महाराष्ट्र

मुझे वोट दिया इसका ये मतलब नहीं कि आप मेरे मालिक बन गए… बारामती में अजित पवार के बिगड़े बोल

अजित पवार
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महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार हाल ही में एक घटना के दौरान अपना आपा खो बैठे, जब एक वोटर ने उनसे अपनी समस्या साझा की और समाधान की मांग की। इस पर पवार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, “आपने वोट दिया, इसका मतलब ये नहीं कि आप मेरे मालिक बन गए।” पवार का ये बयान अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है।

क्या है पूरा मामला?
बारामती में आयोजित एक सभा में विभिन्न तहसीलों और गांवों के किसान अपनी समस्याएं लेकर पहुंचे थे। उन्हें उम्मीद थी कि डिप्टी सीएम उनकी बात सुनेंगे और समाधान के लिए ठोस कदम उठाएंगे। लेकिन अजित पवार का ये बयान सुनकर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए। हालांकि बाद में पवार ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि, “क्या आपने मुझे खेतिहर मजदूर बना दिया है?” ये टिप्पणी न केवल वोटरों को चौंकाने वाली थी, बल्कि राजनीतिक समीक्षकों को भी सोचने पर मजबूर कर गई।

मंत्री संजय शिरसाट ने किया बचाव
घटना के बाद माहौल गंभीर हो गया। इसे देखते हुए कैबिनेट मंत्री संजय शिरसाट ने स्थिति संभालने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि, “कभी-कभी जनप्रतिनिधि जब काम में व्यस्त होते हैं, तो कुछ वोटर अपनी समस्याओं को लेकर जिद करने लगते हैं। ऐसे में जनप्रतिनिधियों के बयानों को ही हाईलाइट किया जाता है, जबकि वोटर्स के व्यवहार को अनदेखा कर दिया जाता है।”

गौरतलब है कि विदेश दौरे से लौटने के बाद अजित पवार ने रविवार को बारामती क्षेत्र का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने कई नए कार्यों का शिलान्यास किया और स्थानीय अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि काम में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। पवार ने कहा कि बारामती का रियल एस्टेट बाजार तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन मुंबई और पुणे के बड़े डेवलपर्स अभी तक इसमें प्रवेश नहीं कर पाए हैं। उन्होंने ये भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि क्षेत्र की सभी समस्याओं का समाधान समय पर किया जाए।

राजनीतिक चर्चा का मुद्दा
चुनाव से पहले जनता के हितों की बात करने वाले नेता, चुनाव के बाद जनता के साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं, ये सवाल अब जनता के बीच गूंज रहा है। यकीनन अजित पवार का ये बयान आने वाले दिनों में राजनीतिक बहस का बड़ा मुद्दा बन सकता है, क्योंकि ये घटना केवल एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि ये लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों और जनता के बीच संबंधों पर गहराई से सोचने का अवसर भी प्रदान करती है। नेताओं से उम्मीद की जाती है कि वे न केवल समस्याओं को सुनें बल्कि उन्हें हल करने की दिशा में कदम भी उठाएं। वहीं, जनता को भी अपनी अपेक्षाओं और व्यवहार में संतुलन बनाए रखने की जरूरत होती है।

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