Malegaon Blast Case: 17 साल पुराने मालेगांव बम धमाके केस में मुंबई की विशेष एनआईए कोर्ट ने एक सनसनीखेज फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी 7 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इस फैसले ने न केवल कानूनी गलियारों में हलचल मचाई है, बल्कि सियासी तूफान भी खड़ा कर दिया है।
मालेगांव ब्लास्ट मामले में कोर्ट का फैसला आने के बाद महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस का बयान आया है। उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर लिखा है, “आतंकवाद भगवा न कभी था, न है, न कभी रहेगा।”
उनका ये बयान इस केस के सियासी पहलुओं को और उजागर करता है। इस मामले में बीजेपी से जुड़े कुछ नामों का शामिल होना पहले से ही विवादों का कारण रहा था, और अब ये फैसला सियासी हलकों में बहस का नया मुद्दा बन गया है।
क्या है मालेगांव बम धमाका केस?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में मालेगांव की एक मस्जिद के पास हुए बम धमाके ने पूरे देश को झकझोर दिया था। एक बाइक में हुए इस विस्फोट में 6 लोगों की मौत हुई थी और 101 लोग घायल हुए थे। जांच शुरू में ATS ने की, जिसे बाद में NIA को सौंप दिया गया। अभियोजन का दावा था कि इस धमाके का मकसद मुस्लिम समुदाय में दहशत फैलाना और सांप्रदायिक तनाव को हवा देना था।
कोर्ट का बड़ा फैसला: “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं”
मुंबई की विशेष एनआईए कोर्ट के जज ए.के. लाहोटी ने फैसले में साफ कहा कि अभियोजन पक्ष अपना केस मजबूती से पेश नहीं कर पाया। 1 लाख से ज्यादा पन्नों के दस्तावेज, गवाहों के बयान और तकनीकी सबूत भी आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए नाकाफी रहे। कोर्ट ने ये भी कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और न्याय केवल संदेह या धारणा के आधार पर नहीं हो सकता।
सबसे अहम बात, ये साबित नहीं हो सका कि विस्फोट में इस्तेमाल बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी या धमाका उसी बाइक से हुआ। इस आधार पर सभी 7 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।
17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई
2008 से शुरू हुआ ये केस UAPA और IPC की धाराओं के तहत चला। शुरुआती जांच में ATS ने साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य को आरोपी बनाया था। लेकिन NIA को जांच सौंपे जाने के बाद भी अभियोजन ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया। कोर्ट के इस फैसले ने 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई को एक नया मोड़ दे दिया है।
क्या कहती है जनता?
ये फैसला न केवल मालेगांव बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। कोई इसे न्याय की जीत बता रहा है, तो कोई सबूतों की कमी पर सवाल उठा रहा है। सोशल मीडिया पर भी इस मामले को लेकर बहस छिड़ी हुई है।
आप इस फैसले के बारे में क्या सोचते हैं? क्या ये सही दिशा में उठाया गया कदम है, या अभी और सवाल बाकी हैं? हमें कमेंट्स में बताएँ!
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