मुंबई

Thane Slum Scheme: बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला – ठाणे स्लम स्कीम को मिली हरी झंडी, आदिवासियों की दलील खारिज

Thane Slum Scheme: बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला - ठाणे स्लम स्कीम को मिली हरी झंडी, आदिवासियों की दलील खारिज

Thane Slum Scheme: आज के समय में शहरों का विकास तेजी से हो रहा है, और इसके लिए पुराने ढांचों को नया रूप देना जरूरी हो गया है। इसी कड़ी में ठाणे शहर में एक बड़ी स्लम पुनर्वास योजना (Thane Slum Scheme – ठाणे स्लम स्कीम) चल रही है, जिसे लेकर हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला (Bombay HC Decision – बॉम्बे एचसी निर्णय) सुनाया। यह मामला तब चर्चा में आया जब कुछ लोग, जो खुद को आदिवासी बता रहे थे, इस योजना को रोकने के लिए कोर्ट पहुंचे। उनका दावा था कि यह जमीन उनकी है और उन्हें बिना वजह हटाया जा रहा है। लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि उनके पास जमीन पर मालिकाना हक का कोई सबूत नहीं है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

शुक्रवार को बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस संदीप मार्ने ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट का कहना था कि कुछ लोगों के दावों की वजह से इतने बड़े पैमाने पर चल रही शहरी पुनर्विकास योजना को रोका नहीं जा सकता। ठाणे के पंच पखाड़ी इलाके में 3.39 हेक्टेयर जमीन पर यह स्लम पुनर्वास योजना (Thane Slum Scheme – ठाणे स्लम स्कीम) चल रही है, जिसे 2016 में स्लम रिहैबिलिटेशन एरिया घोषित किया गया था। इस योजना के तहत ज्यादातर झुग्गीवासियों को नए फ्लैट दिए जाएंगे, और इसके लिए डेवलपर जगदाले इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड काम कर रहा है। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इस योजना को चुनौती दी और कहा कि वे इस जमीन के असली मालिक हैं। उनका दावा था कि 1949 और 1950 में राज्य सरकार ने उन्हें यह जमीन दी थी।

याचिकाकर्ताओं के वकीलों, एसआर नरगोलकर और राजेंद्र कांबले ने कोर्ट में तर्क दिया कि यह जमीन गलत तरीके से स्लम क्षेत्र घोषित की गई। उनका कहना था कि यह पहले गैरान (चराई) जमीन थी, और वे इसके वैध कब्जेदार हैं। इसलिए, उन्हें स्लम पुनर्वास योजना (Thane Slum Scheme – ठाणे स्लम स्कीम) के तहत हटाया नहीं जा सकता। लेकिन कोर्ट ने इन दावों को मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने देखा कि उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं था जो यह साबित कर सके कि जमीन वाकई में उनकी है। जस्टिस मार्ने ने अपने फैसले में कहा कि सिर्फ यह कहना कि वे आदिवासी हैं और जमीन पर रह रहे हैं, यह मालिकाना हक का आधार नहीं बन सकता। इसके अलावा, रिकॉर्ड में यह भी साफ हो गया कि 11 अक्टूबर, 2021 को हुए एक बदलाव के बाद यह जमीन अब गैरान नहीं रही और इसे महाराष्ट्र सरकार के नाम पर दर्ज कर दिया गया।

इस मामले में एक और बात सामने आई कि याचिकाकर्ताओं ने योजना के खिलाफ आवाज तब उठाई जब यह अपने अंतिम चरण में पहुंच गई थी। कोर्ट ने इस पर सवाल उठाया कि जब डेवलपर ने काम शुरू किया और योजना आकार लेने लगी, तभी ये लोग सामने आए। कोर्ट का मानना था कि इतने बड़े प्रोजेक्ट को रोकने की कोशिश सिर्फ इसलिए की जा रही है ताकि ये लोग बाकी झुग्गीवासियों से ज्यादा फायदा ले सकें। ठाणे स्लम स्कीम (Thane Slum Scheme – ठाणे स्लम स्कीम) के तहत 2,255 झुग्गियां पहले ही तोड़ी जा चुकी हैं, और कुल मिलाकर 1,848 झुग्गियों का पुनर्वास होना है। ऐसे में कुछ लोगों के दावों की वजह से पूरे प्रोजेक्ट को खतरे में नहीं डाला जा सकता।

कोर्ट ने यह भी साफ किया कि स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी ने पहले ही एक सर्वे किया था, जिसमें ज्यादातर याचिकाकर्ताओं को फ्लैट मिलने की पात्रता मिली है। लेकिन उनकी मांग थी कि उन्हें बाकियों से ज्यादा हिस्सा मिले। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले (Bombay HC Decision – बॉम्बे एचसी निर्णय) में कहा गया कि बिना मालिकाना हक साबित किए उन्हें कोई खास तरजीह नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि इस योजना का मकसद शहर को बेहतर बनाना और झुग्गीवासियों को सम्मानजनक जिंदगी देना है। अगर इसे रोका गया तो यह हजारों लोगों के हितों को नुकसान पहुंचाएगा।

यह फैसला सुनाने के बाद कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट का मानना था कि इतने बड़े पैमाने की स्लम पुनर्वास योजना को सिर्फ कुछ लोगों की इच्छाओं के लिए जोखिम में नहीं डाला जा सकता। इस पूरे मामले से यह साफ होता है कि शहरी विकास के लिए सही योजना और सबूतों का होना कितना जरूरी है। ठाणे जैसे शहर, जो मुंबई के करीब तेजी से बढ़ रहा है, वहां ऐसी योजनाएं लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का एक बड़ा मौका देती हैं।


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