Child Trafficking Racket: मुंबई, वह शहर जो अपने सपनों और चकाचौंध के लिए जाना जाता है, कभी-कभी अपराध की गहरी परतों को भी उजागर करता है। पिछले कुछ महीनों में, वडाला टीटी पुलिस ने एक ऐसे मामले को सुलझाया, जिसने न केवल शहर को झकझोरा, बल्कि मानवता पर भी सवाल उठाए। यह कहानी है एक बाल तस्करी रैकेट (Child Trafficking Racket) को तोड़ने की, जिसमें दो मासूम बच्चों को बचाया गया और एक मुख्य आरोपी को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया गया। इस घटना ने यह दिखाया कि पुलिस की सतर्कता और तकनीकी कुशलता कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है।
यह सब शुरू हुआ 5 अगस्त, 2024 को, जब 65 वर्षीय अमर धीरेंद्र सरदार ने वडाला पुलिस स्टेशन में अपने दामाद अनिल पुरवय्या और दो साल के पोते के लापता होने की शिकायत दर्ज की। यह एक सामान्य गुमशुदगी का मामला लग रहा था, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, पुलिस को एक गहरे और संगठित अपराध का पता चला। जांच के दौरान पता चला कि अनिल ने अपने ही बेटे को 1.6 लाख रुपये में बेच दिया था। इस घृणित कार्य में उसका साथ दिया तीन अन्य लोगों ने—अस्मा शेख, शरीफ शेख और आशा पवार। इस खुलासे ने पुलिस को तुरंत कार्रवाई के लिए प्रेरित किया।
21 अगस्त, 2024 को, पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (BNS) और किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) की धाराओं के तहत एक FIR दर्ज की। अनिल और अस्मा को मुंबई में ही गिरफ्तार कर लिया गया। पूछताछ में आशा पवार का नाम सामने आया, जिसे बाद में हैदराबाद से पकड़ा गया। आशा ने खुलासा किया कि 9 जुलाई, 2024 को बच्चे को भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन पर रेशमा संतोषकुमार बैनर्जी नाम की महिला को बेचा गया था। इस सौदे में अन्य आरोपियों ने भी सहायता की थी।
पुलिस ने तकनीकी विश्लेषण का सहारा लिया और रेशमा के ठिकाने का पता लगाने की कोशिश की। शुरुआत में, उसका पता भुवनेश्वर के हाई-टेक डेंटल हॉस्पिटल और SUM हॉस्पिटल में मिला, लेकिन वह दोनों जगहों से नौकरी छोड़कर जा चुकी थी। कई दिनों की मेहनत के बाद, पुलिस को उसका स्थान हुबली, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में मिला। यह एक महत्वपूर्ण सुराग था, जिसने मामले को नई दिशा दी।
9 अप्रैल, 2025 को, उत्तरपारा पुलिस की मदद से मुंबई पुलिस ने रेशमा को पकड़ लिया। उसके पास वह बच्चा था, जिसे तस्करी के जरिए बेचा गया था, साथ ही एक और तीन साल की अज्ञात लड़की भी थी। रेशमा को सेरामपुर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, और ट्रांजिट रिमांड प्राप्त किया गया। दोनों बच्चों को हुबली के बाल कल्याण समिति (CWC) के सामने पेश किया गया। एक बच्चे को मुंबई पुलिस को सौंप दिया गया, जबकि अज्ञात लड़की को शेल्टर होम में रखा गया।
12 अप्रैल, 2025 को, रेशमा और बचाए गए बच्चे को वडाला टीटी पुलिस स्टेशन लाया गया। बच्चे के शरीर पर शारीरिक शोषण के निशान थे, जिसके बाद उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस घटना के बाद, किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 (बच्चों के प्रति क्रूरता) को भी मामले में जोड़ा गया। पुलिस अब इस तस्करी नेटवर्क में शामिल अन्य लोगों की पहचान करने के लिए जांच को और गहरा कर रही है।
यह मामला केवल एक अपराध की कहानी नहीं है; यह उन मासूम बच्चों की जिंदगी की कीमत को दर्शाता है, जो लालच और अपराध की भेंट चढ़ जाते हैं। वडाला पुलिस की इस कार्रवाई ने न केवल दो बच्चों को नया जीवन दिया, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि अपराध कितना भी संगठित हो, कानून की पहुंच से कोई नहीं बच सकता। जांच अभी जारी है, और उम्मीद है कि इस रैकेट के और भी राज जल्द सामने आएंगे।