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कोर्ट में क्या सच में गीता पर हाथ रखकर कसम खाते हैं गवाह? जानिए

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जब भी फिल्मों या वेब सीरीज में कोर्ट रूम के दृश्य आते हैं, तो गवाह को अक्सर गीता पर हाथ रखकर कसम खाते हुए दिखाया जाता है। इस सीन को इतने बार दोहराया गया है कि लोगों ने इसे सच मान लिया है। लेकिन यहां सवाल ये है कि क्या सच में भारतीय अदालतों में ऐसा होता है? तो इसका जबाव है नहीं। चलिए जानते हैं इसे विस्तार से।

फिल्मों के कोर्ट रूम और असली अदालतों में फर्क
फिल्मों में जब गवाह कटघरे में खड़ा होता है, तो उसे गीता पर हाथ रखकर कसम खाते दिखाया जाता है, “मैं कसम खाता हूं कि मैं जो कहूंगा सच कहूंगा, सच के सिवा और कुछ नहीं कहूंगा।” ये सीन हर किसी को परिचित लगता है, क्योंकि इसे बार-बार इस्तेमाल किया गया है। लेकिन असलियत में ऐसा कुछ नहीं होता। भारतीय अदालतों की प्रक्रिया फिल्मों में दिखाए गए इन दृश्यों से पूरी तरह अलग है। “गीता पर कसम” (Geeta Swearing) का ये दृश्य असल अदालतों का हिस्सा नहीं है।

क्या है कोर्ट रूम की असली प्रक्रिया?
भारतीय अदालतों में गवाहों से गीता पर हाथ रखकर कसम नहीं दिलाई जाती। इसकी जगह एक साधारण और औपचारिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। जब गवाह कटघरे में आता है, तो उससे कहलाया जाता है कि “जो भी कहेंगे सच कहेंगे, सच के सिवा और कुछ नहीं कहेंगे।” ये शपथ मौखिक रूप से दिलाई जाती है। इसमें किसी धार्मिक ग्रंथ का इस्तेमाल नहीं होता।

क्या पुराने जमाने में गीता पर कसम खाई जाती थी?
कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि पुराने समय में कभी-कभी धार्मिक ग्रंथों का उपयोग किया जाता था। ये समाज में धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाता था। गीता पर कसम खाने की ये प्रक्रिया तब के सामाजिक संदर्भों में उपयुक्त मानी जाती थी। लेकिन आधुनिक भारतीय अदालतों में ऐसा कोई नियम या परंपरा नहीं है। आज हर गवाह से केवल मौखिक शपथ ली जाती है।

फिल्मों में “गीता पर कसम” क्यों?
फिल्मों और वेब सीरीज में गीता पर हाथ रखकर कसम खाने का सीन इसलिए दिखाया जाता है क्योंकि ये नाटकीय और प्रभावशाली लगता है। ये दृश्य दर्शकों को तुरंत कोर्ट रूम की गंभीरता का अहसास कराता है। लेकिन इसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है।

फिल्मों और असलियत का फर्क
ये अंतर बताता है कि कैसे फिल्मों में दिखाई जाने वाली चीजें समाज में धारणाएं बना सकती हैं। लोगों को असली कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में जानना चाहिए ताकि वे वास्तविकता और कल्पना के बीच फर्क समझ सकें।

गीता पर हाथ रखकर कसम खाने का सीन केवल फिल्मों और वेब सीरीज की कल्पना है। असल भारतीय अदालतों में गवाहों से सिर्फ मौखिक शपथ दिलाई जाती है। ये एक साधारण और औपचारिक प्रक्रिया है। हमें फिल्मों और असलियत के बीच फर्क समझने की जरूरत है ताकि हम भारतीय कानूनी व्यवस्था को सही रूप में समझ सकें।

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