महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के प्रयासों से राज्य ने शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी हासिल की है। 2018 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 19 से, यह दर 2020 में घटकर 16 हो गई है।
शिशु मृत्यु दर किसी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और समाज के समग्र स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण सूचक है। सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के तहत, शिशु और नवजात मृत्यु दर को कम करना एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है।
केंद्र सरकार की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) 2020 रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र ने शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी हासिल की है। शिशु मृत्यु दर 2018 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 19 से घटकर 2020 में 16 हो गई है। नवजात शिशु मृत्यु दर में भी कमी आई है और अब यह 11 पर है।
राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, इस उपलब्धि में सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए गए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का योगदान है। इनमें प्रमुख हैं:
विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाइयों (SNCU) की स्थापना: ज़िला और उप-ज़िला अस्पतालों में इन इकाइयों ने 56,000 से अधिक शिशुओं को महत्वपूर्ण देखभाल प्रदान की है।
नवजात स्थिरीकरण इकाइयों (NBSU) का संचालन: ग्रामीण अस्पतालों में यह इकाइयाँ हल्की बीमारियों वाले 24000 से अधिक नवजात शिशुओं के इलाज में सहायक बनी हैं।
मां कार्यक्रम (MAA): स्तनपान के महत्व पर शिक्षा और परामर्श प्रदान करने के लिए आयोजित किए गए हैं।
एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम: रक्ताल्पता को लक्षित करते हुए, विशेष जनसांख्यिकीय समूहों की देखभाल की गई है।
घर पर नवजात देखभाल कार्यक्रम: आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देकर घर-घर जाँच और स्वास्थ्य परामर्श सुनिश्चित किया गया है।
हालाँकि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस प्रगति की सराहना की है, उन्होंने ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर बनाने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया है।
महाराष्ट्र द्वारा शिशु मृत्यु दर में की गई कमी राज्य के स्वास्थ्य विभाग की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में और प्रयासों से यह दर और भी कम हो जाएगी।