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Jammu-Kashmir Assembly Elections 2024: ज्यादा वोटिंग का सियासी मतलब, भाजपा और NC के लिए कौन सा इशारा?

Jammu-Kashmir Assembly Elections 2024

Jammu-Kashmir Assembly Elections 2024 के दूसरे चरण में जबरदस्त वोटिंग हुई, जिसने राजनीति के गलियारों में चर्चाओं को हवा दे दी है। इस बढ़ते मतदान का सियासी मतलब क्या हो सकता है? क्या यह भाजपा (BJP) या कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) गठबंधन के लिए लाभदायक साबित होगा? आइए, हम इन आंकड़ों के पीछे की राजनीति और भविष्य के संभावित नतीजों का विश्लेषण करते हैं।

Jammu-Kashmir Assembly Elections 2024: बंपर वोटिंग के सियासी मायने

मतदान के बढ़ते प्रतिशत का इतिहास

जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया हमेशा से दिलचस्प रही है। 2008 के चुनावों में दूसरे चरण में 55% वोटिंग हुई थी, जबकि 2014 में यह आंकड़ा 62% तक पहुंच गया था। 2024 जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव (Jammu-Kashmir Assembly Elections 2024) में अब तक दूसरे चरण में 56.05% वोटिंग दर्ज की गई है, जो राज्य में लोकतांत्रिक भागीदारी के प्रति लोगों की बढ़ती रुचि को दर्शाता है।

पहले चरण में 61.4% मतदान हुआ था, और दूसरे चरण के आंकड़े आने के बाद राजनीतिक दलों के बीच जीत-हार के समीकरण और भी रोमांचक हो गए हैं। बढ़ती वोटिंग के पीछे की राजनीति को समझना जरूरी है, क्योंकि यह एक संकेत हो सकता है कि जनता बदलाव चाहती है या मौजूदा सरकार पर अपना भरोसा जता रही है।

दूसरे चरण में किसके लिए है गुड न्यूज?

जम्मू-कश्मीर के दूसरे चरण के चुनावी नतीजे सियासी दृष्टिकोण से खासे महत्वपूर्ण हैं। कई दिग्गज नेता जैसे उमर अब्दुल्ला, गुलाम नबी लोन, और भाजपा के रविंद्र रैना अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव (Jammu-Kashmir Assembly Elections 2024) में बंपर वोटिंग को लेकर यह सवाल उठता है कि क्या यह भाजपा के लिए लाभदायक साबित होगा, या कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन के पक्ष में जाएगा?

सियासी विश्लेषकों का मानना है कि ज्यादा मतदान का मतलब है कि लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया में खुलकर हिस्सा ले रहे हैं। जम्मू क्षेत्र में 72% तक वोटिंग हुई, जो कि भाजपा का गढ़ माना जाता है, वहीं श्रीनगर जैसे क्षेत्रों में 27% कम मतदान हुआ, जो NC का गढ़ है। इससे साफ है कि जम्मू में भाजपा का वर्चस्व मजबूत हो सकता है, जबकि घाटी में कांग्रेस और NC गठबंधन अपनी पकड़ मजबूत बना सकते हैं।

बढ़ते वोट प्रतिशत के पीछे के कारण

जम्मू-कश्मीर में मतदान के बढ़ते प्रतिशत के पीछे के कई कारण हो सकते हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि राज्य में पिछले कुछ वर्षों में हालात बदले हैं। जहां पहले उग्रवाद और तनाव के चलते लोग वोट डालने से कतराते थे, वहीं अब शांति और स्थिरता की स्थिति ने लोगों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया है।

राज्य के पूर्व डिप्टी सीएम डॉ. निर्मल सिंह का कहना है कि 5 अगस्त 2019 के बाद से राज्य में शांति और अमन का माहौल है। लोग खुलकर चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं, और यह लोकतंत्र की जीत है। उनका यह भी मानना है कि इस बार के चुनाव नतीजे भाजपा के पक्ष में होंगे, क्योंकि राज्य के लोगों ने केंद्र सरकार की नीतियों पर भरोसा जताया है।

क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए है राहत?

वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) की प्रवक्ता इफरा जान का कहना है कि उनकी पार्टी का मुकाबला हमेशा से दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी से रहा है। उनका मानना है कि बंपर वोटिंग नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए भी एक संकेत हो सकता है कि जनता बदलाव चाहती है।

श्रीनगर जैसे क्षेत्रों में कम वोटिंग के बावजूद NC के लिए सेंट्रल कश्मीर में बंपर वोटिंग राहत भरी खबर हो सकती है। इफरा जान का यह भी कहना है कि भाजपा ने घाटी में कम उम्मीदवार उतारे हैं, और इस बार का चुनावी मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है।

जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने की मांग

जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है। भाजपा ने हमेशा से इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाया है। डॉ. निर्मल सिंह का कहना है कि सही समय आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलेगा, और यह मुद्दा केवल कुछ पार्टियों तक सीमित है, न कि आम जनता का।

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