Delhi Water Crisis: दिल्ली में इन दिनों पानी की किल्लत को लेकर राजनीति हो रही है। भीषण गर्मी के बीच आम लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। हिमाचल से छोड़ा जाने वाला पानी दिल्ली तक क्यों नहीं पहुंच पाता है? हिमाचल और दिल्ली के बीच हथिनीकुंड बैराज पर ऐसा क्या होता है कि दिल्ली तक आते-आते मुनक नहर ‘सूख-सी’ जाती है।
हथिनीकुंड बैराज से पानी का बंटवारा
हिमाचल से दिल्ली के लिए छोड़ा जाने वाला पानी हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज में आता है। दिल्ली सरकार का आरोप है कि हरियाणा से हथिनीकुंड बैराज से पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं छोड़ा जाता, जिससे दिल्ली में पानी की किल्लत होती है। हथिनीकुंड बैराज से पानी मुनक नहर के जरिए दिल्ली में आता है और फिर इसे अलग-अलग वाटर ट्रीटमेंट प्लांटों में भेजा जाता है।
हथिनीकुंड बैराज की स्थिति
हथिनीकुंड बैराज पर इस समय काफी कम पानी है। हालत यह है कि नदी के बीच में खाली जमीन नजर आ रही है, जिसमें जानवर घास चर रहे हैं। इसका मतलब है कि पानी का स्तर बहुत कम है। यमुना नदी उत्तराखंड और हिमाचल के पहाड़ों से होती हुई आती है और शिवालिक पहाड़ों से निकलते ही मैदान में पहुंचकर हथिनीकुंड बैराज पर आती है। यहां से यमुना तीन हिस्सों में बंट जाती है, जिससे दिल्ली की ओर आते समय यमुना में पानी कम हो जाता है।
यमुना के पानी का बंटवारा
- वेस्टर्न यमुना कैनाल: यमुना का पहला हिस्सा वेस्टर्न यमुना कैनाल में जाता है, जो हरियाणा की तरफ जाता है। यह पानी दिल्ली और राजस्थान के भी काम आता है।
- उत्तर प्रदेश: यमुना का दूसरा हिस्सा उत्तर प्रदेश की तरफ जाता है, जिससे वहां के लोग सिंचाई करते हैं।
- मुख्य यमुना नदी: बैराज का तीसरा हिस्सा मुख्य यमुना नदी में छोड़ दिया जाता है।
हथिनीकुंड बैराज का निर्माण
हथिनीकुंड बैराज का काम हिमाचल प्रदेश से तेज गति से आने वाले पानी को नियंत्रित करना है। इसकी लंबाई 360 मीटर है और इसमें 18 फ्लडगेट बनाए गए हैं, ताकि पानी अधिक होने पर उसे तेजी से बाहर निकाला जा सके। इसका निर्माण 1996 में शुरू हुआ और 1999 में पूरा हुआ। 2002 से यह पूरी तरह से काम करने लगा। इसकी कुल क्षमता 10 लाख क्यूसेक पानी इकट्ठा करने की है।
हथिनीकुंड बैराज का नाम कैसे पड़ा?
इस क्षेत्र में एक बार एक विशालकाय हाथी रहता था, जो अक्सर नदी में स्नान करने के लिए आता था। इसी स्थान पर हाथी के स्नान करने के कारण इस जगह का नाम “हथनीकुंड” पड़ा। “हथनी” का अर्थ “मादा हाथी” और “कुंड” का अर्थ “तालाब” होता है। यह कहानी इस क्षेत्र के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को दर्शाती है।
दिल्ली में पानी की स्थिति
हथिनीकुंड बैराज से छोड़ा गया पानी सबसे पहले दिल्ली के पल्ला गांव पहुंचता है। यहां यमुना नदी में इन दिनों बहुत कम पानी है। इसका एक अहम कारण इसमें पड़ने वाले सीवर और फैक्ट्री से निकलने वाले नाले हैं। दिल्ली जल बोर्ड यहां से ट्यूबवेल लगाकर अच्छी मात्रा में पानी निकालता है और दिल्ली के लोगों को सप्लाई करता है।
इस प्रकार, हथिनीकुंड बैराज से पानी का बंटवारा और उसकी मौजूदा स्थिति दिल्ली में पानी की कमी का मुख्य कारण है।
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