Indus Water Treaty: सिंधु नदी, जिसे भारत और पाकिस्तान की जीवनरेखा कहा जाता है, आजकल एक बार फिर चर्चा में है। यह नदी सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि दो पड़ोसी देशों के बीच तनाव और कूटनीति का प्रतीक बन चुकी है। हाल ही में पाकिस्तान ने भारत से सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty) को बहाल करने की गुहार लगाई है। यह अपील तब आई, जब भारत ने इस समझौते को स्थगित करने का सख्त फैसला लिया। आखिर इस समझौते की कहानी क्या है? क्यों यह दोनों देशों के लिए इतना महत्वपूर्ण है? और कैसे यह तनाव की जड़ बन गया? आइए, इसकी कहानी को समझते हैं, जैसे कोई दोस्त हमें इसे सरल शब्दों में सुनाए।
सिंधु जल समझौता 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था। विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह समझौता दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे का एक ढांचा तैयार करता है। सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों—झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलज—का पानी दोनों देशों के बीच बांटा गया। समझौते के तहत पाकिस्तान को करीब 80% पानी मिलता है, जबकि भारत को 19.5%। यह समझौता उस समय एक मिसाल था, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच शांति और सहयोग का प्रतीक था। लेकिन समय के साथ यह समझौता तनाव का कारण बनने लगा।
क्यों है यह समझौता इतना खास?
सिंधु नदी प्रणाली दोनों देशों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में यह नदी जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों को पानी देती है। वहीं, पाकिस्तान में यह नदी पंजाब और सिंध प्रांतों की खेती और पेयजल की जरूरतों को पूरा करती है। पानी का बंटवारा (Water Sharing) इस समझौते का आधार है। अगर यह समझौता नहीं होता, तो दोनों देशों के बीच पानी को लेकर युद्ध जैसी स्थिति बन सकती थी। यह समझौता न सिर्फ पानी का बंटवारा करता है, बल्कि दोनों देशों को नदियों पर बांध और जलविद्युत परियोजनाएं बनाने की अनुमति भी देता है, बशर्ते दूसरा देश प्रभावित न हो।
तनाव की शुरुआत: आतंकवाद और समझौता
हाल के वर्षों में भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं। खासकर, अप्रैल 2025 में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। इस हमले में 26 पर्यटक मारे गए, जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाया। जवाब में, भारत ने सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty) को स्थगित करने का ऐलान किया। भारत का कहना था कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, तब तक यह समझौता लागू नहीं रहेगा। भारत के इस कदम ने पाकिस्तान में हड़कंप मचा दिया, क्योंकि सिंधु नदी वहां की अर्थव्यवस्था और जीवन का आधार है।
पाकिस्तान की चिट्ठी: एक बेचैनी की कहानी
मई 2025 में पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखी। इस चिट्ठी में पाकिस्तान ने भारत से अपील की कि वह पानी का बंटवारा (Water Sharing) फिर से शुरू करे। पाकिस्तान ने दावा किया कि भारत का यह फैसला उनके देश में गंभीर जल संकट पैदा कर सकता है। इस चिट्ठी की एक प्रति भारत के विदेश मंत्रालय को भी भेजी गई, लेकिन भारत ने इस अपील को साफ तौर पर ठुकरा दिया। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाता, तब तक समझौता बहाल नहीं होगा।
इस चिट्ठी के पीछे पाकिस्तान की बेचैनी साफ झलकती है। गर्मियों में जब पानी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है, तब सिंधु नदी का पानी पाकिस्तान के लिए जीवनदायिनी है। बिना इस पानी के, पाकिस्तान के खेत सूख सकते हैं, पेयजल की कमी हो सकती है, और अर्थव्यवस्था पर भारी संकट आ सकता है।
भारत का रुख: खून और पानी साथ नहीं बह सकते
भारत का रुख इस मामले में बहुत सख्त है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने एक संबोधन में कहा, “खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते।” उनका यह बयान भारत की नीति को स्पष्ट करता है। भारत का मानना है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद नहीं करता, तब तक किसी भी तरह का सहयोग असंभव है। भारत ने न सिर्फ सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty) स्थगित किया, बल्कि अटारी सीमा को बंद कर दिया, व्यापार पर रोक लगा दी, और पाकिस्तान में हवाई हमले भी किए। इन कदमों ने पाकिस्तान को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से कमजोर किया है।
सिंधु नदी सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था का आधार है। पाकिस्तान में यह नदी पंजाब और सिंध प्रांतों की खेती को हरा-भरा रखती है। धान, गेहूं और कपास जैसी फसलों के लिए यह नदी जीवनदायिनी है। इसके अलावा, यह नदी पाकिस्तान के कई शहरों को पेयजल भी उपलब्ध कराती है। दूसरी ओर, भारत में यह नदी जम्मू-कश्मीर और पंजाब जैसे राज्यों में खेती और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए जरूरी है। पानी का बंटवारा (Water Sharing) अगर रुकता है, तो दोनों देशों को नुकसान होगा, लेकिन पाकिस्तान पर इसका असर कहीं ज्यादा गहरा होगा।
सिंधु जल समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था, और यह संस्था आज भी इस समझौते की निगरानी करती है। जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच इस समझौते को लेकर विवाद होता है, विश्व बैंक मध्यस्थता के लिए आगे आता है। हालांकि, इस बार भारत ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी तरह की बातचीत के मूड में नहीं है। पाकिस्तान ने विश्व बैंक से भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला है।
भारत के इस फैसले का असर दोनों देशों पर पड़ रहा है। पाकिस्तान में जल संकट की आशंका बढ़ रही है, जिससे वहां की जनता और सरकार दोनों बेचैन हैं। दूसरी ओर, भारत को भी इस फैसले के कुछ नकारात्मक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। मसलन, अगर विश्व समुदाय भारत के इस कदम को गलत ठहराता है, तो भारत की वैश्विक छवि प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, भारत को अपनी जलविद्युत परियोजनाओं और खेती के लिए भी इस पानी की जरूरत है। लेकिन भारत का मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ उसका रुख ज्यादा महत्वपूर्ण है।
सिंधु नदी की कहानी सिर्फ पानी की कहानी नहीं है। यह दो देशों के बीच विश्वास, तनाव और कूटनीति की कहानी है। एक तरफ भारत आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए है, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान जल संकट से जूझ रहा है। सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty) और पानी का बंटवारा (Water Sharing) आज दोनों देशों के बीच एक जटिल मुद्दा बन चुके हैं। यह समझौता सिर्फ पानी का बंटवारा नहीं करता, बल्कि दोनों देशों के रिश्तों की गहराई को भी दर्शाता है।
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