महाराष्ट्रमुंबई

Assembly Election Alliance Crisis: सीट बंटवारे पर टूटा गठबंधन का भरोसा, कई विधानसभा क्षेत्रों में अपनों से ही मुकाबला बना रोचक

Assembly Election Alliance Crisis: सीट बंटवारे पर टूटा गठबंधन का भरोसा, कई विधानसभा क्षेत्रों में अपनों से ही मुकाबला बना रोचक

महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐसा मोड़ आया है, जिसने सभी राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है। यह पहली बार नहीं है जब गठबंधन के सहयोगी एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हुए हैं, लेकिन इस बार की स्थिति अत्यंत जटिल है।

विधानसभा चुनाव गठबंधन संकट (Assembly Election Alliance Crisis) की शुरुआत तब हुई जब महा विकास आघाड़ी के प्रमुख घटक दलों के बीच कई सीटों पर सहमति नहीं बन पाई। भायकला विधानसभा सीट पर स्थिति सबसे ज्यादा दिलचस्प है। यहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मघु चव्हाण ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन भरा है। वहीं, उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने मनोज जामसूतकर को अपना आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया है। दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टी में मजबूत पकड़ रखते हैं और स्थानीय मुद्दों की गहरी समझ रखते हैं।

मानखुर्द विधानसभा क्षेत्र में भी इसी तरह की स्थिति देखने को मिल रही है। यहां महा विकास आघाड़ी के दो प्रमुख घटक दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। विधानसभा चुनाव गठबंधन संकट (Assembly Election Alliance Crisis) की वजह से यहां के मतदाताओं में भी भ्रम की स्थिति है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर किस उम्मीदवार को वोट दें, क्योंकि दोनों ही उम्मीदवार एक ही गठबंधन से हैं।

परांदा विधानसभा क्षेत्र में स्थिति और भी जटिल है। यहां न केवल महा विकास आघाड़ी के घटक दल आपस में लड़ रहे हैं, बल्कि स्थानीय नेताओं ने भी अपनी दावेदारी मजबूत की है। सोलापुर शहर की सीट पर भी इसी तरह का माहौल है। यहां के स्थानीय नेताओं का कहना है कि गठबंधन धर्म से ऊपर जनता का हित है।

लोहा और दिग्रस विधानसभा क्षेत्रों में भी गठबंधन के भीतर आपसी टकराव की स्थिति है। यहां के स्थानीय कार्यकर्ता भी दो खेमों में बंट गए हैं। कुछ पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के साथ हैं, तो कुछ बागी उम्मीदवार का समर्थन कर रहे हैं।

सत्तारूढ़ महायुती गठबंधन की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है। गठबंधन में आपसी सीट बंटवारे का विवाद महाराष्ट्र में (Internal Seat Distribution Dispute in Maharashtra Alliances) के कारण कई सीटों पर आपसी टकराव देखने को मिल रहा है। आष्टी विधानसभा क्षेत्र में अजित पवार के एनसीपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के उम्मीदवार आमने-सामने हैं।

श्रीरामपुर और डिंडोरी में भी महायुती के घटक दल एक-दूसरे से भिड़ रहे हैं। देवलाली और अणुशक्ति नगर जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर भी गठबंधन धर्म की अनदेखी होती दिख रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि नामांकन वापसी की आखिरी तारीख 4 नवंबर से पहले सभी विवादों का समाधान कर लिया जाएगा।

इस तरह की फ्रेंडली फाइट का नतीजा क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी लड़ाई में विपक्षी दलों को फायदा हो सकता है। क्योंकि जब एक ही गठबंधन के दो उम्मीदवार एक-दूसरे से लड़ते हैं, तो वोटों का बंटवारा होता है और इससे तीसरे उम्मीदवार को लाभ मिल सकता है।

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