भारत में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का इलाज आम आदमी की पहुंच से दूर क्यों है? क्या सरकार इस महामारी से लड़ने के लिए गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों की मदद कर सकती है? ये सवाल लोकसभा में गूंजे, जब कई सांसदों ने कैंसर के मुफ्त इलाज की मांग उठाई। आइए जानते हैं इस मुद्दे पर क्या हुई बहस और सरकार ने क्या जवाब दिया।
लोकसभा में एक अहम मुद्दा उठा, जो लाखों भारतीयों के जीवन से जुड़ा है। नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल, लुधियाना से सांसद अमरिंदर सिंह राजा वारिंग और समस्तीपुर से सांसद शांभवी ने सरकार से कैंसर के इलाज को लेकर सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए दवाइयां सस्ती करने से क्या फायदा? क्यों न सभी वर्ग के मरीजों का इलाज मुफ्त में करवाया जाए?
सांसदों का तर्क था कि जब कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का इलाज इतना महंगा है, तो सिर्फ दवाओं पर छूट देने से क्या मदद मिलेगी? उन्होंने जोर देकर कहा कि चाहे कोई गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) हो या मध्यम वर्ग का, सभी मरीजों का इलाज बिना किसी खर्च के होना चाहिए। यह मांग ऐसे समय में आई है जब देश में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
इन सवालों के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कुछ चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए। उन्होंने बताया कि भारत में कैंसर के मामलों की संख्या हर साल करीब 2.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। यह आंकड़ा बताता है कि हमारे देश में कैंसर एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। नड्डा ने कहा कि पुरुषों में मुंह के कैंसर और फेफड़ों के कैंसर के मामले ज्यादा बढ़ रहे हैं, जबकि महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हर साल देश में कैंसर के 15.5 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि कैंसर से लड़ाई में हमें और ज्यादा मजबूती से काम करने की जरूरत है।
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि सरकार कैंसर की दवाओं को सस्ता करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि कैंसर के लिए 131 जरूरी दवाओं की एक सूची है, जिनकी कीमत सरकार तय करती है। ये वो दवाएं हैं जो आमतौर पर इस्तेमाल की जाती हैं। इन दवाओं की कीमत पर नियंत्रण रखने से मरीजों के करीब 294 करोड़ रुपये बचे हैं। इसके अलावा, 28 ऐसी दवाएं हैं जो इस सूची में नहीं हैं, लेकिन सरकार ने उनकी कीमतों पर भी नियंत्रण रखा है।
लेकिन क्या सिर्फ दवाओं को सस्ता करना काफी है? कैंसर का इलाज सिर्फ दवाओं तक सीमित नहीं है। इसमें कई तरह के टेस्ट, सर्जरी और लंबे समय तक चलने वाला उपचार शामिल होता है। इन सबका खर्च मिलाकर इलाज की लागत लाखों रुपये तक पहुंच जाती है। ऐसे में सिर्फ दवाओं को सस्ता करने से मरीजों को कितनी राहत मिलेगी, यह एक बड़ा सवाल है।
स्वास्थ्य मंत्री ने यह भी बताया कि सरकार डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने के लिए काम कर रही है। उन्होंने कहा कि 2014 में देश में 387 मेडिकल कॉलेज थे, जो अब बढ़कर 731 हो गए हैं। इसी तरह, एमबीबीएस की सीटें 51,348 से बढ़कर 1,12,112 हो गई हैं। स्नातकोत्तर (पीजी) की सीटें भी 31,185 से बढ़कर 72,627 हो गई हैं। यह एक अच्छी खबर है, क्योंकि इससे आने वाले समय में देश में डॉक्टरों की कमी कम होगी।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ डॉक्टरों की संख्या बढ़ाना काफी है? कैंसर जैसी बीमारी के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों, आधुनिक उपकरणों और बेहतर सुविधाओं की जरूरत होती है। क्या सरकार इन सब चीजों पर भी ध्यान दे रही है?
सांसदों ने जो सवाल उठाया, वह बहुत अहम है। कैंसर का इलाज इतना महंगा क्यों है कि आम आदमी उसे वहन नहीं कर सकता? क्या सरकार ऐसा कोई तरीका नहीं निकाल सकती जिससे हर किसी को मुफ्त या बहुत कम कीमत पर इलाज मिल सके? ये सवाल सिर्फ संसद में नहीं, बल्कि हर उस परिवार के मन में उठते हैं जो कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहा है।
हालांकि, सरकार की ओर से इस मांग पर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया। स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि सरकार दवाओं की कीमतें कम करने और डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने जैसे कदम उठा रही है, लेकिन मुफ्त इलाज की मांग पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया। इससे यह लगता है कि फिलहाल सरकार के पास कैंसर का मुफ्त इलाज मुहैया कराने की कोई योजना नहीं है।
यह मुद्दा बहुत गंभीर है और इस पर गहराई से विचार करने की जरूरत है। कैंसर सिर्फ एक बीमारी नहीं है, यह एक ऐसी चुनौती है जो लाखों परिवारों को आर्थिक और भावनात्मक रूप से तोड़ देती है। ऐसे में सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह इस समस्या का कोई ठोस हल निकाले, ताकि हर मरीज को बेहतर इलाज मिल सके।
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