अमेरिकी सरकार द्वारा भारत के चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए दी गई चुनावी फंडिंग (US Election Funding) पर अब राजनीतिक बहस तेज हो गई है। हाल ही में एलन मस्क (Elon Musk) के नेतृत्व वाले सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने इस रहस्यमयी फंडिंग का खुलासा किया, जिससे ये साफ हो गया कि अमेरिका भारत की चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा था।
कहां गया ये पैसा?
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने (Increasing Voter Turnout in India) के लिए 21 मिलियन डॉलर (लगभग 182 करोड़ रुपये) की सहायता दी थी। इसी तरह, बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल मजबूत करने के लिए 29 मिलियन डॉलर और नेपाल में संघीय ढांचे को सुधारने के लिए 29 मिलियन डॉलर की सहायता दी गई थी।
अब सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि ये धन आखिर किसे दिया गया और इसका वास्तविक उपयोग क्या हुआ?
संजीव सान्याल का कड़ा बयान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार संजीव सान्याल (Sanjeev Sanyal) ने इस मुद्दे पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने USAID को मानव इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला बताया और पूछा कि भारत में मतदान सुधारने के नाम पर खर्च किए गए करोड़ों रुपये आखिर किसके पास गए।
सान्याल के अनुसार, अमेरिकी सरकार ने जिन देशों को ये आर्थिक सहायता दी थी, वहां की सरकारों और जनता को इसकी पूरी जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि ये केवल फिजूलखर्ची नहीं बल्कि चुनावी हस्तक्षेप का स्पष्ट उदाहरण है।
ट्रंप प्रशासन ने फंडिंग पर लगाई रोक
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए भारत सहित कई देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर रोक लगाने का आदेश दिया है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इस तरह की फंडिंग से चुनावों में अनावश्यक हस्तक्षेप होता है और ये अमेरिकी करदाताओं के पैसे की बर्बादी है।
एलन मस्क के सरकारी दक्षता विभाग ने इस फंडिंग को अमेरिकी फिजूलखर्ची (US Government Waste) करार दिया और बताया कि अब इस तरह के अनावश्यक खर्चों को पूरी तरह से बंद किया जाएगा।
राजनीतिक घमासान तेज
भारत में ये मामला अब तूल पकड़ चुका है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस मुद्दे को चुनावी हस्तक्षेप करार देते हुए अमेरिका से स्पष्टीकरण मांगा है। बीजेपी नेता अमित मालवीय ने सवाल किया कि इस फंडिंग से किसे लाभ हुआ और क्या ये सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था।
विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, जिससे संदेह और भी गहरा गया है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस फंडिंग से जुड़े रहस्यों से पर्दा उठता है या नहीं।
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