महाराष्ट्र

Drawing Teachers: महाराष्ट्र में 500 से कम छात्रों वाले स्कूलों में चित्रकला शिक्षक नहीं, शिक्षकों में आक्रोश

Drawing Teachers: महाराष्ट्र में 500 से कम छात्रों वाले स्कूलों में चित्रकला शिक्षक नहीं, शिक्षकों में आक्रोश

Drawing Teachers in Maharashtra: महाराष्ट्र के स्कूलों में एक नया नियम लागू होने जा रहा है, जिसने कला शिक्षकों के बीच नाराजगी पैदा कर दी है। इस नियम के तहत, जिन सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों में 500 से कम छात्र हैं, वहां चित्रकला शिक्षक (Drawing Teacher) की नियुक्ति नहीं होगी। यह खबर न केवल शिक्षकों के लिए, बल्कि उन लाखों छात्रों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो कला के माध्यम से अपनी रचनात्मकता को निखारना चाहते हैं। यह नियम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy 2020) की सिफारिशों के खिलाफ माना जा रहा है, जो बच्चों के समग्र विकास पर जोर देती है। नई पीढ़ी, जो शिक्षा में रचनात्मकता और नवाचार की तलाश में है, इस बदलाव को गहराई से समझना चाहती है।

पहले के नियमों के अनुसार, कक्षा 5 से 10 तक के किसी भी स्कूल में एक चित्रकला शिक्षक (Drawing Teacher) का पद स्वीकृत होता था। लेकिन 2024 में बने नए नियमों ने इस व्यवस्था को बदल दिया। अब केवल उन स्कूलों में चित्रकला शिक्षक होंगे, जहां 500 या उससे अधिक छात्र पढ़ते हों। इस बदलाव का असर सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों पर पड़ रहा है, जहां छात्रों की संख्या आमतौर पर कम होती है। चित्रकला और खेल शिक्षकों के एक संगठन ने इस नियम के खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे को पत्र लिखकर इस नियम की समीक्षा की मांग की है।

इस संगठन के उपाध्यक्ष किरण सरोदे ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि कला शिक्षा खेल शिक्षा जितनी ही महत्वपूर्ण है। फिर भी, इन दोनों के लिए अलग-अलग नियम बनाए गए हैं। जहां 250 छात्रों वाले स्कूल में एक खेल शिक्षक की नियुक्ति हो सकती है, वहीं चित्रकला शिक्षक के लिए 500 छात्रों की शर्त रखी गई है। यह नियम न केवल अनुचित है, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy 2020) के उस सिद्धांत के खिलाफ है, जो बच्चों के समग्र विकास को बढ़ावा देता है। ग्रामीण स्कूलों में, जहां पहले से ही संसाधनों की कमी है, यह नियम कला शिक्षा को और पीछे धकेल देगा।

इस नियम का असर शिक्षकों के रोजगार पर भी पड़ रहा है। किरण सरोदे ने बताया कि 2012 के बाद से सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में चित्रकला शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई है। पहले, स्वीकृत पदों के आधार पर अस्थायी या संविदा पर शिक्षकों की नियुक्ति हो जाया करती थी। लेकिन नए नियमों के लागू होने से ये अस्थायी नियुक्तियां भी बंद हो जाएंगी। इससे न केवल मौजूदा शिक्षकों का रोजगार खतरे में है, बल्कि भविष्य में कला शिक्षकों की कमी भी बढ़ेगी। यह स्थिति उन हजारों छात्रों के लिए भी चिंताजनक है, जो कला के माध्यम से अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करते हैं।

महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से इस नियम के खिलाफ शिकायतें सामने आ रही हैं। चित्रकला शिक्षकों का कहना है कि यह नियम उनके पेशे को कमतर आंकता है। कला शिक्षा बच्चों को न केवल रचनात्मक बनाती है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य और आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है। उदाहरण के लिए, एक ग्रामीण स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा, जो शायद गणित या विज्ञान में कमजोर हो, कला के जरिए अपनी प्रतिभा दिखा सकता है। लेकिन अगर स्कूल में चित्रकला शिक्षक ही नहीं होंगे, तो ऐसे बच्चों का विकास कैसे होगा? यह सवाल हर उस व्यक्ति के मन में है, जो शिक्षा को सिर्फ किताबी ज्ञान से ज्यादा मानता है।

शिक्षक संगठन ने मांग की है कि चित्रकला शिक्षकों को खेल शिक्षकों के समान माना जाए। उनका कहना है कि अगर 250 छात्रों पर एक खेल शिक्षक का पद स्वीकृत हो सकता है, तो चित्रकला शिक्षकों के लिए भी यही नियम लागू होना चाहिए। यह मांग न केवल शिक्षकों के हित में है, बल्कि उन लाखों छात्रों के भविष्य के लिए भी जरूरी है, जो कला के माध्यम से अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। इस नियम को लागू करने का काम अप्रैल 2025 से शुरू हो चुका है, लेकिन शिक्षकों का विरोध इसे बदलने की उम्मीद जगा रहा है।

यह मुद्दा सिर्फ एक नियम का नहीं है, बल्कि यह शिक्षा के उस दृष्टिकोण से जुड़ा है, जो बच्चों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका देता है। महाराष्ट्र के ग्रामीण और शहरी स्कूलों में कला शिक्षा की कमी नई पीढ़ी के लिए एक बड़ा नुकसान हो सकता है। यह कहानी उन शिक्षकों की है, जो अपने पेशे के लिए लड़ रहे हैं, और उन छात्रों की, जिनका सपना कला के रंगों में सजा है।


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