सोचिए, आप एक पिज़्ज़ा कंपनी में मेहनत-मशक्कत कर रोटी कमा रहे हैं, और अचानक इनकम टैक्स विभाग आपको 15.5 करोड़ रुपये का नोटिस थमा दे—वो भी ऐसी कंपनियों के लिए, जिनके बारे में आपने कभी सुना तक नहीं! यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के एक साधारण युवक, दिवाकर कुकुड़कर की असल जिंदगी का दर्दनाक सच है। आइए, इस हैरान करने वाली कहानी में गोता लगाएं, जिसमें गुम हुए दस्तावेज, फर्जी कंपनियां, और एक बेरोजगार युवक की जंग शामिल है।
खेतों से पिज़्ज़ा कंपनी तक का सफर
चंद्रपुर जिले के गोंड़पिपरी तहसील के छोटे से गाद्धा गांव में रहने वाले दिवाकर कुकुड़कर एक साधारण बेरोजगार युवक हैं। उनके माता-पिता खेतों में मेहनत कर परिवार का गुजारा करते हैं। 2013 में, पेट पालने की जद्दोजहद में दिवाकर गुजरात पहुंचे, जहां उन्होंने एक पिज़्ज़ा कंपनी में नौकरी शुरू की। काम छोटा था, लेकिन मेहनत ईमानदार थी। लेकिन किसे पता था कि उनकी जिंदगी जल्द ही किसी थ्रिलर फिल्म जैसी बन जाएगी?
2014 में, जब दिवाकर गुजरात से चंद्रपुर ट्रेन से लौट रहे थे, उनके जरूरी दस्तावेजों से भरा बैग गायब हो गया। उन्होंने तुरंत रेलवे थाने में शिकायत दर्ज की और सोचा कि मामला यहीं खत्म। साल बीत गए, और दिवाकर की जिंदगी सामान्य ढंग से चलती रही—लेकिन यह शांति ज्यादा दिन नहीं टिकी।
पहला झटका: 1 करोड़ का टैक्स नोटिस
2023 में, अचानक इनकम टैक्स विभाग का एक नोटिस दिवाकर के पास पहुंचा, जिसने उनके पैरों तले की जमीन खींच ली। नोटिस में दावा किया गया कि गुजरात के भावनगर में उनके नाम से एक ट्रेडिंग कंपनी चल रही है, जिसका 1 करोड़ रुपये का टैक्स बकाया है! एक पिज़्ज़ा कर्मचारी, जिसने कभी ऑफिस की शक्ल तक नहीं देखी, के लिए यह खबर किसी बुरे सपने से कम नहीं थी।
दिवाकर ने हिम्मत जुटाई और स्थानीय पुलिस थाने से लेकर जिला पुलिस अधीक्षक तक शिकायत की। उन्हें यकीन था कि यह गलतफहमी जल्द सुलझ जाएगी। लेकिन सिस्टम ने उन्हें और उलझा दिया।
15.5 करोड़ का दर्दनाक नोटिस
6 जून 2025 को, जब दिवाकर यवतमाल जिले में फिर से एक पिज़्ज़ा कंपनी में काम कर रहे थे, उनके पिता ने एक ऐसी खबर दी, जिसने उनकी दुनिया हिलाकर रख दी। इनकम टैक्स विभाग ने इस बार हद पार कर दी। नए नोटिस में दावा किया गया कि चार फर्जी कंपनियां उनके नाम से चल रही हैं, और इनका टैक्स बकाया है—पूरे 15.5 करोड़ रुपये!
यह सुनते ही दिवाकर ने सब कुछ छोड़कर चंद्रपुर का रुख किया। एक साधारण युवक, जिसकी कमाई बस दो वक्त की रोटी जुटाने तक सीमित थी, अब करोड़ों के फर्जीवाडे में फंस चुका था। गुम हुए दस्तावेज अब इस रहस्य की गुत्थी का केंद्र बिंदु बन गए—शायद किसी ने उनकी पहचान चुराकर यह फर्जीवाडा रचा।
दर-दर की ठोकरें और कोर्ट की चेतावनी
दिवाकर की जिंदगी अब एक कागजी जंग बन चुकी है। वह न सिर्फ इनकम टैक्स विभाग से लड़ रहे हैं, बल्कि उस बदनामी से भी जूझ रहे हैं, जो उन्हें अनजाने में मिली। अपने नाम को साफ करने के लिए वह दर-दर भटक रहे हैं। हताश, लेकिन हार न मानने वाले, दिवाकर ने अब कोर्ट का रुख करने की चेतावनी दी है। लेकिन सवाल यह है कि एक साधारण युवक के पास इतने संसाधन कहां, जो इस लड़ाई को लड़ सके?
क्या है इस कहानी का सबक?
दिवाकर की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सिस्टम की उन खामियों की है, जो एक आम इंसान की जिंदगी को तबाह कर सकती हैं। यह सवाल उठता है कि आखिर कितने और लोग ऐसे फर्जीवाडे का शिकार हो रहे हैं? और क्यों एक गांव के युवक को सिस्टम की कमियों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है?
क्या आपके पास दिवाकर की मदद के लिए कोई सुझाव है? या क्या आपने भी ऐसी किसी परेशानी का सामना किया है? नीचे कमेंट करें और इस कहानी को शेयर करें, क्योंकि सच को आवाज मिलनी चाहिए!
वरिष्ट संवाददाता – हरीष तिवारी