Hope for freedom from debt: आज की दुनिया में जहां हर कोई अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश में लगा है, वहीं महाराष्ट्र के वाशिम जिले में एक किसान की कहानी ने सबका दिल दहला दिया है। सतीश इडोले, जो अदोली गांव के रहने वाले हैं, ने अपने कंधों पर कर्ज का इतना बोझ उठा लिया कि उन्हें अपनी जिंदगी का सबसे मुश्किल फैसला लेना पड़ा। उन्होंने अपने शरीर के अंगों को बेचने का ऐलान कर दिया, ताकि वो अपने परिवार को इस आर्थिक संकट से बचा सकें। उनकी यह कहानी न सिर्फ दुखद है, बल्कि हमारे समाज और सरकार के सामने कई सवाल भी खड़े करती है।
सतीश ने एक तख्ती अपने गले में लटकाई, जिस पर लिखा था – “किसानों के अंग खरीदें”। इस तख्ती पर उन्होंने अपने गुर्दे (kidney) की कीमत 75,000 रुपये और जिगर (liver) की कीमत 90,000 रुपये लिखी थी। उनकी आंखों की कीमत 25,000 रुपये तय की गई। यह दृश्य वाशिम के बाजार में देखने को मिला, जहां लोग ठिठक कर उनकी तख्ती को पढ़ने लगे। यह कोई साधारण प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक किसान की मजबूरी की चीख थी, जो सरकार से किए गए वादों के पूरा न होने से टूट चुका था। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, और लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया।
सतीश की परेशानी तब शुरू हुई जब महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने चुनाव से पहले किसानों से वादा किया था कि उनके कर्ज माफ कर दिए जाएंगे। लेकिन चुनाव के बाद सरकार का रुख बदल गया। अब किसानों से कहा जा रहा है कि उन्हें अपने कर्ज खुद चुकाने होंगे। सतीश ने पत्रकारों से बात करते हुए अपनी बेबसी जाहिर की। उन्होंने कहा कि उनके पास दो एकड़ जमीन है, जिस पर खेती करके वो अपने परिवार का पेट पालते हैं। महाराष्ट्र बैंक से लिया गया एक लाख रुपये का कर्ज अब उनके लिए पहाड़ बन गया है। फसल से होने वाली कमाई इतनी कम है कि कर्ज चुकाना तो दूर, घर चलाना भी मुश्किल हो गया है।
इस मजबूरी में सतीश ने न सिर्फ अपने अंगों को बेचने का फैसला किया, बल्कि अपने परिवार के अंगों की भी कीमत तय कर दी। उन्होंने अपनी पत्नी के गुर्दे की कीमत 40,000 रुपये, अपने बेटे के गुर्दे की कीमत 20,000 रुपये और सबसे छोटे बच्चे के गुर्दे की कीमत 10,000 रुपये रखी। यह सुनकर किसी का भी दिल पसीज जाए। सतीश का कहना था कि उनके अपने अंगों से कर्ज पूरा नहीं होगा, इसलिए परिवार को भी इस बोझ में शामिल करना पड़ा। यह एक ऐसी सच्चाई है जो हमारे सामने यह सवाल लाती है कि क्या किसानों की जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है?
वाशिम के इस किसान ने अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए जिला कलेक्टर के कार्यालय के जरिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को एक पत्र भी भेजा। इस पत्र में उन्होंने लिखा कि अगर सरकार अपने वादे पूरे नहीं करती, तो उनके पास आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। सतीश ने बताया कि उनकी फसल, खासकर सोयाबीन, की कीमत बाजार में सिर्फ 3,000 रुपये प्रति क्विंटल है। इतनी कम कीमत में न तो कर्ज चुकाया जा सकता है और न ही परिवार का भरण-पोषण हो सकता है।
हाल ही में उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने भी साफ कर दिया कि सरकार किसानों के कर्ज माफ करने के मूड में नहीं है। उनका कहना था कि किसानों को अपने कर्ज की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी। इस बयान ने सतीश जैसे कई किसानों के घावों पर नमक छिड़कने का काम किया। सतीश ने सरकार की इस नीति की आलोचना करते हुए कहा कि चुनाव से पहले 7/12 (जमीन के दस्तावेज) को साफ करने का वादा किया गया था, लेकिन अब उल्टा कर्ज चुकाने का दबाव डाला जा रहा है। उनका कहना था कि किसानों को न तो उनकी फसल का सही दाम मिल रहा है और न ही कोई राहत।
यह कहानी सिर्फ सतीश की नहीं, बल्कि उन तमाम किसानों की है जो हर दिन अपनी मेहनत से देश का पेट भरते हैं, लेकिन बदले में उन्हें सिर्फ निराशा मिलती है। सतीश का यह कदम हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर एक इंसान को अपनी जिंदगी के इस मोड़ पर क्यों आना पड़ता है। उनकी तख्ती पर लिखे शब्द – “किसानों के अंग खरीदें” (Buy farmers’ organs) और “कर्ज से आजादी” (Freedom from debt) – आज के युवाओं के लिए भी एक बड़ा संदेश हैं। यह हमें बताता है कि समाज में अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है।
#FarmersProtest #MaharashtraFarmers #LoanWaiver #SatishIdole #AgricultureCrisis
ये भी पढ़ें: बप्पा के दरबार में धन की बरसात, सिद्धिविनायक मंदिर ने बनाया कमाई का रिकॉर्ड