Marathwada Farmer Suicide: महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र, जहां खेतों की हरियाली और किसानों की मेहनत इसकी पहचान है, आज एक दुखद सच्चाई की वजह से सुर्खियों में है। इस साल जनवरी से जून 2025 तक, मराठवाड़ा के आठ जिलों में 520 किसानों ने आत्महत्या कर ली। ये आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 20 प्रतिशत ज्यादा है, जब इसी अवधि में 430 किसानों ने अपनी जान गंवाई थी। सबसे ज्यादा दुख की बात ये है कि बीड जिला इस त्रासदी का सबसे बड़ा गवाह बना, जहां 126 किसानों ने जीवन समाप्त कर लिया। ये किसान आत्महत्या के आंकड़े न सिर्फ दिल दहलाने वाले हैं, बल्कि हमारे सिस्टम और नीतियों पर भी सवाल उठाते हैं।
मराठवाड़ा, जहां औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, परभणी और धाराशिव जैसे जिले शामिल हैं, लंबे समय से सूखे और अनियमित बारिश की मार झेल रहा है। इस साल की शुरुआत से जून तक, बीड में 126, छत्रपति संभाजीनगर में 92, नांदेड़ में 74, परभणी में 64, धाराशिव में 63, लातूर में 38, जालना में 32 और हिंगोली में 31 किसानों ने आत्महत्या की। खास बात ये है कि बीड में ये आंकड़ा पिछले साल के 101 मामलों से काफी ज्यादा है। हर 30 घंटे में एक किसान की जान जाने की खबर ने पूरे क्षेत्र को हिलाकर रख दिया है।
किसानों की इस हालत के पीछे कई वजहें हैं। कर्ज का बोझ, फसलों का उचित दाम न मिलना, सूखा, और बारिश की अनिश्चितता ने उनकी जिंदगी को और मुश्किल बना दिया है। कई किसान बैंकों और साहूकारों से लिए कर्ज को चुकाने में असमर्थ हो रहे हैं। मराठवाड़ा किसान आत्महत्या के मामलों में कर्ज एक बड़ी वजह बनकर उभरा है। सरकार ने इन हालात से निपटने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे फसल नुकसान पर मुआवजा और पीएम किसान सम्मान निधि, लेकिन ये योजनाएं जमीन पर उतनी कारगर साबित नहीं हो रही हैं। इस साल 313 मामलों में से 264 परिवारों को मुआवजा मिल चुका है, लेकिन 146 मामले अभी भी जांच के दायरे में हैं। वहीं, 61 मामले मुआवजे के लिए अयोग्य पाए गए, जो पिछले साल के 20 मामलों से तीन गुना ज्यादा है।
बीड जिला, जो मराठवाड़ा का हिस्सा है, किसान आत्महत्या का केंद्र बन गया है। यहां की मिट्टी में मेहनत की कहानियां बसी हैं, लेकिन आज वही मिट्टी किसानों के आंसुओं से गीली हो रही है। एक तरफ सूखे की मार, तो दूसरी तरफ कर्ज का पहाड़। किसानों की फसलें बार-बार बर्बाद हो रही हैं, और बाजार में उनकी उपज को सही कीमत नहीं मिल रही। कुछ किसानों ने बताया कि खेती में लागत इतनी ज्यादा है कि मुनाफा तो दूर, कर्ज चुकाने के लिए भी पैसे नहीं बचते। बीड में इस साल जनवरी से मार्च तक 71 किसानों ने आत्महत्या की, जो पिछले साल की तुलना में 27 ज्यादा है।
मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला नया नहीं है। साल 2001 से अब तक इस क्षेत्र में 10,431 किसानों ने अपनी जान गंवाई है। ये आंकड़ा डिविजनल कमिश्नरेट के रिकॉर्ड से सामने आया है। पहले जुलाई से अक्टूबर के बीच आत्महत्या के मामले ज्यादा होते थे, लेकिन अब ये पैटर्न बदल गया है। अब दिसंबर से जून के बीच ये मामले बढ़ रहे हैं। इसका मतलब है कि किसानों का संकट साल भर बना रहता है।
राज्य के राजस्व विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, मराठवाड़ा किसान आत्महत्या के मामले में बीड सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है। यहां के किसान न सिर्फ प्रकृति की मार झेल रहे हैं, बल्कि नीतियों की कमी और बाजार की अनदेखी ने भी उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सरकार ने मुआवजे और कर्जमाफी की बात तो की, लेकिन कई किसानों तक ये मदद समय पर नहीं पहुंच पाती। मराठवाड़ा में इस साल की पहली छमाही में 520 किसानों की आत्महत्या ने ये साफ कर दिया है कि ये संकट अब और गहरा हो चुका है।
किसानों की ये त्रासदी सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है। हर आत्महत्या के पीछे एक उजड़ा हुआ परिवार, टूटी हुई उम्मीदें और अनगिनत सपने हैं। बीड के एक किसान के बेटे ने बताया कि उनके पिता ने कर्ज और सूखे फसलों की वजह से अपनी जान दे दी। उनके पास सिर्फ डेढ़ एकड़ जमीन थी, और उसमें भी बारिश ने साथ नहीं दिया। ऐसे में कर्ज का बोझ और परिवार का खर्च उठाना उनके लिए असंभव हो गया। मराठवाड़ा के इन किसानों की कहानी हर उस शख्स को झकझोर देती है, जो इन आंकड़ों के पीछे की हकीकत को समझता है।
#FarmerSuicide #MarathwadaCrisis #MaharashtraNews #AgriculturalCrisis #BeedDistrict
ये भी पढ़ें: Kabutar Khana: कबूतर खाना मुंबई में बंद करने के फैसले पर PETA का हंगामा, जानिए क्यों!





























