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Electoral Game of Caste Vote Banks: महाराष्ट्र के चुनावी रण में ओबीसी वोटर्स की भूमिका क्यों है सबसे अहम? देखिए विस्तृत रिपोर्ट

Electoral Game of Caste Vote Banks: महाराष्ट्र के चुनावी रण में ओबीसी वोटर्स की भूमिका क्यों है सबसे अहम? देखिए विस्तृत रिपोर्ट
Electoral Game of Caste Vote Banks: महाराष्ट्र में चुनावी रंग गहराता जा रहा है। इस बार का विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प मोड़ पर है, जहां महाराष्ट्र जाति राजनीति (Maharashtra Caste Politics) पूरी तरह से छाई हुई है। आइए समझते हैं कि कैसे हर जाति और समुदाय अपनी अलग भूमिका निभा रहा है।

मराठा समुदाय की भूमिका और आकांक्षाएं

मराठा समुदाय, जो राज्य की आबादी का एक तिहाई हिस्सा है, इस बार चुनावी दंगल में सबसे ज्यादा चर्चा में है। महाराष्ट्र जाति राजनीति (Maharashtra Caste Politics) में मराठा आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ है। मनोज जरांगे पाटिल के आंदोलन ने इस मुद्दे को और भी तूल दे दिया है। मराठा युवाओं में रोजगार और शिक्षा को लेकर बेचैनी है। किसान आंदोलन और फसलों के घटते दाम भी मराठा वोटरों के मन में चुभ रहे हैं। शिवसेना और एनसीपी के विभाजन के बाद मराठा वोट बैंक चार हिस्सों में बंट गया है, जिससे हर पार्टी के लिए इस समुदाय को अपनी ओर खींचना एक चुनौती बन गया है।

ओबीसी मतदाताओं का बदलता रुख

ओबीसी समुदाय की बात करें तो यह जातिगत वोट बैंक का चुनावी खेल (Electoral Game of Caste Vote Banks) में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। कुनबी समाज, जो मराठा आरक्षण से चिंतित है, अपने हितों की रक्षा के लिए सक्रिय है। माली समुदाय, जो फूल व्यवसाय से जुड़ा है, सरकार की किसान नीतियों से प्रभावित है। वंजारी समुदाय, जिसकी आबादी काफी है, भाजपा की ओर झुका हुआ दिखाई दे रहा है। धनगर समुदाय की मांग है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले। छगन भुजबल जैसे दिग्गज ओबीसी नेता महायुति के लिए प्रचार कर रहे हैं, जबकि नाना पटोले एमवीए के लिए ओबीसी वोट जुटाने में जुटे हैं।

दलित वोटरों का रुझान और आकांक्षाएं

महाराष्ट्र में दलित राजनीति की एक लंबी परंपरा रही है। महार समुदाय, जिसमें से बड़ी संख्या में लोग बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो चुके हैं, संवैधानिक अधिकारों को लेकर सजग है। मंग और मातंग समुदाय के बीच भाजपा की पैठ मजबूत है। दलित युवाओं में शिक्षा और रोजगार को लेकर असंतोष है। सरकारी योजनाओं के लाभार्थी दलित परिवार महायुति की ओर झुके हैं, जबकि बौद्ध समुदाय एमवीए को समर्थन दे रहा है।

आदिवासी और मुस्लिम वोटरों की भूमिका

आदिवासी समुदाय, जो कभी कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक हुआ करता था, अब बदलाव के दौर से गुजर रहा है। वनवासी कल्याण केंद्र की गतिविधियों ने आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की पैठ बढ़ाई है। द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने का असर भी दिख रहा है। मुस्लिम मतदाता, जो एमवीए की ओर झुके हैं, कुछ सीटों पर एआईएमआईएम के कारण विभाजित हो सकते हैं। मुस्लिम युवाओं में शिक्षा और रोजगार प्रमुख मुद्दे हैं।

सरकारी योजनाओं का प्रभाव

महायुति को उम्मीद है कि सरकार की कई योजनाओं के लाभार्थी उनके साथ खड़े होंगे। लड़की बहन योजना, मुफ्त राशन और किसान सम्मान निधि जैसी योजनाएं वोटरों को प्रभावित कर सकती हैं। टोल टैक्स में छूट से मध्यम वर्ग खुश है। एमवीए इन योजनाओं को नाकाफी बता रही है और भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठा रही है।

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