महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों सियासी हलचल तेज हो गई है। वजह है मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का बड़ा फैसला। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल के कामकाज का ‘परफॉर्मेंस ऑडिट’ कराने की घोषणा की है। सूत्रों की मानें तो ये सिर्फ औपचारिक समीक्षा नहीं, बल्कि एक ऐसी रिपोर्ट है जो कई मंत्रियों की कुर्सी हिला सकती है।
दरअसल, 5 दिसंबर को फडणवीस सरकार का एक साल पूरा हो रहा है। इसी मौके पर वे अपनी सरकार के प्रदर्शन का पूरा ऑडिट करवाने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि रिपोर्ट तैयार होने के बाद कई मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
क्या गुजरात मॉडल दोहराने की तैयारी?
हाल ही में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने अपने पूरे मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल किया था। अब चर्चा है कि महाराष्ट्र में भी वैसी ही सर्जरी हो सकती है। हालांकि फडणवीस ने इसे फिलहाल नकारते हुए कहा, “गुजरात में बदलाव ढाई साल बाद हुआ, हमारे तो अभी एक साल भी पूरे नहीं हुए हैं।” लेकिन राजनीतिक गलियारों में ये बयान संकेत माना जा रहा है कि मंत्रियों के ऊपर तलवार जरूर लटक रही है।
किन मंत्रियों पर मंडरा रहा खतरा?
महाराष्ट्र विधानसभा के मॉनसून सत्र के दौरान तीन मंत्री लगातार विवादों में रहे –
योगेश कदम (गृह एवं राजस्व मंत्री) – रत्नागिरी में अवैध रेत खनन और मुंबई में उनकी मां के नाम पर डांस बार चलाने के आरोप।
संजय शिरसाट (सामाजिक न्याय मंत्री) – उनके बेटे पर होटल नीलामी में कथित अनियमितताओं के आरोप।
संजय राठौड़ (मृदा एवं जल संरक्षण मंत्री) – विभागीय तबादलों में भ्रष्टाचार के आरोप।
इन तीनों पर फडणवीस के करीबी नेताओं ने ही सवाल उठाए हैं। ऐसे में समीक्षा रिपोर्ट के बाद इनकी कुर्सी पर खतरा तय माना जा रहा है।
सहयोगी दलों में बेचैनी
ये ऑडिट खबर सामने आने के बाद एकनाथ शिंदे गुट और अजित पवार की एनसीपी के बीच खलबली मच गई है। माना जा रहा है कि कुछ मंत्री जो भ्रष्टाचार या अनियमितताओं के आरोपों में घिरे हैं, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
विपक्ष का पलटवार
उद्धव ठाकरे गुट के नेता अंबादास दानवे ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा, “हमें उम्मीद है कि मुख्यमंत्री कम से कम भ्रष्ट मंत्रियों को बर्खास्त करेंगे। महायुति सरकार अकुशल नेताओं से भरी है।”
देवेंद्र फडणवीस का ये कदम सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी है। एक ओर वे मंत्रियों को जवाबदेही का अहसास करा रहे हैं, तो दूसरी ओर विपक्ष और जनता के बीच अपनी छवि सुधारने की कोशिश भी कर रहे हैं। अब देखने वाली बात ये होगी कि 5 दिसंबर के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में कौन-कौन से चेहरे टिके रहेंगे और कौन अपनी कुर्सी गंवाएगा।
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