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Religious Trees: महाभारत-रामायण काल के पेड़-पौधों का होगा दर्शन, उत्तराखंड के हरिद्वार में धर्मग्रंथों में वर्णित वृक्षों का कलेक्शन

Religious Trees: महाभारत-रामायण काल के पेड़-पौधों का होगा दर्शन, उत्तराखंड के हरिद्वार में धर्मग्रंथों में वर्णित वृक्षों का कलेक्शन

Religious Trees: हरिद्वार की पवित्र धरती पर अब एक ऐसी जगह तैयार हो चुकी है, जहां प्राचीन धर्मग्रंथों में वर्णित पेड़-पौधों का दर्शन किया जा सकता है। उत्तराखंड के श्यामपुर क्षेत्र में वन विभाग की रिसर्च विंग ने लगभग 50 एकड़ के विशाल क्षेत्र में एक नेचर लर्निंग सेंटर बनाया है, जो प्रकृति और धर्म के बीच एक अनोखा संगम प्रस्तुत करता है। यह सेंटर धर्मग्रंथों के वृक्ष (Religious Trees) और प्राचीन वनस्पति (Ancient Flora) को संरक्षित करने का एक अनुपम प्रयास है। यहां न केवल हिंदू धर्म के ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में उल्लेखित पेड़-पौधे मौजूद हैं, बल्कि सिख, इस्लाम और ईसाई धर्मग्रंथों में वर्णित वृक्षों का भी संग्रह किया गया है। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों, धार्मिक लोगों और नई पीढ़ी के लिए एक अनमोल उपहार है।

पृथ्वी दिवस के अवसर पर इस सेंटर का उद्घाटन हुआ, जिसने हरिद्वार को प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण के क्षेत्र में एक नया मुकाम दिलाया। मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इस सेंटर का उद्देश्य उन पेड़-पौधों को सहेजना है, जो हमारे धर्मग्रंथों में विशेष स्थान रखते हैं। यहां कपूर, पारिजात, बेल और चंदन जैसी वाटिकाएं बनाई गई हैं, जो न केवल देखने में सुंदर हैं, बल्कि इनका धार्मिक और औषधीय महत्व भी है। उदाहरण के लिए, पारिजात का वृक्ष, जिसका जिक्र महाभारत में मिलता है, अपनी खास सुगंध और सुंदरता के लिए जाना जाता है। इसी तरह, बेल का पेड़ भगवान शिव की पूजा में विशेष महत्व रखता है।

इस सेंटर की एक खासियत यह है कि यहां सिख धर्म में वर्णित 40 प्रजातियों के वृक्ष लगाए गए हैं। इन वृक्षों के नामों पर ही सिख धर्म के चालीस गुरुद्वारों के नाम रखे गए हैं। यह सिख समुदाय के लिए एक गर्व का विषय है कि उनकी धार्मिक विरासत को इस तरह प्रकृति के साथ जोड़ा गया है। इसके अलावा, वाल्मीकि रामायण में उल्लिखित 138 प्रजातियों के वृक्षों में से अधिकांश को यहां देखा जा सकता है। इनमें से कई वृक्ष भगवान राम के वनवास के दौरान उनके मार्ग में आए थे। ग्रीन रामायण वाटिका में इन वृक्षों को इस तरह व्यवस्थित किया गया है कि यह रामायण के दृश्यों को जीवंत करता है।

हरिद्वार का यह नेचर लर्निंग सेंटर केवल हिंदू या सिख धर्म तक सीमित नहीं है। यहां एक सर्व धर्म वाटिका भी बनाई गई है, जिसमें इस्लाम, ईसाई और बौद्ध धर्मग्रंथों में वर्णित पेड़-पौधे शामिल हैं। कुरान में उल्लिखित खजूर, अनार और अंगूर की प्रजातियां यहां अपनी पूरी शोभा के साथ मौजूद हैं। बाइबिल में वर्णित क्रिसमस ट्री और पॉपुलर के पेड़ भी इस वाटिका का हिस्सा हैं। बौद्ध धर्म से जुड़े साल, अशोक, जामुन और पीपल जैसे वृक्षों को बुद्ध वाटिका में जगह दी गई है। यह सर्व धर्म वाटिका भारत की एकता और विविधता का प्रतीक है, जो सभी धर्मों को एक मंच पर लाती है।

इस सेंटर का एक और आकर्षण है धनवंतरी वाटिका, जिसमें औषधीय गुणों वाले करीब 50 प्रकार के पौधे लगाए गए हैं। इनमें वाइट जिंजर लिली जैसे पौधे शामिल हैं, जो उत्तराखंड के जंगलों में पाए जाते हैं और महाभारत में भी इनका उल्लेख मिलता है। यह वाटिका न केवल स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान को भी जीवित रखने का प्रयास है। इसके अलावा, तुलसी वाटिका में 20 प्रकार की तुलसियों का संग्रह है, जो भारतीय संस्कृति में पूजनीय हैं। तुलसी को केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि इसके औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है।

उत्तराखंड की जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए इस सेंटर में एक विशेष वाटिका बनाई गई है, जिसमें संकटग्रस्त प्रजातियां जैसे विषपत्री और निंजड शामिल हैं। ये पौधे न केवल पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उत्तराखंड की प्राकृतिक धरोहर का हिस्सा भी हैं। संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इस सेंटर का उद्देश्य लोगों को प्रकृति के करीब लाना और विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाना है। यहां आने वाले लोग न केवल पेड़-पौधों के बारे में जान सकेंगे, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति, धर्म और प्रकृति से भी जुड़ सकेंगे।

इस सेंटर में सभी राज्यों के मुख्य पेड़ और फूलों की प्रजातियों को भी शामिल किया गया है। उदाहरण के लिए, रीठा, बेर, इमली और शीशम जैसे पेड़, जो सिख धर्म में महत्वपूर्ण हैं, यहां अपनी विविध प्रजातियों के साथ मौजूद हैं। यह सेंटर एक जीवंत संग्रहालय की तरह है, जो प्रकृति और धर्म के बीच गहरा संबंध दर्शाता है। धर्मग्रंथों के वृक्ष और प्राचीन वनस्पति को देखने के लिए यह स्थान हरिद्वार आने वाले हर व्यक्ति के लिए एक अनिवार्य पड़ाव बन गया है।

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