मुंबई में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए सड़कों की धुलाई की जा रही है। पर क्या पानी की कमी झेल रहे शहर के लिए पानी का यह इस्तेमाल उचित है?
भारत जैसे देशों में जहाँ पानी की कमी एक बड़ी समस्या है, वहाँ स्वच्छ हवा के लिए किए जाने वाले प्रयासों में पानी के संरक्षण का ध्यान रखना भी ज़रूरी है। मुंबई को नासिक ज़िले के जलाशयों से पानी की आपूर्ति होती है।
मुंबई में वायु प्रदूषण कम करने के लिए सड़कों को धो कर साफ़ करने की नीति इस विचार पर आधारित है कि इससे सड़कों पर धूल और प्रदूषणकारी तत्वों को जमा होने से रोका जा सकता है। पर क्या इस विधि के लिए इतनी बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग सही है?
भारत जैसे देशों में, जहां पानी की कमी एक गंभीर चिंता का विषय है, इस तरह पानी खर्च करने से पहले इसके संभावित लाभों और पर्यावरण पर प्रभाव का मूल्यांकन करना आवश्यक है। मुंबई को नासिक जिले के जलाशयों से पानी की आपूर्ति होती है, जो गर्मी शुरू होने से पहले ही खाली होने के कगार पर हैं। ऐसे में पीने, कृषि और स्वच्छता जैसी ज़रूरी आवश्यकताओं के लिए पानी की उपलब्धता को प्राथमिकता देना ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
इसके अलावा, सड़कों की धुलाई से वायु प्रदूषण में कमी इस बात पर भी निर्भर करती है कि प्रदूषण के मुख्य स्रोत क्या हैं। यदि सड़कों की धूल प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है, तो नियमित सफाई का सकारात्मक प्रभाव हो सकता है। लेकिन, यदि औद्योगिक उत्सर्जन या वाहनों का धुआँ प्रमुख कारण हैं, तो अकेले सड़कों की धुलाई पर्याप्त नहीं होगी।
मुंबई क्लीन एयर एक्शन के पहले ड्राफ्ट में बताया गया है कि शहर के प्रदूषण में 33% हिस्सा उद्योगों का है। ऐसे में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए वैकल्पिक तरीकों की खोज आवश्यक है जिनमें पानी का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल न हो। सड़क की सफ़ाई के साथ वाहनों के लिए सख्त उत्सर्जन मानकों, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने और हरित पहलों को लागू करने जैसी व्यापक रणनीतियों की ज़रूरत है।
मुंबई जैसे शहरों में वायु प्रदूषण कम करने के लिए नीतियों, नियमों और जन जागरूकता अभियानों के संयोजन को लागू करने की आवश्यकता है। इसमें वैक्यूम ट्रकों का उपयोग, सार्वजनिक परिवहन में सुधार, उत्सर्जन मानकों को लागू करना, अपशिष्ट प्रबंधन, वायु गुणवत्ता की निगरानी, निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित करना, और नागरिकों की भागीदारी जैसे उपाय शामिल हैं।