मुंबई के 1993 के सांप्रदायिक दंगों में एक बेकरी और घर में आग लगाने के आरोप में 31 साल से लंबित मामले में 55 वर्षीय फेरीवाले हरीश चंद्र नाडर को सेशन कोर्ट ने बरी कर दिया है। कोर्ट ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए यह फ़ैसला सुनाया।
1993 के मुंबई दंगों ने शहर को झकझोर कर रख दिया था। इस दौरान भांडुप की न्यू बॉम्बे बेकरी सहित कई जगहों पर आगज़नी हुई थी। हरीश चंद्र नाडर उस भीड़ का हिस्सा होने का आरोप था जिसने यह आगज़नी की। इस साल जनवरी में उनकी गिरफ़्तारी हुई और बाद में जमानत भी खारिज कर दी गई।
अभियोजन पक्ष ने इस मामले में दो मुख्य गवाहों को पेश किया। पहला गवाह मौके पर मौजूद सिपाही था जिसने दंगे की सूचना दी थी। दूसरे गवाह ने अदालत को बताया कि दंगों के दौरान उसका घर जला दिया गया था, जो बेकरी के परिसर में ही था। कोर्ट ने कहा कि इन गवाहीयों से नाडर की संलिप्तता साबित नहीं की जा सकती, जिसके आधार पर उन्हें बरी कर दिया गया।
यह फ़ैसला 1993 के दंगों के कई पीड़ितों के लिए निराशाजनक हो सकता है। साथ ही, यह मामला न्यायिक प्रक्रिया की लंबी अवधि को एक बार फिर उजागर करता है।
नाडर के साथ आरोपित तीन अन्य लोग – आनंद कुमार नाडर, शशि तियार, और एक चौथे व्यक्ति जिनका मुकदमा अलग कर दिया गया था। आनंद और शशि अभी भी फ़रार हैं, जबकि चौथे आरोपित को 2001 में बरी किया गया था।