JJP wiped out in Haryana: हरियाणा की राजनीति में जननायक जनता पार्टी (जजपा) का उदय और पतन एक दिलचस्प कहानी है। 2019 में किंगमेकर बनने वाली यह पार्टी 2024 के चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई। यह लेख जजपा के सफर पर एक नजर डालता है।
हरियाणा: जजपा का उदय और पतन
हरियाणा की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ था जब जननायक जनता पार्टी (Jannayak Janta Party) का गठन हुआ। यह पार्टी कुछ ही समय में राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगी। लेकिन जैसे कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता, वैसे ही जजपा का भाग्य भी बदल गया।
जजपा का जन्म और उभार
जजपा की कहानी बड़ी दिलचस्प है। यह पार्टी दिसंबर 2018 में बनी थी। इसे अजय चौटाला ने बनाया था। वे अपने पिता ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) से अलग हो गए थे। घर में झगड़े की वजह से उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई।
शुरुआत में लोगों को लगा कि यह पार्टी ज्यादा दिन नहीं चलेगी। लेकिन 2019 के चुनाव में जजपा ने सबको चौंका दिया। उसने 10 सीटें जीतीं और हरियाणा में किंगमेकर (kingmaker in Haryana) बन गई। इसका मतलब था कि जजपा के बिना सरकार नहीं बन सकती थी। इस तरह जननायक जनता पार्टी (Jannayak Janta Party) ने अपनी ताकत दिखाई।
सरकार में शामिल होना और उसका असर
चुनाव के बाद जजपा ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री बन गए। लोगों को लगा कि अब जजपा और मजबूत होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सरकार में रहते हुए जजपा को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लोगों को लगा कि पार्टी अपने वादे पूरे नहीं कर पा रही है। इससे पार्टी की छवि खराब हुई। धीरे-धीरे लोगों का भरोसा कम होने लगा।
2024 का चुनाव: जजपा के लिए बड़ा झटका
2024 का चुनाव जजपा के लिए बहुत बुरा रहा। हरियाणा में जजपा का सूपड़ा साफ (JJP wiped out in Haryana)। यह बड़ा झटका था। दुष्यंत चौटाला भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। वे पांचवें नंबर पर आ गए। यह उनके लिए बड़ी हार थी।
इस चुनाव में जजपा ने 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन कोई भी नहीं जीता। सबकी जमानत जब्त हो गई। यानी उन्हें बहुत कम वोट मिले। यह दिखाता है कि लोगों ने जजपा को नकार दिया।
पार्टी का बिखराव
चुनाव के नतीजों के बाद जजपा में टूट शुरू हो गई। पार्टी के कई बड़े नेता छोड़कर चले गए। कुछ कांग्रेस में शामिल हो गए, तो कुछ भाजपा में। इससे पार्टी और कमजोर हो गई।
जजपा के प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह ने भी पार्टी छोड़ दी। पार्टी के 10 में से 7 विधायक दूसरी पार्टियों में चले गए। इससे साफ हो गया कि जजपा अब पहले जैसी मजबूत नहीं रही।
क्यों हुआ ऐसा?
कई लोग सोच रहे होंगे कि आखिर जजपा इतनी जल्दी कैसे कमजोर हो गई। इसके कई कारण हो सकते हैं।
पहला, शायद लोगों को लगा कि पार्टी अपने वादे पूरे नहीं कर पाई। दूसरा, सरकार में रहते हुए पार्टी अपनी अलग पहचान नहीं बना पाई। तीसरा, पार्टी के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं था जिसके आधार पर वह लोगों को अपनी ओर खींच सके।
इसके अलावा, शायद लोगों को लगा कि जजपा सिर्फ एक परिवार की पार्टी है। इस बार उन्होंने दूसरे विकल्पों को चुना।
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