झारखंड: “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” – ये नारा सुनने में कितना सुंदर लगता है, है ना? लेकिन जब बात हकीकत की आती है, तो ये केवल कागजी वादों और चमकते होर्डिंग्स तक सिमट जाता है। झारखंड की धरती पर बेटियों की आबरू तार-तार हो रही है, और हमारा सिस्टम खामोश तमाशाई बना हुआ है। एक 14 साल की मासूम बच्ची, जो स्कूल की किताबों में अपने सपनों को तलाश रही थी, आज एक अनचाहे बच्चे की मां बन गई। ये कहानी सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि हमारे समाज और सिस्टम की नाकामी का जीता-जागता सबूत है।
रांची के सदर अस्पताल में मासूम का दर्दनाक सच
झारखंड की राजधानी रांची के सदर अस्पताल में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। गुमला जिले के बसिया की रहने वाली एक 14 साल की स्कूली छात्रा ने एक नवजात बच्चे को जन्म दिया। जी हां, एक ऐसी बच्ची, जिसकी अभी खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र थी, उसे दुष्कर्म की क्रूरता ने मां बनने को मजबूर कर दिया। इस मासूम के साथ उसी के गांव के एक शख्स, शिवा अहीर ने दुष्कर्म किया। डर, शर्मिंदगी और सामाजिक बदनामी के डर ने इस बच्ची और उसके परिवार को चुप रहने पर मजबूर कर दिया। नतीजा? ये बच्ची गर्भवती हो गई, और परिवार को गुमला छोड़कर रांची भागना पड़ा।
जब सदर अस्पताल में इस नाबालिग ने बच्चे को जन्म दिया, तब जाकर इस मामले का खुलासा हुआ। अस्पताल प्रबंधन ने तुरंत लोअर बाजार थाना पुलिस को सूचित किया, और बच्ची के बयान के आधार पर जीरो एफआईआर दर्ज की गई। बाद में ये मामला गुमला के बसिया थाना पुलिस को सौंपा गया।
पुलिस ने उठाया कदम, आरोपी गिरफ्तार
मामले की गंभीरता को देखते हुए गुमला जिले के एसपी हासिश बिन जमा ने त्वरित कार्रवाई की। उनकी टीम ने आरोपी शिवा अहीर को गिरफ्तार कर लिया। पीड़िता ने बताया कि आरोपी स्कूल आने-जाने के दौरान उससे छेड़छाड़ करता था। एक दिन उसने उसका रेप किया और बाद में धमकियां देकर चुप रहने को मजबूर किया। डर की वजह से ये मासूम अपनी आपबीती किसी को नहीं बता पाई। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ सख्त धाराओं में मामला दर्ज किया है, और आगे की कार्रवाई जारी है।
लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ गिरफ्तारी काफी है? क्या ये सजा उस मासूम के खोए हुए बचपन को लौटा सकती है?
हमारा समाज और सिस्टम कहाँ चूक रहा है?
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा तब तक बेमानी है, जब तक हमारी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। ये घटनाएं सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि हमारे समाज की उस मानसिकता का परिणाम हैं, जो बेटियों को कमजोर समझती है। डर और शर्मिंदगी के कारण पीड़ित और उनके परिवार खामोश रहते हैं, और अपराधी बेखौफ होकर ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं। सरकार और पुलिस की कार्रवाई जरूरी है, लेकिन क्या हमारा समाज अपनी जिम्मेदारी से भाग सकता है? हमें अपने बच्चों को सिखाना होगा कि गलत को गलत कहना कोई शर्मिंदगी नहीं, बल्कि हिम्मत है।
एक मांग, एक पुकार
आज हर मां-बाप, हर बेटी और हर इंसान की पुकार यही है कि हमारी बेटियां सुरक्षित रहें। उनके सपनों को पंख मिले, न कि डर की जंजीरें। सरकार को चाहिए कि सख्त कानूनों के साथ-साथ जागरूकता और शिक्षा पर जोर दे। स्कूलों में बच्चों को अच्छे-बुरे स्पर्श का अंतर समझाया जाए। समाज को चाहिए कि वो पीड़ितों को गलत न ठहराए, बल्कि उनके साथ खड़े हो।
आइए, हम सब मिलकर ये ठान लें कि हमारी बेटियां सिर्फ नारों में नहीं, बल्कि हकीकत में सुरक्षित और सशक्त होंगी। क्योंकि जब तक एक भी बेटी का दर्द हमारा दर्द नहीं बनेगा, तब तक “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” सिर्फ एक खोखला नारा ही रहेगा।
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