गुरु पूर्णिमा, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पावन पर्व है जो हमारी गुरु-शिष्य परंपरा की गहराई और महत्व को दर्शाता है। यह त्यौहार हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि ज्ञान, विद्या और आध्यात्मिकता का एक महोत्सव भी है। आइए इस पवित्र दिन के विभिन्न पहलुओं पर एक गहरी नजर डालें और समझें कि यह हमारे जीवन में क्यों इतना महत्वपूर्ण है।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास और महत्व गहरा और बहुआयामी है। यह दिन कई कारणों से विशेष माना जाता है:
- वेद व्यास जयंती: गुरु पूर्णिमा को वेद व्यास जयंती के रूप में भी जाना जाता है। महर्षि वेद व्यास, जिन्होंने चारों वेदों का संकलन किया और महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की, का जन्मदिन इसी दिन मनाया जाता है। वेद व्यास को “गुरुओं का गुरु” माना जाता है, क्योंकि उन्होंने ज्ञान को संरक्षित और प्रसारित करने में अतुलनीय योगदान दिया।
- बौद्ध परंपरा में महत्व: बौद्ध धर्म में यह दिन और भी विशेष है। माना जाता है कि इसी दिन गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था, जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है। यह उपदेश बौद्ध धर्म की नींव बना और इससे बुद्ध के पांच शिष्यों ने ज्ञान प्राप्त किया।
- गुरु के प्रति कृतज्ञता: गुरु पूर्णिमा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना। गुरु शब्द का अर्थ है “अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला”। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, जो उन्हें ज्ञान, मार्गदर्शन और जीवन की सही राह दिखाते हैं।
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि अत्यंत महत्वपूर्ण और विस्तृत है। इस दिन की पूजा में कई चरण शामिल हैं:
- प्रातः स्नान: दिन की शुरुआत प्रातःकाल स्नान से होती है। कई लोग इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना पसंद करते हैं। अगर यह संभव न हो, तो घर पर स्नान करते समय जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाया जा सकता है।
- व्रत और संकल्प: कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं। व्रत का संकल्प लेने के बाद, घर के मंदिर में दीप जलाया जाता है।
- देवी-देवताओं की पूजा: सभी देवी-देवताओं का गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। विशेष रूप से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
- सात्विक भोग: भगवान को केवल सात्विक भोग लगाया जाता है। भोग में तुलसी का पत्ता अवश्य शामिल किया जाता है।
- गुरु पूजन: अपने गुरु का ध्यान करना और उनका आशीर्वाद लेना इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर घर में महर्षि वेद व्यास की प्रतिमा है, तो उनका विशेष पूजन किया जाता है।
- चंद्र पूजा: चंद्रोदय के बाद चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व है।
- दान और सेवा: इस दिन जरूरतमंदों को दान देना और गौ सेवा करना शुभ माना जाता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष मंत्र का जाप भी किया जाता है। “ॐ बृं बृहस्पतये नमः” मंत्र का 108 बार जाप करने से कुंडली में गुरु की स्थिति मजबूत होती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है, ऐसी मान्यता है।
गुरु पूर्णिमा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह हमें अपने जीवन में ज्ञान और मार्गदर्शन के महत्व को समझने का अवसर देता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे जीवन में कई लोग गुरु की भूमिका निभाते हैं – वे हो सकते हैं हमारे माता-पिता, शिक्षक, मित्र या कोई भी जो हमें जीवन की सही राह दिखाता है।
इस दिन को मनाने का एक गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है। यह हमें अपने जीवन में मिले मार्गदर्शन और सहायता के प्रति कृतज्ञ होने का अवसर देता है। यह कृतज्ञता हमें और अधिक विनम्र और संवेदनशील बनाती है, जो हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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