Crowd Management at Victory Parade: मुंबई में क्रिकेट का जुनून किसी से छिपा नहीं है। जब भारतीय क्रिकेट टीम ने 2024 में टी-20 विश्व कप जीता, तो मुंबई की मरीन ड्राइव पर विजय परेड (Victory Parade) का आयोजन हुआ। लेकिन इस आयोजन ने पुलिस और प्रशासन के सामने कई चुनौतियां खड़ी कर दीं। हाल ही में बेंगलुरु में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) की जीत के बाद हुई भगदड़ ने एक बार फिर बड़े सार्वजनिक आयोजनों की सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं। मुंबई पुलिस के अनुभव और बेंगलुरु की घटना से मिली सीख बताती है कि क्रिकेट जैसे लोकप्रिय आयोजनों (Cricket Events) को टिकट आधारित करना क्यों जरूरी है। इस लेख में, हम मुंबई की 2024 विजय परेड की कहानी, उसकी चुनौतियों और इससे मिली सीख को विस्तार से जानेंगे।
4 जुलाई 2024 को, मुंबई की मरीन ड्राइव पर भारतीय क्रिकेट टीम की विजय परेड का आयोजन हुआ। यह परेड दक्षिण मुंबई के एनसीपीए से शुरू होकर वानखेड़े स्टेडियम तक 1.5 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली थी। खुली बस में क्रिकेटरों और बीसीसीआई कर्मचारियों को ले जाया जाना था, और यह आयोजन सभी के लिए मुफ्त था। लेकिन इस आयोजन की जानकारी पुलिस को सिर्फ 24 घंटे पहले मिली। इतने कम समय में इतने बड़े आयोजन की तैयारी करना आसान नहीं था। फिर भी, मुंबई पुलिस, मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन और बीएमसी ने रातभर बैठकें कीं और तैयारियां शुरू कीं। बैरिकेड्स लगाए गए, सोशल मीडिया पर सुरक्षा निर्देशों के वीडियो साझा किए गए, और भीड़ प्रबंधन की रणनीति बनाई गई।
मुंबई में पहले भी 2007 और 2011 में क्रिकेट विश्व कप जीत के बाद विजय परेड हुई थीं। 2007 की परेड हवाई अड्डे से वानखेड़े स्टेडियम तक 35 किलोमीटर की थी, जिसके कारण भीड़ एक जगह इकट्ठा नहीं हुई थी। 2011 की परेड में भीड़ अपेक्षाकृत कम थी। लेकिन 2024 की परेड में स्थिति पूरी तरह अलग थी। दोपहर 3 बजे से ही लोग मरीन ड्राइव और वानखेड़े स्टेडियम की ओर बढ़ने लगे। पुलिस को उम्मीद थी कि खुली बस में क्रिकेटरों को देखने के लिए भीड़ आएगी, लेकिन वानखेड़े स्टेडियम में 30,000 की क्षमता के बावजूद 40,000 से ज्यादा लोग पहुंच गए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए स्टेडियम के दरवाजे बंद करने पड़े।
आमतौर पर स्टेडियम को भरने में दो घंटे लगते हैं, लेकिन उस दिन 40 मिनट में ही यह पूरी तरह भर गया। भीड़ इतनी तेजी से बढ़ रही थी कि पुलिस को प्रवेश करने वालों की तलाशी लेने का विचार भी छोड़ना पड़ा। क्रिकेट टीम हवाई अड्डे से एनसीपीए की ओर बढ़ रही थी, लेकिन उन्हें दो घंटे से ज्यादा की देरी हो गई। इस दौरान, मरीन ड्राइव पर तीन लाख से ज्यादा लोग जमा हो गए। पुलिस के बैरिकेड्स हटाए जा चुके थे, और लोग जगह के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे। पुलिस के अनुमान के मुताबिक, वानखेड़े स्टेडियम में 50,000 लोग और मरीन ड्राइव पर तीन लाख से ज्यादा लोग मौजूद थे।
भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम का उपयोग किया, जिससे कुछ हद तक व्यवस्था बनी रही। लेकिन स्थिति तब और जटिल हो गई, जब कुछ लोग सांस लेने में तकलीफ की शिकायत करने लगे। पुलिसकर्मियों ने ऐसे लोगों को भीड़ से बाहर निकाला और उनकी मदद की। एक अधिकारी ने बताया कि वह खुद भी भीड़ में सांस लेने में तकलीफ महसूस करने लगे थे। भीड़ के दबाव को कम करने के लिए, पुलिस ने मरीन ड्राइव पर कुछ हाउसिंग सोसाइटी के गेट के ताले तोड़ दिए, ताकि लोगों को अतिरिक्त जगह मिल सके।
चर्चगेट स्टेशन से भीड़ लगातार मरीन ड्राइव की ओर बढ़ रही थी। लोग सांस लेने की तकलीफ की शिकायतों को देखकर भी आगे बढ़ रहे थे। रेलवे पुलिस ने देखा कि स्टेशन पर भीड़ इतनी ज्यादा हो गई थी कि कुछ ट्रेनों के दरवाजे बंद करके उन्हें वापस भेजना पड़ा। अगर ऐसा न किया जाता, तो स्टेशन पर भगदड़ जैसी स्थिति हो सकती थी। एक अधिकारी ने बताया कि भीड़ इतनी घनी थी कि अगर कोई अपना जूता गिरा देता, तो उसे उठाने के लिए झुकना भी मुश्किल था। अगले दिन, बीएमसी ने दो ट्रक भरकर मरीन ड्राइव से जूते इकट्ठा किए।
विजय परेड (Victory Parade) शुरू होने पर, लगभग 100 पुलिसकर्मियों ने बस को घेर लिया और उसे एनसीपीए से वानखेड़े स्टेडियम तक सुरक्षित पहुंचाया। शुरू में क्रिकेटरों ने ट्रॉफी उठाकर भीड़ का उत्साह बढ़ाया, लेकिन जब उन्होंने भीड़ की भारी संख्या देखी, तो उन्होंने हाथ जोड़कर लोगों से शांत रहने की अपील की। पुलिस के लिए यह एक ऐसी स्थिति थी, जहां एक छोटी सी चूक बड़ा हादसा कर सकती थी। लेकिन सौभाग्य से, कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।
मुंबई पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत जैसे देश में, जहां जनसंख्या इतनी ज्यादा है, और क्रिकेट जैसे आयोजनों (Cricket Events) के प्रति लोगों का जुनून बेमिसाल है, मुफ्त और खुले आयोजनों का जोखिम बहुत ज्यादा है। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे आयोजनों को टिकट आधारित करना चाहिए, भले ही टिकट मुफ्त हों। अगर एक लाख पास भी बांटे जाएं, तो प्रशासन को यह अंदाजा रहेगा कि कितनी भीड़ आएगी, और जो पास न पा सकें, वे नहीं आएंगे। इससे आयोजन को नियंत्रित करना आसान होगा और हादसों का जोखिम कम होगा।
मुंबई की यह विजय परेड और बेंगलुरु की भगदड़ की घटना हमें यह सिखाती है कि बड़े सार्वजनिक आयोजनों की योजना बहुत सावधानी से बनानी चाहिए। मुंबई में पुलिस ने रातभर तैयारी की, फिर भी भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया। यह अनुभव नई पीढ़ी के लिए भी एक सबक है कि उत्साह और जुनून के साथ-साथ सुरक्षा का ध्यान रखना कितना जरूरी है।
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