सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि वकीलों पर उनके मुवक्किल उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत मुकदमा नहीं कर सकते। अब ऐसे में सवाल ये उठता है, कि क्या सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला वकीलों को मनमानी करने की खुली छूट देगा?
गौरतलब है कि 2007 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने फैसला दिया था कि वकीलों की सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (CPA) के दायरे में आती हैं। यानी अगर वकील की सेवा में कोई कमी होती है, तो उनके खिलाफ मुकदमा किया जा सकता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है।
वकीलों ने क्या दलीलें दीं?
वकालत एक पेशा है, व्यापार नहीं: वकीलों ने दलील दी कि वकालत एक पेशा है, जिसमें वकील का काम सिर्फ अपने मुवक्किल के हितों की रक्षा करना नहीं होता, बल्कि उन्हें कोर्ट और विरोधी पक्ष के प्रति भी कुछ जिम्मेदारियां होती हैं।
जीत-हार पर वकील का नियंत्रण नहीं: वकीलों ने ये भी तर्क दिया कि कानूनी मामलों का नतीजा कई चीजों पर निर्भर करता है, जैसे कि कानून की पेचीदगियां, विरोधी पक्ष की रणनीति, और जज का फैसला। इसलिए, वकील की गलती से केस हारने पर उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
वकीलों के लिए अलग कानून: वकीलों के खिलाफ शिकायत करने के लिए एडवोकेट्स एक्ट, 1961 में पहले से ही प्रावधान हैं। इसलिए, उपभोक्ता संरक्षण कानून को वकालत के पेशे पर लागू नहीं किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकीलों की सेवाओं को किसी भी दूसरे व्यापार या सेवा की तरह नहीं देखा जा सकता। वकील सिर्फ अपने मुवक्किल के लिए काम नहीं करते, बल्कि उन्हें कोर्ट के प्रति भी जिम्मेदारियां होती हैं। इसलिए, अगर कोई मुवक्किल वकील की सेवा से संतुष्ट नहीं है, तो उसे एडवोकेट्स एक्ट के तहत शिकायत करनी चाहिए, न कि उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला वकीलों के लिए बड़ी राहत की बात है। लेकिन ये फैसला इस सवाल को भी खड़ा करता है कि क्या ये वकीलों को मनमानी करने की खुली छूट दे देगा। क्या मुवक्किलों के पास वकीलों की लापरवाही के खिलाफ कोई कानूनी उपाय नहीं बचेगा?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मेडिकल पेशे पर भी असर पड़ सकता है। क्योंकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की सेवाओं को भी उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में रखा था। अब इस फैसले के बाद डॉक्टर भी इस कानून से बाहर हो सकते हैं।
ये भी पढ़ें: दवा के साइड इफेक्ट बताना डॉक्टर की नहीं, आपकी जिम्मेदारी! हाई कोर्ट का फैसला