No Coffee Shop: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को एक सुनवाई के दौरान कोर्ट की मर्यादा पर जोर दिया। एक याचिकाकर्ता की बातचीत के दौरान इस्तेमाल किए गए शब्दों से नाराज होकर उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा, “ये कॉफी शॉप नहीं है, ये कोर्ट है।” आइए जानते हैं, आखिर क्या था पूरा मामला और क्यों CJI को यह टिप्पणी करनी पड़ी।
कोर्ट की मर्यादा और CJI की सख्ती
सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद संवेदनशील मामले की सुनवाई चल रही थी जिसमें याचिकाकर्ता ने पूर्व CJI रंजन गोगोई के खिलाफ जांच की मांग की थी। इस दौरान जब याचिकाकर्ता से एक सवाल का जवाब मांगा गया, तो उसने अंग्रेजी में ‘Yeah, Yeah’ कह दिया। यह सुनते ही CJI डी वाई चंद्रचूड़ नाराज हो गए और तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “ये कोर्ट है, कोई कॉफी शॉप नहीं। इस तरह का लहजा यहां बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
CJI ने स्पष्ट किया कि कोर्ट रूम में भाषा की मर्यादा का पालन करना बेहद ज़रूरी है। कोर्ट जैसी गंभीर जगह पर ‘Yeah, Yeah’ जैसे अनौपचारिक शब्दों का प्रयोग करने पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा, “मुझे इस तरह के शब्दों से एलर्जी है।” CJI का यह बयान सिर्फ याचिकाकर्ता को नहीं, बल्कि पूरे कानूनी समुदाय के लिए एक संदेश था कि कोर्ट रूम में अनुशासन और आदर का पालन किया जाना चाहिए।
इस पूरे वाकये से यह साफ होता है कि कोर्ट में अनुशासन को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका के उच्चतम पद पर बैठे व्यक्ति का यह रवैया दिखाता है कि कोर्ट की गरिमा को किसी भी हाल में ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, चाहे वह कितनी ही छोटी बात क्यों न हो।
याचिका का संवेदनशील मामला
इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने पूर्व CJI रंजन गोगोई के खिलाफ एक इन-हाउस जांच की मांग की थी। CJI चंद्रचूड़ ने इस याचिका पर सवाल उठाया कि क्या इसे आर्टिकल 32 के तहत दाखिल किया जा सकता है। उन्होंने पूछा कि एक जज को प्रतिवादी बनाकर जनहित याचिका (PIL) कैसे दायर की जा सकती है। याचिकाकर्ता इस सवाल के जवाब में बार-बार ‘Yeah, Yeah’ कह रहा था, जिसे सुनकर CJI ने उसे फटकार लगाई और कहा, “इस तरह की भाषा कोर्ट में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। ‘Yeah, Yeah’ नहीं, ‘Yes’ कहिए।”
यह टिप्पणी सुनते ही कोर्ट रूम में सभी को समझ आ गया कि CJI चंद्रचूड़ अदालत की गंभीरता और अनुशासन को लेकर कोई ढील नहीं देना चाहते। उन्होंने याचिकाकर्ता को चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि अगर वह कोर्ट रूम की गरिमा का सम्मान नहीं करेगा, तो उसे सख्त कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया कि सुप्रीम कोर्ट में न केवल कानूनी तर्कों का महत्व है, बल्कि वहां की भाषा और व्यवहार में भी अनुशासन का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
कोर्ट रूम में व्यवहार का महत्व
यह पहली बार नहीं है जब CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कोर्ट रूम में अनुशासन को लेकर सख्त रवैया अपनाया हो। इससे पहले भी कई मौकों पर उन्होंने वकीलों और याचिकाकर्ताओं को कोर्ट की मर्यादा का पालन करने की सलाह दी है। मार्च 2024 में भी एक सुनवाई के दौरान CJI ने वरिष्ठ वकील मैथ्यूज नेदुम्परा को कोर्ट रूम के अनुशासन का उल्लंघन करने पर कड़ी चेतावनी दी थी। उस समय नेदुम्परा बार-बार अपनी बात कहने की जिद पर अड़े थे, जबकि CJI ने उन्हें इंतजार करने को कहा था।
उस वक्त भी CJI ने साफ शब्दों में कहा था कि कोर्ट में अनुशासन का उल्लंघन करने वाले को कोई छूट नहीं दी जाएगी। यह दिखाता है कि CJI चंद्रचूड़ कोर्ट रूम की गरिमा को हर हाल में बनाए रखने के पक्षधर हैं। चाहे वह कितने ही बड़े वकील हों या साधारण याचिकाकर्ता, कोर्ट रूम में सभी को समान रूप से नियमों का पालन करना होता है।
CJI की यह सख्ती न केवल कोर्ट के अनुशासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को भी दर्शाती है। जब देश की सबसे बड़ी अदालत में इस तरह की मर्यादा का पालन होगा, तो निचली अदालतों में भी इसका सकारात्मक असर देखने को मिलेगा।
CJI चंद्रचूड़ का यह कहना कि “ये कोई कॉफी शॉप नहीं है” (No Coffee Shop), न केवल याचिकाकर्ता के लिए बल्कि पूरे कानूनी समुदाय के लिए एक कड़ा संदेश था। अदालतों में अनुशासन और सम्मान का होना न्यायिक प्रक्रिया की नींव है, और इसे किसी भी हाल में कमजोर नहीं होने दिया जा सकता।
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