Farmers Loan Waiver: महाराष्ट्र में पिछले कुछ दिनों से एक खबर हर तरफ चर्चा में है। विधानसभा चुनाव के दौरान महायुति सरकार ने बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन अब उन वादों को पूरा करने की बात आते ही सरकार का रुख बदल गया है। “किसान कर्ज माफी” (Farmers Loan Waiver) का वादा, जो चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा था, अब हवा में लटकता दिख रहा है। कांग्रेस नेता हर्षवर्धन सपकाल ने इस पर तंज कसते हुए कहा कि उपमुख्यमंत्री अजित पवार “गजनी सिंड्रोम” से पीड़ित हैं, यानी वे पुरानी बातें भूल गए हैं। यह कहानी आज की नई पीढ़ी के लिए इसलिए खास है, क्योंकि यह दिखाती है कि वादों और हकीकत में कितना फर्क हो सकता है।
चुनाव के दिनों में महायुति ने किसानों और महिलाओं के लिए कई सपने दिखाए थे। किसानों से कहा गया था कि उनकी फसलों के कर्ज माफ होंगे, और महिलाओं को “लाडकी बहन योजना” के तहत हर महीने 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये दिए जाएंगे। उस वक्त ये वादे सुनकर लोग खुश हुए थे। किसानों को लगा कि अब उनकी मुश्किलें कम होंगी, और महिलाओं को उम्मीद जगी कि उनकी जिंदगी थोड़ी आसान होगी। लेकिन सत्ता में आने के बाद सरकार ने हाथ खड़े कर दिए। अजित पवार ने साफ कहा कि राज्य की वित्तीय हालत ऐसी नहीं है कि “किसान कर्ज माफी” (Farmers Loan Waiver) दी जा सके। उन्होंने किसानों से कहा कि वे 31 मार्च से पहले अपने कर्ज की किस्तें चुका दें, क्योंकि कोई माफी नहीं मिलने वाली।
हर्षवर्धन सपकाल ने इस फैसले पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि बुवाई का मौसम आने वाला है, और ऐसे में किसानों को कर्ज से राहत देना जरूरी है। उनका कहना है कि अगर सरकार में थोड़ी भी सच्चाई बची है, तो उसे केंद्र से खास पैकेज मांगना चाहिए। सपकाल ने महायुति के नेताओं की तुलना फिल्म “गजनी” के किरदार से की, जो हर कुछ देर बाद अपनी याददाश्त खो देता है। उनका कहना था कि चुनाव में बड़े-बड़े वादे करने वाले नेता अब सब भूल गए हैं। यह बात नई पीढ़ी को सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वादे सिर्फ वोट लेने के लिए थे।
इस मामले में और गहराई से देखें तो पता चलता है कि महायुति का रुख अचानक बदला है। अजित पवार ने बारामती में एक सभा में कहा था कि मौजूदा हालात में कर्ज माफी संभव नहीं है। इससे पहले चुनावी सभाओं में “महायुति के चुनावी वादे” (Mahayuti Election Promises) की खूब चर्चा हुई थी। किसानों ने सोचा था कि उनकी मेहनत का बोझ हल्का होगा, लेकिन अब उन्हें फिर से कर्ज चुकाने का दबाव झेलना पड़ रहा है। सपकाल ने यह भी कहा कि बजट सत्र में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया। उनका आरोप है कि सरकार ने जनता के असली मुद्दों को छोड़कर औरंगजेब की कब्र जैसे बेकार के मुद्दे उठाए।
किसानों की बात करें तो उनकी परेशानी समझना मुश्किल नहीं है। बुवाई के लिए पैसे चाहिए, लेकिन कर्ज का बोझ पहले से ही सिर पर है। महायुति ने वादा किया था कि वे इस बोझ को हटाएंगे, पर अब किसान खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सपकाल ने कहा कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मंच पर सिर्फ भाषण दे रहे हैं, जैसे कोई नाटक कर रहे हों। उनका कहना है कि “महायुति के चुनावी वादे” (Mahayuti Election Promises) अब सिर्फ कागज पर रह गए हैं। यह बात नई पीढ़ी के लिए एक सबक है कि वादों पर भरोसा करने से पहले उनकी सच्चाई परखनी चाहिए।
इस खबर ने सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी है। लोग महायुति सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। कोई कह रहा है कि यह किसानों के साथ धोखा है, तो कोई इसे राजनीति का खेल बता रहा है। सपकाल ने यह भी दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की नागपुर यात्रा से लगता है कि वे भी इस मामले से परेशान हैं। उनका कहना था कि मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर रुख किया, क्योंकि उनकी कुर्सी खतरे में दिख रही है। यह बात कितनी सच है, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन अभी यह चर्चा का विषय बनी हुई है।
महाराष्ट्र की यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। किसान अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहे हैं, और विपक्ष सरकार पर दबाव बना रहा है। हर दिन इस मामले में कुछ नया सामने आ रहा है। लोग इसे देख रहे हैं, और खासकर नई पीढ़ी इसे समझने की कोशिश कर रही है। यह एक ऐसी कहानी है जो हमें सोचने पर मजबूर करती है कि वादे और उनकी सच्चाई के बीच कितना फासला हो सकता है।
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