मुंबई

इंद्राणी मुखर्जी डॉक्यूमेंट्री मामले में हाई कोर्ट का बड़ा फ़ैसला, नेटफ्लिक्स को देने होंगे बाकी गवाहों के विवरण

इंद्राणी मुखर्जी डॉक्यूमेंट्री
इंद्राणी मुखर्जी पर बनी डॉक्यूमेंट्री के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने नेटफ्लिक्स को निर्देश दिया है कि वह कोर्ट को उन गवाहों के बारे में जानकारी दे, जिन्हें मामले में अभी पेश होना है।

शीना बोरा हत्याकांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इस केस में कई सनसनीखेज़ खुलासे हुए थे। इंद्राणी मुखर्जी की गिरफ्तारी के बाद से यह केस लगातार सुर्खियों में रहा है।

शीना बोरा हत्याकांड की मुख्य आरोपी इंद्राणी मुखर्जी पर बनी डॉक्यूमेंट्री के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनवाई की। कोर्ट में सीबीआई ने इस डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगाने के लिए याचिका दाखिल की थी।

इंद्राणी मुखर्जी डॉक्यूमेंट्री

सीबीआई की याचिका के बाद कोर्ट ने नेटफ्लिक्स को आदेश दिया है कि वह उन गवाहों की जानकारी उपलब्ध कराए जिनका केस में बयान होना बाकी है। न्यायमूर्ति रेवती डेरे और न्यायमूर्ति मंजुषा देशपांडे की खंडपीठ ने सीबीआई की याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया।

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कोर्ट में सीबीआई की ओर से कहा गया कि डॉक्यूमेंट्री दिखाए जाने से केस के बाकी गवाहों की गवाही प्रभावित हो सकती है। ऐसे में न्याय मिलने की प्रकिया बाधित हो सकती है। अभियोजन पक्ष को यह आशंका है कि डॉक्यूमेंट्री के ज़रिए जनता की राय को एक खास दिशा में ले जाने का प्रयास किया जा सकता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में कठिनाई पैदा हो सकती है। सीबीआई ने यह भी कहा कि इंद्राणी की ज़मानत शर्तों का उल्लंघन हो रहा है और वे उनकी ज़मानत रद्द करने के लिए अर्ज़ी देने पर विचार कर रहे हैं।

वहीं नेटफ्लिक्स की तरफ से वरिष्ठ वकील रवि कदम ने दलील दी कि इस मामले से जुड़े सभी तथ्य पहले से ही सार्वजनिक हैं। इंद्राणी ख़ुद एक किताब लिख चुकी हैं। ऐसे में डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगाना अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के ख़िलाफ़ होगा। नेटफ्लिक्स की ओर से यह भी कहा गया कि यह कहना मुश्किल है कि मुकदमा कब तक चलेगा, ऐसे में डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन को अनिश्चितकाल तक के लिए रोकना उचित नहीं होगा।

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भारत में किसी भी आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक अदालत उसे अपराधी साबित नहीं कर देती। हालाँकि, हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामलों को लेकर मीडिया कवरेज अक्सर जनता की राय को प्रभावित करता है। इस तरह के मामलों में संतुलन बनाना बेहद ज़रूरी होता है।

अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ-साथ आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई मिलने का अधिकार भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस मामले में कोर्ट को इस बात पर फैसला करना है कि क्या इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने से आरोपी को मिलने वाले न्याय के अधिकार को प्रभावित होगा।

अब सीबीआई कोर्ट में गवाहों के बारे में जानकारी देगी। इसके बाद कोर्ट आगे का फ़ैसला लेगा कि डॉक्यूमेंट्री को दिखाया जा सकता है या नहीं। यह मामला कई महत्वपूर्ण कानूनी पहलुओं को उठाता है, इसलिए कोर्ट का फ़ैसला सबको इंतज़ार रहेगा।

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