महाराष्ट्र

‘जिंदा जला दूंगा!’ – रोहित आर्य का डरावना ड्रामा, 4 घंटे बाद पुलिस की गोली ने लिखा अंत, पढ़ें क्राइम की हैरान करने वाली वारदात

रोहित आर्य
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कल्पना कीजिए, मुंबई के हलचल भरे पवई इलाके में एक फिल्म स्टूडियो, जहां मासूम बच्चे ऑडिशन के बहाने आए हैं। अचानक दरवाजे बंद, चीखें गूंजने लगती हैं, और एक शख्स धमकी देता है, “मेरी मांगें मानो, वरना इन सबको जिंदा जला दूंगा!” ये कोई बॉलीवुड थ्रिलर का सीन नहीं था, बल्कि गुरुवार दोपहर का वो चार घंटे का हाई-वोल्टेज ड्रामा, जिसने पूरे शहर को सांसें थामने पर मजबूर कर दिया। मुख्य किरदार? रोहित आर्य – एक टैलेंटेड फिल्ममेकर, जो शायद सरकारी धोखे से टूट चुका था और बागी बन गया। आखिरकार, पुलिस के एनकाउंटर में उसे गोली लगी, और 17 बच्चे सुरक्षित बाहर आए। लेकिन ये कहानी सिर्फ एक्शन की नहीं, बल्कि एक इंसान के टूटते सपनों और सिस्टम की लापरवाही की है। चलिए, इस ड्रामे की परतें खोलते हैं।

रोहित आर्य: सपनों से सड़कों तक का सफर, जो बदला एक विद्रोह में
रोहित आर्य, पुणे का रहने वाला एक क्रिएटिव सोल। वो फिल्में बनाता था, स्कूलों के लिए प्रोजेक्ट डिजाइन करता था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार के ‘माझी शाला, सुंदर शाला’ प्रोजेक्ट ने उसकी जिंदगी उलट दी। रोहित का दावा था कि सरकार ने उसके आइडिया, स्क्रिप्ट और फिल्म ‘लेट्स चेंज’ को चुरा लिया। शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर के समय में मिले 2 करोड़ के टेंडर का पैसा आज तक नहीं मिला। जॉइंट सेक्रेटरी महाजन ने जांच का बहाना बनाकर फाइल अटका दी।

रोहित ने विरोध किया, भूख हड़ताल की, महीनों सड़कों पर उतरा। पुरानी रिपोर्ट्स बताती हैं कि मंत्री ने वादा किया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। डिप्रेशन में डूबा रोहित बोला था, “अगर इंसाफ न मिला तो केसरकर, मंगेश शिंदे, सूरज मांद्रे, तुषार महाजन और समीर सावंत जिम्मेदार होंगे मेरी मौत के लिए।” उसकी पत्नी ने भी चेतावनी दी थी, “मंत्री जी, अगर मेरा पति मर गया तो किसी को बख्शूंगी नहीं।” चेंबूर के अन्नपूर्णा बिल्डिंग के 9वें फ्लोर पर रिश्तेदार के फ्लैट में रहते हुए, वो पिछले चार महीनों से मानसिक तनाव में था। रिश्तेदार अमेरिका में थे, और रोहित ने गुरुवार सुबह 9 बजे घर छोड़ा, और सीधे आरए स्टूडियो आ गया।

चार घंटे का खौफ: बंधक बनाए बच्चे, धमकियां और चीखें
दोपहर 12 बजे रोहित आरए स्टूडियो पहुंचा। 12:30 बजे ऑडिशन के लिए 17 बच्चे आ गए। 1 बजे अचानक ताला लगा, और 19 लोग (बच्चों समेत) बंधक। कांच की खिड़कियों से बच्चों की चीखें बाहर गूंजीं – “हेल्प! हेल्प!” 1:15 बजे मुंबई पुलिस साइट पर।

दो घंटे चली नेगोशिएशन। सीनियर अफसर मनाते रहे, “भाई, तेरी हर शिकायत सुनेंगे, बस बच्चों को छोड़ दे।” लेकिन रोहित अड़ा रहा। उसने मोशन डिटेक्टर सेंसर लगाए थे हर दरवाजे-खिड़की पर, सीसीटीवी कैमरे एक तरफ मोड़ दिए, हवा में हवा की बंदूक और केमिकल सब्सटेंस तैयार। धमकी साफ था, “मांगें न मानीं तो इन सबको जिंदा जला दूंगा!”

एक वीडियो मैसेज वायरल हुआ, जिसमें रोहित बोला, “ये सब प्लान का हिस्सा है। पैसे की कोई बड़ी डिमांड नहीं, बस नैतिकता की बात। मैं टेररिस्ट नहीं, सवाल पूछना चाहता हूं।” पवई में हड़कंप मच गया, लोग भाग रहे, ट्रैफिक जाम। 3:30 बजे फायर ब्रिगेड बुलाई गई। 3:45 बजे वो पहुंचे, सेफ्टी गियर के साथ।

 

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ब्रेक-इन से एनकाउंटर तक
3:50 बजे फायर ब्रिगेड ने बाथरूम की खिड़की तोड़ी। क्विक रिस्पॉन्स टीम (क्यूआरटी) के तीन अफसर अंदर घुसे। जैसे ही एंट्री हुई, रोहित ने एयर गन चलाई। पुलिस को लगा असली पिस्टल है। सेल्फ-डिफेंस में एक इंस्पेक्टर ने रिवॉल्वर से गोली मारी, सीधे छाती पर। रोहित जमीन पर गिर पड़ा।

सब कुछ 10 मिनट में खत्म। 4 बजे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। 4:10 बजे तक सभी 17 बच्चे सुरक्षित बाहर निकाले गए। फायर ब्रिगेड ने कहा, “हमने सिर्फ एक्सेस दिया, बाकी ऑपरेशन पुलिस का कमाल।” सीन से एयर गन और केमिकल्स बरामद हुए, सेंसर डीएक्टिवेट किए गए।

जांच और सवालों का सिलसिला
मुंबई पुलिस ने एनकाउंटर की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए। सवाल उठे – ऑडिशन के बहाने बच्चों को कैसे लाया? हवा की बंदूक कैसे अंदर ले गया? चेंबूर वाले घर पर पुलिस पहुंची। रोहित का ये कदम उसके फाइनेंशियल क्राइसिस और मेंटल स्ट्रेस का नतीजा लगता है। लेकिन क्या सिस्टम ने उसे सुनी? क्या वो 2 करोड़ का इंसाफ मिला होता तो ये ड्रामा न होता?

ये घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है। सपनों का पीछा करने वाले कितने रोहित आज भी न्याय के लिए लड़ रहे हैं? बच्चे तो बच गए, लेकिन एक जिंदगी चली गई। मुंबई पुलिस को सलाम, जिन्होंने हिम्मत से हालात संभाले। अगर आपके पास ऐसी कोई स्टोरी है, कमेंट्स में शेयर करें। सुरक्षित रहें, जागरूक रहें!

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