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ED New Rule for Advocate Summons: प्रवर्तन निदेशालय का नया सर्कुलर, वकीलों को समन से पहले निदेशक की अनुमति जरूरी

ED New Rule for Advocate Summons: प्रवर्तन निदेशालय का नया सर्कुलर, वकीलों को समन से पहले निदेशक की अनुमति जरूरी

ED New Rule for Advocate Summons: भारत में कानूनी पेशे की गरिमा और वकील-मुवक्किल के रिश्ते की गोपनीयता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने हाल ही में एक नया सर्कुलर जारी किया है, जिसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वकीलों को समन (ED Summons to Advocates) भेजने से पहले निदेशक की अनुमति लेना अनिवार्य होगा। यह निर्णय भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bhartiya Sakshya Adhiniyam), 2023 की धारा 132 का पालन सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है, जो वकीलों को अपने मुवक्किलों के साथ गोपनीय संवाद को उजागर करने से रोकता है। यह कदम न केवल कानूनी पेशे की स्वतंत्रता को मजबूत करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे।

यह सर्कुलर एक हालिया विवाद के बाद सामने आया, जिसमें मुंबई जोनल कार्यालय ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रताप वेणुगोपाल को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में समन भेजा था। यह जांच केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड (CHIL) द्वारा कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना (ESOPs) में कथित अनियमितताओं से संबंधित थी। कंपनी ने 1 मई, 2022 को कम कीमत पर शेयर जारी किए थे, जबकि भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। वेणुगोपाल, जो CHIL के स्वतंत्र निदेशक भी हैं, को इस निर्णय प्रक्रिया को समझने के लिए बुलाया गया था। लेकिन, उनके वरिष्ठ वकील होने के कारण इस समन ने कानूनी समुदाय में हलचल मचा दी। कई बार संगठनों ने इसे वकील-मुवक्किल गोपनीयता (Lawyer-Client Privilege) का उल्लंघन बताते हुए इसकी निंदा की।

इस विवाद के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने तुरंत कदम उठाया और वेणुगोपाल को भेजा गया समन वापस ले लिया। निदेशालय ने स्पष्ट किया कि अगर उन्हें CHIL के निदेशक के रूप में कोई दस्तावेज चाहिए होंगे, तो वे ईमेल के जरिए माँगे जाएँगे। इस घटना ने न केवल निदेशालय की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, बल्कि यह भी रेखांकित किया कि वकीलों के पेशेवर कर्तव्यों को संरक्षण देना कितना जरूरी है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 (Section 132 of BSA) स्पष्ट रूप से कहती है कि कोई भी वकील अपने मुवक्किल के साथ गोपनीय बातचीत को उजागर करने के लिए बाध्य नहीं है, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों के, जो कानून में उल्लिखित हैं।

नए सर्कुलर में यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी वकील तब तक समन (ED Summons to Advocates) नहीं किया जाएगा, जब तक कि धारा 132 के अपवाद लागू न हों। और अगर ऐसी स्थिति आती भी है, तो समन भेजने से पहले प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होगा। यह कदम न केवल वकीलों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि जांच प्रक्रिया कानून के दायरे में रहे। इस सर्कुलर को लागू करने का मकसद भविष्य में इस तरह के विवादों को रोकना है, ताकि वकील-मुवक्किल गोपनीयता (Lawyer-Client Privilege) का सम्मान बना रहे।

यह कदम कानूनी समुदाय के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। पहले भी प्रवर्तन निदेशालय ने वरिष्ठ वकील अरविंद दातार को इसी तरह के एक मामले में समन भेजा था, जिसे बाद में वापस ले लिया गया। इन घटनाओं ने देश भर के बार संगठनों का ध्यान खींचा, जिन्होंने इसे कानूनी पेशे की स्वतंत्रता पर हमला बताया। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से स्वतः संज्ञान लेने की अपील भी की थी। इन संगठनों का कहना था कि इस तरह की कार्रवाइयाँ न केवल अनुचित हैं, बल्कि वकीलों के पेशेवर कर्तव्यों को पूरा करने में बाधा उत्पन्न करती हैं।

प्रवर्तन निदेशालय का यह सर्कुलर एक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह न केवल कानूनी पेशे की स्वतंत्रता का सम्मान करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि जांच प्रक्रिया में कोई रुकावट न आए। धारा 132 के अपवादों को ध्यान में रखते हुए, निदेशालय ने यह स्पष्ट किया है कि विशेष परिस्थितियों में ही वकीलों को समन भेजा जाएगा, और वह भी निदेशक की अनुमति के बाद। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि जांच प्रक्रिया में कोई अनुचित कदम न उठाया जाए।

इस सर्कुलर का प्रभाव न केवल वकीलों पर पड़ेगा, बल्कि यह उन सभी लोगों के लिए एक संदेश है, जो प्रवर्तन निदेशालय की जांच के दायरे में आते हैं। यह कदम यह दर्शाता है कि निदेशालय अपनी कार्यप्रणाली को और अधिक पारदर्शी और कानून के अनुरूप बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। वकील-मुवक्किल के रिश्ते की गोपनीयता को बनाए रखना न केवल कानूनी पेशे के लिए, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। यह सर्कुलर इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है, जो भविष्य में इस तरह की गलतफहमियों को कम करने में मदद करेगा।

प्रवर्तन निदेशालय ने इस सर्कुलर को अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर भी साझा किया है, ताकि यह जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे। यह कदम न केवल कानूनी समुदाय के लिए, बल्कि आम जनता के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दर्शाता है कि निदेशालय अपनी जिम्मेदारियों को निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ निभाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह सर्कुलर न केवल वकीलों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि जांच प्रक्रिया में कानून का पालन हो।

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