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Impact of Invaders on Indian Science: इन्फोसिस के संस्थापक ने बताया कैसे हजार साल की गुलामी ने कर दी भारतीय विज्ञान की जड़ें खोखली

Impact of Invaders on Indian Science: इन्फोसिस के संस्थापक ने बताया कैसे हजार साल की गुलामी ने कर दी भारतीय विज्ञान की जड़ें खोखली
Impact of Invaders on Indian Science: भारत की वैज्ञानिक विरासत की कहानी अत्यंत रोचक और विचारोत्तेजक है, जो गौरव और पीड़ा दोनों से भरी हुई है। एक समय में विश्व का वैज्ञानिक नेतृत्व करने वाला देश हजार साल के विदेशी शासन में अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं को खो बैठा। इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने इस ऐतिहासिक सत्य को एक नए परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है।

भारतीय विज्ञान का पतन (Indian Science Decline) की कहानी वैदिक काल से शुरू होती है, जब भारत विश्व में गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और इंजीनियरिंग का केंद्र था। आर्यभट्ट, चरक, सुश्रुत जैसे महान वैज्ञानिकों ने विश्व को नई दिशा दी। इस दौरान भारत में शून्य की खोज से लेकर त्रिकोणमिति तक, आयुर्वेद से लेकर शल्य चिकित्सा तक, और खगोल विज्ञान से लेकर धातु विज्ञान तक में अभूतपूर्व प्रगति हुई। वैज्ञानिक विरासत (Scientific Heritage) को लगातार विदेशी आक्रमणों ने प्रभावित किया।

प्राचीन भारत में नालंदा, तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय वैज्ञानिक अध्ययन और शोध के प्रमुख केंद्र थे। यहां दुनिया भर से विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने आते थे। भारतीय गणितज्ञों ने बीजगणित, ज्यामिति और खगोलीय गणनाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आर्यभट्ट ने पाई का मान निकाला और पृथ्वी के परिभ्रमण की सटीक गणना की। वराहमिहिर ने खगोल विज्ञान में क्रांतिकारी खोज की।

सातवीं शताब्दी से शुरू हुआ विदेशी आक्रमणों का दौर भारतीय विज्ञान के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बना। उज्बेकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान तक के आक्रमणकारियों ने न केवल भारत की भौतिक संपदा को नष्ट किया, बल्कि यहां की वैज्ञानिक सोच और जिज्ञासा को भी कुचल दिया। नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश इस बर्बरता का सबसे बड़ा उदाहरण है। हमलावरों का भारतीय विज्ञान पर प्रभाव (Impact of Invaders on Indian Science) इतना गहरा था कि भारतीय समाज में विश्लेषणात्मक सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण लगभग समाप्त हो गया।

नारायण मूर्ति के अनुसार, यह हजार साल का काल खंड भारतीय विज्ञान के लिए अंधकार युग था। इस दौरान न केवल वैज्ञानिक प्रगति रुक गई, बल्कि युवा पीढ़ी में वैज्ञानिक जिज्ञासा भी समाप्त हो गई। विदेशी शासकों ने शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर दिया और वैज्ञानिक चिंतन को हतोत्साहित किया। हालांकि ब्रिटिश शासन ने कुछ हद तक आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा दिया, लेकिन यह प्रयास बहुत सीमित था और मुख्यतः प्रशासनिक आवश्यकताओं से प्रेरित था।

स्वतंत्रता के बाद भारत ने वैज्ञानिक प्रगति की नई यात्रा शुरू की। पंडित नेहरू के नेतृत्व में वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना की गई। आईआईटी जैसे संस्थान स्थापित किए गए। परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष विज्ञान और कृषि अनुसंधान में महत्वपूर्ण निवेश किया गया। धीरे-धीरे भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की।

वर्तमान में भारत अपनी खोई हुई वैज्ञानिक विरासत को पुनर्जीवित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशन इस प्रगति के प्रतीक हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में भारत विश्व का नेतृत्व कर रहा है। जैव प्रौद्योगिकी, नैनो टेक्नोलॉजी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में भारतीय वैज्ञानिक महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

नई शिक्षा नीति और सरकारी पहल से युवा पीढ़ी में वैज्ञानिक सोच और नवाचार को बढ़ावा मिल रहा है। स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रम तकनीकी नवाचार को प्रोत्साहित कर रहे हैं। निजी क्षेत्र भी अनुसंधान और विकास में बड़ा निवेश कर रहा है। यह सब मिलकर भारत को फिर से विश्व का वैज्ञानिक नेतृत्व करने की दिशा में आगे बढ़ा रहा है।

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