महाराष्ट्र

Maneater Tiger Captured in Chandrapur: चंद्रपुर में आदमखोर बाघ पकड़ा गया, 13 दिन में 9 लोगों की जान ली

Maneater Tiger Captured in Chandrapur: चंद्रपुर में आदमखोर बाघ पकड़ा गया, 13 दिन में 9 लोगों की जान ली

Maneater Tiger Captured in Chandrapur: चंद्रपुर के जंगलों में एक बार फिर दहशत का माहौल छाया हुआ था। पिछले 13 दिनों में नौ लोगों की जान लेने वाला आदमखोर बाघ (Maneater Tiger) आखिरकार पिंजरे में कैद हो गया। यह खबर चंद्रपुर के उन गाँवों में राहत की साँस लेकर आई, जहाँ लोग डर के साए में जी रहे थे। ब्रह्मपुरी वन विभाग बचाव (Brahmapuri Forest Department Rescue) की त्वरित कार्रवाई ने न केवल एक खतरनाक बाघ को पकड़ा, बल्कि यह भी दिखाया कि मानव और वन्यजीवों के बीच संतुलन बनाना कितना चुनौतीपूर्ण है। यह कहानी उस हिम्मत, मेहनत और समन्वय की है, जिसने चंद्रपुर के लोगों को फिर से सुरक्षित महसूस करने का मौका दिया।

यह सब तब शुरू हुआ, जब मई 2025 की शुरुआत में चंद्रपुर के तलोधी वन परिक्षेत्र में बाघ के हमले बढ़ने लगे। 10 मई को एक ही दिन में सिंदेवाही तालुका में तीन महिलाएँ इस बाघ का शिकार बन गईं। अगले दिन, 11 मई को मुल तालुका में एक और महिला की जान चली गई। 12 मई को फिर एक महिला की मौत हुई, और 14 मई को चिमूर तालुका में एक और घटना ने लोगों को सकते में डाल दिया। 18 मई को नागभीड़ और मुल तालुका में दो लोग बाघ के हमले में मारे गए, और 22 मई को एक व्यक्ति की मौत के साथ एक अन्य घायल हो गया। इन 13 दिनों में आदमखोर बाघ (Maneater Tiger) ने नौ लोगों की जान ली और पूरे जिले में डर का माहौल बना दिया। लोग अपने खेतों में जाने से डरने लगे, और गाँवों में रात के समय सन्नाटा पसर जाता था।

इस बाघ का नाम था टीएटीआर 224, एक आठ साल का नर बाघ, जो ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व से निकलकर तलोधी वन परिक्षेत्र में आ गया था। इसकी ताकत और चपलता ने इसे पकड़ना बेहद मुश्किल बना दिया था। लेकिन ब्रह्मपुरी वन विभाग बचाव (Brahmapuri Forest Department Rescue) ने हार नहीं मानी। वन विभाग ने तुरंत कार्रवाई शुरू की और अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बाघ को पकड़ने की अनुमति ली। यह ऑपरेशन न केवल तकनीकी रूप से जटिल था, बल्कि इसमें कई लोगों की जान को खतरा भी था। फिर भी, वन विभाग की टीम ने दिन-रात मेहनत की और आखिरकार 23 मई 2025 की सुबह 11:30 बजे इस बाघ को पकड़ने में सफलता हासिल की।

बाघ को पकड़ने का काम गंगासागर हेटी बीट के सावर्ला रिट सर्वेक्षण क्रमांक 2 में हुआ। यहाँ वन विभाग ने कैमरा ट्रैप और अन्य आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया, ताकि बाघ की सटीक लोकेशन का पता लगाया जा सके। ऑपरेशन की कमान ब्रह्मपुरी वन विभाग के उपवन संरक्षक डॉ. राकेश सेपट ने संभाली। उनके साथ सहायक वन संरक्षक महेश गायकवाड़, राकेश आहूजा और जीवविज्ञानी थे। डॉ. रविकांत खोबरागड़े, जो वन्यजीवों के लिए पशु चिकित्सा अधिकारी हैं, और शूटर अजय मराठे ने बाघ को बेहोश करने में अहम भूमिका निभाई। इस दौरान तलोधी वन परिक्षेत्र अधिकारी अरूप कन्नमवार के नेतृत्व में कई वनरक्षक, स्वाब फाउंडेशन की रेस्क्यू टीम, और स्थानीय वन मजदूरों ने भी पूरा सहयोग दिया। यह एक ऐसा समन्वय था, जिसमें हर व्यक्ति ने अपनी जान जोखिम में डालकर काम किया।

बाघ को बेहोश करने के बाद उसे सुरक्षित रूप से पिंजरे में रखा गया और चंद्रपुर के ट्रांजिट ट्रीटमेंट सेंटर में ले जाया गया। यहाँ उसका मेडिकल परीक्षण किया गया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह स्वस्थ है। अब यह बाघ नवी मुंबई के एक बचाव केंद्र में स्थानांतरित किया जाएगा, जहाँ विशेषज्ञ यह तय करेंगे कि इसे जंगल में वापस छोड़ा जाए या किसी संरक्षित क्षेत्र में रखा जाए। इस ऑपरेशन की सफलता ने न केवल चंद्रपुर के लोगों को राहत दी, बल्कि यह भी दिखाया कि ब्रह्मपुरी वन विभाग बचाव (Brahmapuri Forest Department Rescue) जैसे प्रयास मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में कितने प्रभावी हो सकते हैं।

चंद्रपुर में बाघों की बढ़ती संख्या ने पिछले कुछ सालों में मानव-वन्यजीव संघर्ष को और गंभीर बना दिया है। ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व और ब्रह्मपुरी वन क्षेत्र में बाघों की आबादी तेजी से बढ़ी है। 2022 में यहाँ 248 बाघ थे, जो अब 250 से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन यह सफलता अपने साथ चुनौतियाँ भी लाई है। खेतों में काम करने वाले मजदूर, जंगल से लकड़ी या महुआ इकट्ठा करने वाले ग्रामीण, और अनजाने में बाघों के करीब चले जाने वाले लोग अक्सर इन हमलों का शिकार बनते हैं। इस बार का मामला खास इसलिए था, क्योंकि टीएटीआर 224 ने लगातार और तेजी से हमले किए, जिसने पूरे जिले को हिलाकर रख दिया।

इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठाया कि इंसान और वन्यजीव एक साथ कैसे रह सकते हैं। चंद्रपुर के गाँवों में लोग अपनी आजीविका के लिए जंगल पर निर्भर हैं। महुआ के फूल, तendu पत्तियाँ, और खेती-बाड़ी यहाँ के लोगों की जिंदगी का हिस्सा हैं। लेकिन बाघों की मौजूदगी ने इन रोजमर्रा के कामों को खतरनाक बना दिया है। आदमखोर बाघ (Maneater Tiger) जैसे मामले तब सामने आते हैं, जब बाघ अपने प्राकृतिक शिकार को छोड़कर इंसानों पर हमला करने लगते हैं। वन विभाग ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे कि जंगल में पानी और शिकार की व्यवस्था करना, ताकि बाघ गाँवों की ओर न आएँ। लेकिन फिर भी, ऐसे हमले रुक नहीं रहे।

ब्रह्मपुरी वन विभाग बचाव (Brahmapuri Forest Department Rescue) की इस कार्रवाई ने लोगों में भरोसा जगाया है। गाँव वालों ने वन विभाग की तारीफ की, क्योंकि इस ऑपरेशन ने न केवल बाघ को पकड़ा, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि किसी और की जान न जाए। लेकिन यह घटना एक चेतावनी भी है। चंद्रपुर जैसे क्षेत्रों में, जहाँ जंगल और गाँव एक-दूसरे से सटे हुए हैं, मानव-वन्यजीव संघर्ष को पूरी तरह रोकना आसान नहीं है। इस ऑपरेशन ने दिखाया कि सही समय पर सही कदम उठाकर नुकसान को कम किया जा सकता है।

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