BrahMos Missile: भारत का नाम आज रक्षा क्षेत्र में एक नई ताकत के रूप में उभर रहा है। इसका सबसे बड़ा सबूत है ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos Missile), जो अपनी सटीकता और ताकत के लिए दुनिया भर में मशहूर हो रही है। हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने इस मिसाइल की ताकत को पूरी दुनिया के सामने ला दिया। इस ऑपरेशन में भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सटीक कार्रवाई की और ब्रह्मोस मिसाइल ने अपनी ताकत का लोहा मनवाया। अब कई देश, जिनमें दक्षिण-पूर्व एशिया से लेकर अरब देश शामिल हैं, इस मिसाइल को खरीदने के लिए उत्साहित हैं। आइए, इस मिसाइल की खासियत और इसकी वैश्विक मांग की कहानी को करीब से जानें।
ब्रह्मोस मिसाइल की शुरुआत और ताकत
ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस की साझेदारी का एक शानदार नमूना है। इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी से मिलकर बना है। इसे ब्रह्मोस एयरोस्पेस (BrahMos Aerospace) ने विकसित किया है, जिसमें भारत का रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूस का NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया शामिल हैं। इस मिसाइल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे जमीन, समुद्र, हवा, और यहाँ तक कि पनडुब्बी से भी लॉन्च किया जा सकता है। यह सुपरसोनिक मिसाइल 2.8 मैक की गति से उड़ती है, जो ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना तेज है।
इसकी मारक क्षमता 290 से 500 किलोमीटर तक है, और यह 200 से 300 किलोग्राम वजन का विस्फोटक ले जा सकती है। यह मिसाइल इतनी सटीक है कि यह 10 मीटर की ऊँचाई से लेकर 15 किलोमीटर की ऊँचाई तक उड़ते हुए अपने लक्ष्य को बिल्कुल सही निशाना बना सकती है। ऑपरेशन सिंदूर में इसने अपनी ताकत दिखाई, जब भारत ने आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए इसका इस्तेमाल किया। इस ऑपरेशन ने न केवल भारत की रक्षा क्षमता को उजागर किया, बल्कि ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos Missile) को वैश्विक स्तर पर एक भरोसेमंद हथियार के रूप में स्थापित किया।
ऑपरेशन सिंदूर और ब्रह्मोस की चमक
पिछले कुछ समय से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की खबरें सुर्खियों में थीं। इस दौरान हुए ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। खबरों के अनुसार, भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और कुछ सैन्य सुविधाओं को निशाना बनाया। हालाँकि भारत ने इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की, लेकिन पाकिस्तान की ओर से इस मिसाइल से हुई तबाही की बात सामने आई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में एक नई ब्रह्मोस उत्पादन इकाई के उद्घाटन के दौरान इसकी ताकत का जिक्र किया। इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की रक्षा शक्ति (India’s Defense Strength) की ओर खींचा।
ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित कर दिया कि ब्रह्मोस मिसाइल न केवल तेज और सटीक है, बल्कि युद्ध के मैदान में भी प्रभावी है। इसकी सफलता ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग को और बढ़ा दिया। अब कई देश इस मिसाइल को अपनी रक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाना चाहते हैं, खासकर वे देश जो समुद्री या सीमा विवादों का सामना कर रहे हैं।
फिलीपींस के साथ ऐतिहासिक सौदा
ब्रह्मोस मिसाइल का पहला बड़ा निर्यात सौदा फिलीपींस के साथ हुआ। जनवरी 2022 में फिलीपींस ने भारत के साथ 375 मिलियन डॉलर (लगभग 3225 करोड़ रुपये) का समझौता किया। इस सौदे के तहत भारत ने फिलीपींस को तीन तटीय रक्षा बैटरी देने का वादा किया। पहली बैटरी अप्रैल 2024 में और दूसरी अप्रैल 2025 में फिलीपींस को सौंपी गई। ये मिसाइलें दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए तैनात की जा रही हैं।
फिलीपींस का यह सौदा भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह न केवल भारत की रक्षा निर्यात क्षमता को दर्शाता है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की रणनीतिक उपस्थिति को भी मजबूत करता है। इस सौदे ने अन्य देशों को भी प्रेरित किया है, और अब कई देश भारत के साथ ऐसी ही डील करने के लिए उत्सुक हैं।
इंडोनेशिया, वियतनाम और मलेशिया की रुचि
फिलीपींस के बाद अब इंडोनेशिया, वियतनाम, और मलेशिया जैसे देश भी ब्रह्मोस मिसाइल में गहरी रुचि दिखा रहे हैं। इंडोनेशिया के साथ लगभग 450 मिलियन डॉलर की डील पर पिछले एक दशक से बातचीत चल रही है। हाल की खबरों के अनुसार, इंडोनेशिया इस मिसाइल के उन्नत संस्करण को खरीदने की योजना बना रहा है। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो ने 2020 में भारत का दौरा किया था और इस सौदे पर चर्चा की थी। अब उनके नेतृत्व में यह डील जल्द ही अंतिम रूप ले सकती है।
वियतनाम भी अपनी सेना और नौसेना को मजबूत करने के लिए ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने की तैयारी में है। वियतनाम के साथ 700 मिलियन डॉलर का सौदा होने की संभावना है। यह सौदा दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ चल रहे तनाव को देखते हुए खासा महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर, मलेशिया अपने सुखोई Su-30MKM लड़ाकू विमानों और केदाह श्रेणी के युद्धपोतों के लिए ब्रह्मोस मिसाइलों को शामिल करने पर विचार कर रहा है। इन देशों की रुचि से साफ है कि भारत की रक्षा शक्ति (India’s Defense Strength) अब वैश्विक स्तर पर एक भरोसेमंद नाम बन रही है।
अरब देशों में बढ़ती दिलचस्पी
ब्रह्मोस मिसाइल की मांग केवल दक्षिण-पूर्व एशिया तक सीमित नहीं है। मध्य पूर्व के कई अरब देश, जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), कतर, और ओमान, भी इस मिसाइल में रुचि दिखा रहे हैं। इन देशों का मानना है कि ब्रह्मोस मिसाइल उनकी रक्षा प्रणाली को और मजबूत कर सकती है। मिस्र भी इस सूची में शामिल है और भारत के साथ बातचीत के उन्नत चरण में है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन देशों की रुचि का एक बड़ा कारण ब्रह्मोस का उन्नत संस्करण और इसकी सटीकता है। इसके अलावा, भारत की एक्ट ईस्ट नीति और मध्य पूर्व के साथ बढ़ते रणनीतिक संबंध भी इस मांग को बढ़ा रहे हैं। अरब देशों की यह दिलचस्पी भारत के रक्षा निर्यात को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकती है।
अन्य देशों की नजर ब्रह्मोस पर
दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य पूर्व के अलावा, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कुछ देश भी ब्रह्मोस मिसाइल में रुचि दिखा रहे हैं। ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना, और वेनेजुएला अपने तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए इस मिसाइल को खरीदने की योजना बना रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका और बुल्गारिया जैसे देश भी इस मिसाइल की खरीद पर विचार कर रहे हैं।
थाईलैंड, सिंगापुर, और ब्रुनेई जैसे छोटे दक्षिण-पूर्व एशियाई देश भी इस मिसाइल में रुचि रखते हैं। इन देशों का मानना है कि ब्रह्मोस उनकी समुद्री सीमाओं को सुरक्षित करने में मदद कर सकती है। कुल मिलाकर, करीब 17 से 20 देश इस मिसाइल को खरीदने की होड़ में हैं, जो भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
भारत की आत्मनिर्भरता और भविष्य
ब्रह्मोस मिसाइल की बढ़ती मांग भारत की आत्मनिर्भर रक्षा नीति का परिणाम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक 5 बिलियन डॉलर के रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है, और ब्रह्मोस इस लक्ष्य को हासिल करने में अहम भूमिका निभा रही है। लखनऊ में हाल ही में शुरू हुई नई उत्पादन इकाई इस दिशा में एक बड़ा कदम है। यह इकाई न केवल भारत की जरूरतों को पूरा करेगी, बल्कि निर्यात को भी बढ़ावा देगी।
ब्रह्मोस का नया संस्करण, ब्रह्मोस-एनजी (नेक्स्ट जेनरेशन), और भी हल्का और सस्ता है। इसका वजन 2900 किलोग्राम से घटकर 1260 किलोग्राम हो गया है, और यह सुखोई-30 जैसे लड़ाकू विमानों पर आसानी से तैनात किया जा सकता है। इस नए संस्करण के ट्रायल 2026 तक पूरे होने की उम्मीद है, जिससे इसकी वैश्विक मांग और बढ़ेगी।
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