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महाराष्ट्र के इन मंदिरों में लागू हुआ ड्रेस कोड, जानें किस तरह के कपड़ों पर लगी पाबंदी

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मंदिर, जहां मन को शांति मिलती है और आस्था का दीप जलता है, वहां का माहौल पवित्र और गरिमामय होना चाहिए। इसी सोच के साथ महाराष्ट्र के कई मंदिर अब श्रद्धालुओं से शालीन और पारंपरिक वस्त्र पहनने की अपील कर रहे हैं। ये कोई सख्त नियम नहीं, बल्कि धार्मिक स्थलों की मर्यादा और संस्कृति को बनाए रखने की एक सम्मानजनक पहल है। आइए, जानते हैं कि ये बदलाव क्यों और कैसे हो रहा है।

मंदिरों में ड्रेस कोड की शुरुआत
महाराष्ट्र के मंदिर प्रबंधन ट्रस्ट धीरे-धीरे ड्रेस कोड लागू कर रहे हैं। पुणे के प्रसिद्ध चिंचवड देवस्थान ट्रस्ट ने हाल ही में एक परामर्श जारी किया, जिसमें मोरगांव, थेऊर, सिद्धटेक और पिंपरी चिंचवड जैसे मंदिरों में श्रद्धालुओं से पारंपरिक और शालीन कपड़े पहनने का आग्रह किया गया। ट्रस्ट का कहना है कि ये अपील अनिवार्य नहीं है, लेकिन ये श्रद्धा और शिष्टाचार को बढ़ावा देने का एक प्रयास है।

इसी तरह, मुंबई के श्री सिद्धिविनायक मंदिर ने भी इस साल जनवरी में ड्रेस कोड लागू किया। रत्नागिरी जिले के 50 मंदिरों और अहिल्यानगर के 16 मंदिरों में भी जींस, शॉर्ट्स, स्कर्ट जैसे कपड़ों पर रोक लगाई गई है। प्रवेश द्वारों पर नोटिस लगाए गए हैं, जो अनुचित कपड़ों से बचने की सलाह देते हैं। हिंदू जनजागृति समिति और महाराष्ट्र मंदिर महासंघ इस पहल को शिरडी और शनि शिंगणापुर जैसे बड़े मंदिरों तक ले जाने की कोशिश में जुटे हैं।

ड्रेस कोड का मकसद
मंदिरों में ड्रेस कोड लागू करने का उद्देश्य धार्मिक स्थलों की पवित्रता और सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करना है। ये सिर्फ हिंदू मंदिरों तक सीमित नहीं है। गुरुद्वारों में भी शालीन कपड़े और सिर ढकने की परंपरा रही है। मंदिर प्रबंधन का मानना है कि अनुचित या अत्यधिक फैशनेबल कपड़े मंदिर के माहौल को प्रभावित कर सकते हैं।

क्या है बहस का मुद्दा?
हालांकि, समाज में इस बात पर चर्चा जारी है कि ड्रेस कोड को कितनी सख्ती से लागू किया जाए। कुछ लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश मानते हैं, जबकि अन्य इसे सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा का हिस्सा मानते हैं। सवाल ये है कि क्या ये नियम सभी के लिए अनिवार्य होना चाहिए या इसे सिर्फ एक सुझाव के रूप में रखा जाए?

महाराष्ट्र के मंदिरों में ड्रेस कोड की यह पहल एक नई शुरुआत है। यह हमें याद दिलाती है कि मंदिर केवल पूजा की जगह नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और आस्था का प्रतीक भी हैं। शालीनता और श्रद्धा के साथ मंदिर जाना न सिर्फ हमारी परंपराओं को मजबूत करता है, बल्कि दूसरों के लिए भी एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है। आप इस बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय हमारे साथ साझा करें।

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