Wardha Rescue Efforts: वर्धा जिले की एक छोटी-सी पहल ने बाल श्रम (Child Labour) के खिलाफ एक बड़ा संदेश दिया। विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस के मौके पर ग्रामीण समस्या मुक्ति ट्रस्ट ने न केवल 14 बच्चों को शोषण से मुक्त कराया, बल्कि बाल श्रम समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय मिशन (End Child Labour Mission) की मांग को भी बुलंद किया। यह कहानी उन नन्हे बच्चों की है, जिन्हें कारखानों और दुकानों में काम करने की बजाय स्कूल की बेंचों पर होना चाहिए। यह कहानी उस जुनून की है, जो वर्धा के लोगों और ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं में दिखता है, जो हर बच्चे को उसका बचपन लौटाना चाहते हैं।
डॉ. किशोर मोघे, जो ग्रामीण समस्या मुक्ति ट्रस्ट के निदेशक हैं, ने बताया कि पिछले एक साल में जिला प्रशासन के साथ मिलकर उन्होंने 14 बचाव अभियान चलाए। इन अभियानों में 14 बच्चों को उन जगहों से आजाद कराया गया, जहां वे घंटों तक मेहनत करते थे। ये बच्चे होटलों, छोटी दुकानों और निर्माण स्थलों पर काम कर रहे थे। उनकी उम्र 10 से 14 साल के बीच थी, और वे अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए मजबूरन काम कर रहे थे। इन बच्चों को न केवल मुक्त कराया गया, बल्कि उनके पुनर्वास की व्यवस्था भी की गई, ताकि वे पढ़ाई शुरू कर सकें।
वर्धा में इस दिन कई कार्यक्रम हुए। स्कूलों, गांवों और बाजारों में लोग एकत्र हुए और बाल श्रम (Child Labour) के खिलाफ शपथ ली। बच्चों ने रैलियां निकालीं, जिनमें वे नारे लगा रहे थे कि हर बच्चे को स्कूल जाने का हक है। इन कार्यक्रमों ने स्थानीय लोगों में जागरूकता पैदा की। एक बुजुर्ग दुकानदार ने बताया कि उन्हें पहले नहीं पता था कि उनके पास काम करने वाला 12 साल का लड़का कानूनन गलत है। अब उन्होंने उस बच्चे को स्कूल भेजने का वादा किया। यह छोटी-सी कहानी दर्शाती है कि जागरूकता कितनी जरूरी है।
ग्रामीण समस्या मुक्ति ट्रस्ट की यह पहल केवल वर्धा तक सीमित नहीं है। यह ट्रस्ट जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (JRC) नेटवर्क का हिस्सा है, जो भारत के 418 जिलों में 250 से ज्यादा संगठनों के साथ काम करता है। JRC ने पिछले दो साल में 85,000 से ज्यादा बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया है। इसके अलावा, 54,000 से ज्यादा मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू की गई। ये आंकड़े दिखाते हैं कि बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई कितनी बड़ी है और कितने लोग इसमें जुटे हैं।
ट्रस्ट ने इस मौके पर एक बड़ा मुद्दा उठाया। उन्होंने मांग की कि भारत सरकार को बाल श्रम समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय मिशन (End Child Labour Mission) शुरू करना चाहिए। इस मिशन में हर जिले में बाल श्रम टास्क फोर्स होनी चाहिए, जो स्थानीय स्तर पर बच्चों को बचाने और उनके पुनर्वास का काम करे। इसके अलावा, 18 साल तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को सुनिश्चित करने की जरूरत है। कई बच्चे इसलिए काम करते हैं, क्योंकि उनके परिवार के पास स्कूल भेजने के पैसे नहीं होते। अगर शिक्षा मुफ्त हो, तो बच्चे स्कूल जाएंगे, न कि कारखानों में।
वर्धा में एक बचाए गए बच्चे की कहानी दिल को छू लेती है। 13 साल का राजू (बदला हुआ नाम) एक होटल में बर्तन धोता था। वह सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक काम करता था। उसे हर दिन थप्पड़ पड़ते थे, अगर कोई बर्तन अच्छे से साफ न हो। जब ट्रस्ट और जिला प्रशासन की टीम ने उसे बचाया, तो वह डर रहा था। लेकिन अब राजू एक स्थानीय स्कूल में पढ़ता है और बड़ा होकर शिक्षक बनना चाहता है। उसकी आंखों में अब सपने हैं, न कि डर। ऐसी कहानियां बताती हैं कि छोटे-छोटे प्रयास कितना बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
ट्रस्ट ने यह भी मांग की कि सरकार को बाल श्रमिकों के लिए एक विशेष पुनर्वास फंड बनाना चाहिए। इस फंड से बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और परिवार की आर्थिक मदद हो सकती है। इसके अलावा, खतरनाक कामों की सूची को बढ़ाने की जरूरत है। अभी कई बच्चे ईंट भट्टों, खदानों और रासायनिक कारखानों में काम करते हैं, जो उनकी जान को खतरे में डालता है। इन कामों को कानूनन प्रतिबंधित करना जरूरी है।
वर्धा के इस अभियान ने यह भी दिखाया कि स्थानीय स्तर पर नीतियां कितनी जरूरी हैं। हर राज्य और जिले की समस्या अलग है। इसलिए, बाल श्रम के खिलाफ नीतियां बनाते समय स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखना होगा। उदाहरण के लिए, वर्धा में ज्यादातर बच्चे छोटे होटलों और दुकानों में काम करते हैं, जबकि अन्य राज्यों में खेती या कारखानों में। इन सभी के लिए अलग-अलग रणनीति चाहिए।
JRC के राष्ट्रीय संयोजक रविकांत ने बताया कि भारत ने ILO कन्वेंशन 182 पर हस्ताक्षर किए हैं, जो बाल श्रम के सबसे खराब रूपों को खत्म करने की प्रतिबद्धता दिखाता है। लेकिन इस प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए और संसाधनों की जरूरत है। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और तेज कानूनी प्रक्रिया भी जरूरी है। अभी कई बार बाल श्रम कराने वाले लोग आसानी से बच जाते हैं, क्योंकि मामलों की सुनवाई में देरी होती है।
वर्धा के लोग अब इस सपने को सच करने में जुट गए हैं कि उनका जिला पूरी तरह बाल श्रम मुक्त हो। स्कूलों में शिक्षक, गांवों में सरपंच, और बाजारों में दुकानदार सभी इस मुहिम का हिस्सा बन रहे हैं। एक स्थानीय कार्यकर्ता ने बताया कि जब बच्चे स्कूल जाते हैं, तो न केवल उनका भविष्य बेहतर होता है, बल्कि पूरे गांव का माहौल बदल जाता है। यह कहानी न केवल वर्धा की है, बल्कि पूरे भारत के हर उस बच्चे की है, जो अपने बचपन को जीना चाहता है।
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