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क्या चुनी हुई सरकारों को गिराना सही है? केजरीवाल ने मोहन भागवत से पांच कड़े सवाल पूछे

क्या चुनी हुई सरकारों को गिराना सही है? केजरीवाल ने मोहन भागवत से पांच कड़े सवाल पूछे

क्या चुनी हुई सरकारों को गिराना सही है? दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 17 सितंबर को इस्तीफा देने के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को चिट्ठी लिखकर बीजेपी के कार्यों पर सवाल उठाए। उन्होंने देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति को लेकर पांच अहम सवाल पूछे, जिसमें उन्होंने सीधा बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों को चुनौती दी। यह चिट्ठी एक आम नागरिक के रूप में लिखी गई थी, न कि एक राजनेता के रूप में, जो अपने आप में काफी महत्वपूर्ण संदेश देती है।

चिट्ठी में उठाए गए 5 अहम सवाल

केजरीवाल ने मोहन भागवत से पूछा कि क्या बीजेपी द्वारा दूसरी पार्टियों के नेताओं को तोड़कर सरकारें गिराना सही है? उन्होंने सवाल उठाया कि “क्या चुनी हुई सरकारों को गिराना सही है?” इसके साथ ही उन्होंने भ्रष्ट नेताओं को बीजेपी में शामिल करने पर भी सवाल किया। केजरीवाल का मानना है कि बीजेपी के मौजूदा कार्य देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं और अगर यही जारी रहा तो देश में तानाशाही का खतरा बढ़ सकता है। इन सवालों ने देशभर में एक नई बहस को जन्म दे दिया है, जिसमें आम नागरिक भी शामिल हो रहे हैं।

क्या सरकारें गिराना सही है?

केजरीवाल ने अपने पहले सवाल में कहा कि देशभर में बीजेपी द्वारा नेताओं को लालच या फिर ईडी और सीबीआई के डर से तोड़ा जा रहा है, जिससे राज्यों में सरकारें गिर रही हैं। उन्होंने पूछा कि “क्या ऐसी सरकार गिराना सही है?” यह एक बहुत बड़ा सवाल है, क्योंकि यह हमारे लोकतांत्रिक ढांचे के लिए सीधा खतरा हो सकता है। चुनाव में चुनी हुई सरकारों को इस तरह से गिराना संविधान का अपमान है और इसका जवाब भागवत को देना चाहिए।

भ्रष्ट नेताओं का बीजेपी में शामिल होना

दूसरा सवाल केजरीवाल ने इस बात पर उठाया कि कुछ नेताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने खुद भ्रष्टाचारी कहा, लेकिन फिर कुछ ही दिनों बाद उन्हें बीजेपी में शामिल कर लिया गया। यह सवाल न सिर्फ बीजेपी की नीति पर सवाल उठाता है, बल्कि आरएसएस की भूमिका पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। क्या आरएसएस ने ऐसी बीजेपी की कल्पना की थी? क्या संघ के लिए यह सही है कि भ्रष्ट नेताओं को पार्टी में जगह मिले?

RSS की जिम्मेदारी

तीसरे सवाल में केजरीवाल ने पूछा कि अगर बीजेपी गलत राह पर चल रही है, तो आरएसएस की जिम्मेदारी है कि वह उसे सही राह पर लाए। लेकिन क्या आरएसएस ने कभी प्रधानमंत्री मोदी को गलत कामों से रोकने की कोशिश की है? यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि आरएसएस हमेशा बीजेपी के मार्गदर्शक के रूप में देखा गया है, और अब जब पार्टी अपने नैतिक मूल्यों से भटक रही है, तो आरएसएस की भूमिका क्या होनी चाहिए?

75 साल के रिटायरमेंट कानून का पालन

अंत में, केजरीवाल ने बीजेपी के उस कानून पर सवाल उठाया जिसमें 75 साल की उम्र के बाद नेताओं को रिटायर करना तय किया गया था। इसके तहत लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं को रिटायर किया गया था। लेकिन क्या अब इस कानून का पालन हो रहा है? और क्या यह कानून प्रधानमंत्री मोदी पर भी लागू होना चाहिए? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पार्टी के अंदर लोकतांत्रिक प्रक्रिया और सम्मान की बात को उठाता है।

अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे का असर

केजरीवाल ने अपने इस्तीफे के बाद एक बार फिर अपनी पार्टी की विचारधारा को मजबूत करने की कोशिश की है। उन्होंने यह साफ किया है कि उनका इस्तीफा उनकी मजबूरी नहीं, बल्कि उनके नैतिक मूल्यों के कारण था। 17 सितंबर को इस्तीफा सौंपने के बाद, 21 सितंबर को आतिशी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। इससे पहले, केजरीवाल ने एक आम नागरिक के रूप में जनता से संवाद करने का फैसला किया और यह चिट्ठी उसी का हिस्सा है।

केजरीवाल का राजनीतिक करियर

केजरीवाल का राजनीतिक सफर हमेशा विवादों से घिरा रहा है। चाहे वो दिल्ली की शराब नीति हो या खालिस्तानी संगठनों से फंड लेने का मामला, केजरीवाल हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। हाल ही में, शराब नीति केस में वह 177 दिनों तक तिहाड़ जेल में रहे। हालांकि, 13 सितंबर 2024 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। इसके बाद उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा की, और दिल्ली की राजनीति में नया मोड़ आ गया।

नई दिल्ली की राजनीति का नया अध्याय

आतिशी के मुख्यमंत्री बनने से दिल्ली की राजनीति में नया अध्याय शुरू हो गया है। आतिशी ने शपथ लेने के बाद केजरीवाल के पैर छूकर अपने गुरु को सम्मान दिया। अब देखना यह है कि दिल्ली की नई सरकार किस तरह काम करती है और आने वाले चुनावों में जनता का विश्वास जीतने में कितनी सफल होती है।

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