महाराष्ट्र में मुगल शासक औरंगजेब की कब्र को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बार राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने एक नया कदम उठाकर इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। मनसे कार्यकर्ताओं ने छत्रपति संभाजीनगर जिले में औरंगजेब की कब्र की दूरी बताने वाले बोर्ड लगाए हैं, जिससे ये विवाद और गहरा गया है। आइए जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में विस्तार से।
मनसे ने लगाए दूरी बताने वाले बोर्ड
मनसे ने छत्रपति संभाजीनगर जिले के अलग-अलग इलाकों में बोर्ड लगाए हैं, जिन पर औरंगजेब की कब्र की दूरी लिखी गई है। इन बोर्ड्स का मकसद लोगों को ये बताना है कि औरंगजेब की कब्र उनके आसपास के स्थानों से कितनी दूर है। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:
- क्रांतिचौक से 27 किलोमीटर
- जिला न्यायालय से 26 किलोमीटर
- बाबा पेट्रोल पंप से 25 किलोमीटर
- होली क्रॉस स्कूल से 24 किलोमीटर
- नगर नाका से 23 किलोमीटर
- पडेगांव से 21 किलोमीटर
- शरणपुर से 14 किलोमीटर
मनसे कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन बोर्ड्स को लगाने का उद्देश्य ये जागरूकता फैलाना है कि “जो दुश्मन हम पर हमला करने आया था, उसे कहां दफनाया गया है।” उनका मानना है कि ये इतिहास की जानकारी हर किसी तक पहुंचनी चाहिए।
राज ठाकरे का बड़ा बयान
इससे पहले, गुढ़ी पड़वा के मौके पर मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने औरंगजेब की कब्र को लेकर एक सख्त बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि औरंगजेब की कब्र से सारी सजावट हटाकर उसे एक साधारण कब्र की तरह रखा जाना चाहिए। साथ ही वहां एक बोर्ड लगाया जाना चाहिए, जिस पर लिखा हो- “हम मराठों को समाप्त करने आया था, उसे यहीं गाड़ा गया है।”
राज ठाकरे ने ये भी जोड़ा कि ये इतिहास हर युवा और स्कूली बच्चे को पता होना चाहिए। उनका कहना था कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को ये जानना जरूरी है कि जो हमसे दुश्मनी लेने आया था, उसे कहां दफन किया गया।
कहां है औरंगजेब की कब्र?
औरंगजेब की कब्र छत्रपति संभाजीनगर जिले के खुलदाबाद में स्थित है। पहले इस जिले का नाम औरंगाबाद था, लेकिन महायुति सरकार ने इसे बदलकर मराठा योद्धा वीर संभाजी महाराज के नाम पर रखा। खुलदाबाद में स्थित ये कब्र समय-समय पर विवादों का केंद्र बनी रहती है।
क्यों उठा ये कदम?
मनसे का ये कदम न सिर्फ राजनीतिक बल्कि ऐतिहासिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से भी देखा जा रहा है। औरंगजेब को मराठा इतिहास में एक आक्रांता के रूप में याद किया जाता है, जिसने छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके वंशजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े। मनसे कार्यकर्ताओं का मानना है कि इन बोर्ड्स के जरिए वे लोगों को इतिहास से जोड़ रहे हैं और ये संदेश दे रहे हैं कि मराठा गौरव को कोई भुला नहीं सकता।
महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर ये विवाद नया नहीं है, लेकिन मनसे के इस कदम ने इसे एक नई दिशा दी है। ये देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर अन्य राजनीतिक दलों और समाज की क्या प्रतिक्रिया रहती है। क्या ये कदम सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है या वास्तव में इतिहास को जिंदा करने की कोशिश, ये तो वक्त ही बताएगा।