Kabutar Khana Mumbai: मुंबई की सड़कों पर कबूतरों की फुर्र-फुर्र और उनके दाने चुगने की आवाज तो हर किसी ने सुनी होगी। ये कबूतर मुंबई की शान का हिस्सा हैं, जो दादर से लेकर मरीन ड्राइव तक हर कोने में दिख जाते हैं। लेकिन अब इन कबूतरों के लिए मुश्किल वक्त आ गया है। महाराष्ट्र सरकार ने शहर के 51 कबूतर खाना को बंद करने का आदेश दिया है, क्योंकि उनका मानना है कि कबूतरों की बीट और पंखों से सांस की बीमारियां फैल रही हैं। इस फैसले के खिलाफ PETA इंडिया ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने दादर और लोखंडवाला मार्केट में बड़े-बड़े बिलबोर्ड लगाकर कबूतरों को बचाने की मुहिम शुरू की है।
PETA इंडिया का कहना है कि कबूतर भी मुंबईकर हैं। उनके बिलबोर्ड पर एक मां कबूतर अपने बच्चों के साथ दिखाई देती है, जो ये संदेश देता है कि कबूतर भी इस शहर का हिस्सा हैं, जैसे कुत्ते, बिल्लियां और हम इंसान। इन बिलबोर्ड्स का मकसद लोगों को ये बताना है कि कबूतर खाना सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि मुंबई की संस्कृति और इतिहास का हिस्सा है। PETA इंडिया की वेटरनरी सर्विसेज की डायरेक्टर डॉ. मिनी अरविंदन कहती हैं कि मां कबूतर अपनी संतानों की उतनी ही देखभाल करती हैं, जितना इंसान अपनी औलाद की करते हैं। कबूतर सोचने-समझने वाले और संवेदनशील प्राणी हैं, जो शहर की हलचल में भी अपने परिवार को पालते हैं।
कबूतर खाना मुंबई में लंबे समय से चल रहा है। दादर का कबूतर खाना तो 1933 से मौजूद है, जहां हर दिन हजारों कबूतर दाना चुगने आते हैं। लेकिन हाल ही में बृहन्मुंबई महानगरपालिका यानी BMC ने इन जगहों को हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी। दादर में अवैध निर्माण हटाए गए, अनाज के बोरे जब्त किए गए और बाड़ को तोड़ दिया गया। सरकार का कहना है कि कबूतरों की बीट और पंख सांस की बीमारियों का कारण बन रहे हैं। शिवसेना की नेता मनीषा कायंदे ने विधान परिषद में इस मुद्दे को उठाया और कहा कि कबूतर खाना आसपास रहने वालों के लिए खतरा हैं। बीजेपी नेता चित्रा वाघ ने तो यह भी बताया कि उनकी एक रिश्तेदार की मौत कबूतरों की बीट से होने वाली सांस की बीमारी की वजह से हुई थी।
PETA इंडिया इन दावों से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि कबूतरों से बीमारी फैलने का खतरा बहुत कम है। कई अध्ययनों की समीक्षा के बाद PETA ने दावा किया कि कबूतरों से इंसानों में बीमारी फैलने की आशंका न के बराबर है, खासकर उन लोगों के लिए जो रोजाना इनके संपर्क में आते हैं। इतना ही नहीं, कबूतर बर्ड फ्लू जैसे रोगों के प्रति भी काफी हद तक प्रतिरोधी होते हैं। PETA का कहना है कि कबूतरों को बदनाम करने की बजाय असल समस्याओं जैसे प्रदूषण, धूम्रपान और निर्माण कचरे पर ध्यान देना चाहिए, जो सांस की बीमारियों का बड़ा कारण हैं।
कबूतरों की खासियत भी कम नहीं है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक 10 साल के अध्ययन में पता चला कि कबूतर अपनी उड़ान के लिए इंसानों के बनाए रास्तों का इस्तेमाल करते हैं, न कि अपने आंतरिक चुंबकीय कम्पास का। यानी ये कबूतर भी मुंबई की सड़कों को उतना ही समझते हैं, जितना हम और आप। PETA इंडिया ने ये भी बताया कि कबूतर बहुत अच्छे माता-पिता होते हैं। नर और मादा कबूतर मिलकर अपने बच्चों की देखभाल करते हैं, जैसे अंडों को सेना और बच्चों को पालना। ये बातें सुनकर लगता है कि कबूतर वाकई में मुंबई के अपने ही हैं, जो इस शहर की भागदौड़ में भी अपनी जगह बनाए हुए हैं।
इस पूरे मामले में एक और बात ध्यान देने वाली है। कबूतर खाना सिर्फ पक्षियों को दाना डालने की जगह नहीं हैं। ये मुंबई की संस्कृति का हिस्सा हैं, जहां लोग शांति और सुकून के लिए आते हैं। खासकर जैन समुदाय के लिए कबूतरों को दाना डालना एक पुण्य का काम है। दादर के कबूतर खाना के पास एक ट्रस्टी, संदीप दोशी, बताते हैं कि वह सालों से वहां कबूतरों को दाना डाल रहे हैं और उन्हें कभी कोई सांस की समस्या नहीं हुई। उनका कहना है कि अगर BMC इस ऐतिहासिक जगह को तोड़ने की कोशिश करेगी, तो वे सत्याग्रह करेंगे।
BMC का कहना है कि कबूतर खाना को पूरी तरह बंद करना तभी मुमकिन है, जब लोग वहां दाना डालना बंद करें। इसके लिए उन्होंने जागरूकता अभियान भी शुरू किया है। लेकिन PETA इंडिया और कई पशु प्रेमी इस फैसले के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि बिना ठोस वैज्ञानिक सबूत के कबूतरों को निशाना बनाना गलत है। अब देखना ये है कि क्या मुंबई के कबूतर अपनी जगह बचा पाएंगे, या ये ऐतिहासिक कबूतर खाना हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।
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