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3-Language Policy Withdrawn: हिंदी को अनिवार्य बनाने का फैसला रद्द, सरकार को झुकना पड़ा

3-Language Policy Withdrawn: हिंदी को अनिवार्य बनाने का फैसला रद्द, सरकार को झुकना पड़ा

3-Language Policy Withdrawn: महाराष्ट्र में हिंदी थोपने (Hindi imposition) का विवाद हाल ही में तब सुर्खियों में आया जब राज्य सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में त्रिभाषा नीति लागू करने के लिए दो सरकारी आदेश जारी किए। यह नीति मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात कहती थी। लेकिन जैसे ही यह फैसला सामने आया, विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इसका तीव्र विरोध शुरू कर दिया। उनकी आपत्ति थी कि यह नीति मराठी भाषा और संस्कृति पर हिंदी को थोपने (Hindi imposition) की कोशिश है, जो महाराष्ट्र की पहचान को कमजोर कर सकती है।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मुद्दे पर बढ़ते दबाव को देखते हुए रविवार, 29 जून 2025 को मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने घोषणा की कि सरकार ने अप्रैल और जून में जारी किए गए दोनों सरकारी आदेशों को वापस ले लिया है। यह फैसला राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया। फडणवीस ने यह भी बताया कि त्रिभाषा नीति (three-language policy) को लागू करने के लिए अब एक नई समिति बनाई जाएगी, जिसके अध्यक्ष शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव होंगे। यह समिति सभी हितधारकों से चर्चा करने के बाद नीति के कार्यान्वयन पर सुझाव देगी। समिति को अपना अध्ययन पूरा करने और रिपोर्ट सौंपने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है।

इस विवाद की शुरुआत अप्रैल 2024 में हुई, जब सरकार ने पहला आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाएगा। इस फैसले ने तुरंत विवाद को जन्म दिया। विपक्षी दलों, खासकर शिवसेना (यूबीटी), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) ने इसे हिंदी को थोपने (Hindi imposition) का प्रयास बताया। मराठी भाषा के समर्थकों ने भी इस कदम को मराठी संस्कृति और भाषा के लिए खतरा माना। उनके अनुसार, इतनी कम उम्र के बच्चों पर तीसरी भाषा का बोझ डालना उनकी शिक्षा पर नकारात्मक असर डाल सकता है।

विरोध बढ़ने के बाद सरकार ने जून में अपने आदेश में संशोधन किया। नए आदेश में हिंदी को वैकल्पिक भाषा बना दिया गया और कहा गया कि अगर किसी स्कूल में कम से कम 20 छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को पढ़ना चाहते हैं, तो स्कूल को उसकी व्यवस्था करनी होगी। लेकिन यह संशोधन भी विवाद को शांत करने में नाकाम रहा। विपक्ष और मराठी संगठनों ने इसे हिंदी को थोपने (Hindi imposition) की कोशिश का एक और रूप बताया।

विरोध का नेतृत्व करते हुए शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ तीखा रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसे जबरदस्ती लागू करने का विरोध करती है। मुंबई के आजाद मैदान में आयोजित एक विरोध प्रदर्शन में उद्धव ने जून के आदेश की प्रतियां जलाकर अपना रोष जताया। उन्होंने कहा कि मराठी को हाशिए पर धकेलने की कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उद्धव ने यह भी आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी मराठी और गैर-मराठी लोगों के बीच भाषा के आधार पर विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रही है।

इस प्रदर्शन में उद्धव ठाकरे के साथ उनके चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे भी शामिल होने वाले थे। दोनों नेताओं ने 5 जुलाई को एक संयुक्त मार्च की योजना बनाई थी, लेकिन सरकार के आदेश वापस लेने के फैसले के बाद यह मार्च रद्द कर दिया गया। उद्धव ने इस मौके को मराठी एकता की जीत बताया और घोषणा की कि 5 जुलाई को अब विरोध के बजाय मराठी एकता का उत्सव मनाया जाएगा।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी स्पष्ट किया कि उनकी सरकार मराठी भाषा को अनिवार्य बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए कहा कि जब उद्धव मुख्यमंत्री थे, तब उनकी सरकार ने डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था, जिसमें कक्षा एक से बारह तक त्रिभाषा नीति (three-language policy) लागू करने की बात कही गई थी। फडणवीस ने दावा किया कि उद्धव अब इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं, जबकि उनकी सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि मराठी अनिवार्य रहेगी और हिंदी को वैकल्पिक बनाया गया है।

इस पूरे विवाद ने महाराष्ट्र में भाषा की राजनीति को एक बार फिर गरमा दिया। मराठी भाषा और संस्कृति को लेकर संवेदनशीलता इस राज्य में हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रही है। सरकार के इस फैसले को वापस लेने से फिलहाल तनाव कम हुआ है, लेकिन नई समिति की सिफारिशें इस मुद्दे को भविष्य में फिर से चर्चा में ला सकती हैं।

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