BMC Election: मुंबई के राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। विपक्षी गठबंधन INDIA में दरार की खबरों के बीच उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने बड़ा फैसला लिया है। पार्टी ने ऐलान किया है कि वो बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के आगामी चुनाव अकेले लड़ेगी।
संजय राउत, जो उद्धव ठाकरे के करीबी माने जाते हैं, ने इस निर्णय की पुष्टि की। ये पहली बार है जब शिवसेना (यूबीटी) कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी। इस कदम से महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव होने की संभावना है।
BMC चुनाव में अकेले लड़ने के 5 बड़े कारण
1. शरद पवार की राजनीतिक स्थिति अस्थिर
महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार की स्थिति स्पष्ट नहीं है। 2024 विधानसभा चुनाव में हार के बाद पवार और उनकी पार्टी को लेकर कई अटकलें हैं। कुछ मानते हैं कि शरद पवार और अजित पवार के बीच मेल हो सकता है, जबकि कुछ का कहना है कि अजित पवार के खेमे में ज्यादा नेता जा सकते हैं।
अगर शरद पवार की पार्टी में कोई बड़ा बदलाव होता है, तो इसका सीधा असर शिवसेना (यूबीटी) के प्रदर्शन पर पड़ेगा। इसीलिए उद्धव ठाकरे ने अपनी जमीन पहले से मजबूत करने का फैसला किया है।
2. कांग्रेस का धीमा निर्णय लेने का रवैया
कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच तालमेल की कमी बार-बार सामने आई है। 2019 विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर अंतिम समय तक स्थिति साफ नहीं थी, जिससे दोनों पार्टियों का प्रदर्शन कमजोर रहा।
इसके अलावा, कांग्रेस अभी भी अपनी संगठनात्मक सर्जरी पूरी नहीं कर पाई है। ऐसे में उद्धव ने गठबंधन से अलग होकर अपनी रणनीति पर काम करने का मन बना लिया है।
3. BMC में मजबूत जनाधार बनाए रखना
बृहन्मुंबई महानगरपालिका पर 1995 से शिवसेना का कब्जा रहा है। हालांकि पार्टी में टूट के बाद भी मुंबई में उद्धव ठाकरे की पकड़ मजबूत है। पिछली बार उनकी पार्टी ने 84 सीटें जीती थीं।
गठबंधन में रहने से सीट शेयरिंग की स्थिति में कई मजबूत उम्मीदवार बीजेपी या एकनाथ शिंदे के खेमे में जा सकते थे। इस स्थिति से बचने के लिए उद्धव ने अकेले लड़ने का फैसला लिया है।
4. हिंदुत्व के मुद्दे पर धार देना
शिवसेना की राजनीति हमेशा मराठी मानुष और हिंदुत्व के मुद्दों पर केंद्रित रही है। हालांकि, महाविकास अघाड़ी में शामिल होने के बाद उद्धव ठाकरे इन मुद्दों पर खुलकर नहीं बोल पाए।
हाल ही में, बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर उद्धव के करीबी मिलिंद नार्वेकर के एक पोस्ट पर कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेताओं ने आपत्ति जताई थी। अब गठबंधन से अलग होकर उद्धव हिंदुत्व के एजेंडे को और मजबूती देंगे।
5. भविष्य में राजनीतिक विकल्प खुला रखना
उद्धव ठाकरे ने हाल ही में कहा था कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। अगर बीएमसी चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) का प्रदर्शन अच्छा रहता है, तो भविष्य में गठबंधन के लिए पार्टी के पास ज्यादा विकल्प होंगे।
इसके अलावा, बीजेपी और उद्धव ठाकरे के बीच भी गठबंधन की अटकलें हैं। फडणवीस और उद्धव की मुलाकातें इस संभावना को और मजबूत करती हैं।
क्या ये फैसला शिवसेना (यूबीटी) के लिए फायदेमंद होगा?
उद्धव ठाकरे का अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय महाराष्ट्र की राजनीति में नए समीकरण तय करेगा। BMC चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) का प्रदर्शन यह तय करेगा कि भविष्य में पार्टी कहां खड़ी होगी।
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