट बैंक लंबे समय से ‘माधव (MADHAV)’ फॉर्मूला पर आधारित था, जिसमें माली, धनगर और वंजारी जैसी प्रमुख जातियाँ शामिल थीं। परंतु बदलते सामाजिक समीकरणों को देखते हुए बीजेपी ने अपने वोट बैंक का दायरा बढ़ाने का फैसला किया है। महाराष्ट्र में ओबीसी की 341 जातियाँ पाई जाती हैं जिनमें से माली, धनगर और वंजारी जैसे समुदाय बड़े समूहों के अंतर्गत आते हैं। लेकिन अब पार्टी ने अन्य ओबीसी समुदायों को भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया है।
बीजेपी के ओबीसी मंच के अध्यक्ष प्रकाश शेंडगे के अनुसार, “मराठा आरक्षण के लिए ओबीसी कोटा में मांग ने ओबीसी समुदायों के भीतर नाराजगी को जन्म दिया है। इस चुनाव में जातीय फैक्टर प्रमुख रहेगा और ओबीसी समुदाय मराठाओं को वोट देने के लिए तैयार नहीं हैं।”
मराठा आरक्षण पर बढ़ते विवाद में ओबीसी वोट बैंक का महत्व
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच आरक्षण की मांग को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। इसका मुख्य कारण मराठा समुदाय के लिए ओबीसी कोटा में आरक्षण की मांग है। जहां एक ओर ‘महा विकास आघाडी (MVA)’ और महायूति (महायुति) दोनों सरकारें सत्ता में रही हैं, वहीं इस चुनाव में दोनों गठबंधनों के बीच कोई सीधी प्रतिस्पर्धा नहीं दिखाई देती है।
विदर्भ के क्षेत्र में जहां मराठा समुदाय का प्रभाव कम है, वहाँ की 62 सीटों पर ओबीसी समुदायों पर आधारित चुनावी मुकाबला होगा। बीजेपी ने तेली, बंजारा, पवार, भोयर, कोमटी, सोनार, गोंड जैसी जातियों के साथ साथ कई छोटी जातियों को अपने पक्ष में करने की रणनीति बनाई है।
मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच इस आरक्षण विवाद ने महाराष्ट्र के सामाजिक ढांचे को प्रभावित किया है। वंचित बहुजन आघाडी (VBA) के प्रमुख प्रकाश आंबेडकर का कहना है, “मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच ध्रुवीकरण से महाराष्ट्र की सामाजिक संरचना प्रभावित हो रही है और यह चुनावी परिणामों को भी प्रभावित करेगा।”
पश्चिम महाराष्ट्र और उत्तरी महाराष्ट्र में धांगर समुदाय का दबदबा
पश्चिम महाराष्ट्र और उत्तरी महाराष्ट्र के क्षेत्रों में धांगर समुदाय का महत्वपूर्ण वोट बैंक है। बीजेपी ने 2014 और 2019 के चुनावों में धांगर समुदाय का समर्थन हासिल किया था। लेकिन धांगर समुदाय अब अनुसूचित जनजाति कोटे में आरक्षण की पुरानी मांग को फिर से उठाने लगा है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बीजेपी इस समुदाय के साथ अपने संबंध बनाए रखने में सफल होती है या नहीं।
क्या बीजेपी की रणनीति मराठा प्रतिक्रिया को साधने में सफल होगी?
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती सभी ओबीसी जातियों को एक छत्र के नीचे लाना है ताकि सभी समुदायों को उनकी मांगों का संतोषजनक जवाब मिल सके। राज्य बीजेपी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा, “हमारी सरकार ने ओबीसी समुदायों के लिए कई फैसले लिए हैं जो उनके सशक्तिकरण के लिए जरूरी हैं।”
महाराष्ट्र की राजनीति में ओबीसी समुदायों का ये व्यापक रणनीति कितनी सफल होती है, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे। परंतु बीजेपी के लिए मराठा प्रतिक्रिया से निपटने में ‘माइक्रो ओबीसी (BJP’s Micro OBC Strategy) रणनीति कितनी कारगर साबित होगी, यह महाराष्ट्र की जनता के निर्णय पर निर्भर करता है।
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