कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी जान गंवाने वाले योद्धाओं के परिवारों को मिलने वाले मुआवज़े के मामलों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने यह सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने एक महिला की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने अपने पति की मौत पर 50 लाख रुपये का मुआवजा मांगा था।
नंदेड़ की रहने वाली कंचन हम्शेट्टे का पति हैंडपंप हेल्पर का काम करता था। महामारी के दौरान कोरोना से उसकी मौत हो गई थी। कंचन का दावा था कि उसके पति को सरकारी काम पर लगाया गया था, इसलिए उसे मुआवज़ा मिलना चाहिए। सरकार ने मुआवजा देने से इनकार कर दिया, क्योंकि मृतक कोविड ड्यूटी के लिए नियुक्त नहीं किया गया था। इस फैसले के खिलाफ कंचन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में संवेदनशीलता जरूरी है, पर गहन जांच भी होनी चाहिए। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जो लोग योग्य नहीं हैं, उन्हें सिर्फ इसलिए मुआवजा नहीं दिया जा सकता कि ये टैक्स देने वालों का पैसा है। अगर ऐसे मामलों को हल्के में लिया गया, तो फिर अयोग्य लोग भी बड़ी रकम लेने लगेंगे।
कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट है कि कोरोना महामारी जैसी आपदा के दौरान जान गंवाने वाले फ्रंटलाइन वर्कर्स के प्रति सरकार को अपनी जिम्मेदारी पूरी गंभीरता से निभानी चाहिए। मुआवजे के नियम स्पष्ट होने चाहिए और पात्रता तय करने के लिए पारदर्शी तरीका अपनाना चाहिए।
केंद्र या राज्य सरकार की तरफ से कोविड योद्धाओं के लिए जो मुआवजा योजनाएं हैं, उनकी थोड़ी जानकारी दी जा सकती है।