Mithi River Scam: मुंबई की मिठी नदी, जो शहर के लिए एक महत्वपूर्ण जल निकासी प्रणाली है, हाल ही में एक बड़े घोटाले की वजह से चर्चा में आई है। इस घोटाले ने न केवल बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि आम लोगों के विश्वास को भी हिलाकर रख दिया है। आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) की जांच ने इस मामले में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं, जिसमें बीएमसी के इंजीनियर प्रशांत रमुगड़े और ठेकेदार भूपेंद्र पुरोहित मुख्य आरोपी के रूप में सामने आए हैं। इस घोटाले की राशि 65 करोड़ रुपये बताई जा रही है, और इसे अंजाम देने के लिए फर्जी डिसिल्टिंग और फ्रंट कंपनियों का सहारा लिया गया। इस लेख में हम इस घोटाले की पूरी कहानी को सरल और आकर्षक तरीके से समझेंगे, जिसमें मुख्य कीफ्रेज़ “मिठी नदी घोटाला” (Mithi River Scam) और “फर्जी डिसिल्टिंग धोखाधड़ी” (Fake Desilting Fraud) शामिल हैं।
मिठी नदी की सफाई का काम मुंबई के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह नदी शहर की बाढ़ रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हर साल मानसून से पहले नदी की डिसिल्टिंग का काम शुरू होता है, ताकि बारिश का पानी आसानी से समुद्र तक पहुंच सके। लेकिन ईओडब्ल्यू की जांच से पता चला है कि इस सफाई के नाम पर बड़ा खेल खेला गया। प्रशांत रमुगड़े, जो बीएमसी के एक वरिष्ठ इंजीनियर हैं, ने कथित तौर पर अपने करीबी सहयोगी सारीका कामदार को आगे रखकर ठेकेदार भूपेंद्र पुरोहित की कंपनी ग्रुप वन सॉल्यूशंस में साझेदारी की। इस कंपनी को मिठी नदी की सफाई के लिए मशीनों के रखरखाव का ठेका दिया गया था। लेकिन हकीकत यह थी कि यह ठेका रमुगड़े ने खुद पुरोहित को फायदा पहुंचाने के लिए दिया।
जांच में यह भी सामने आया कि पुरोहित ने अपनी पत्नी किरण को कंपनी में साझेदार बनाया, जबकि रमुगड़े ने सारीका कामदार को। लेकिन पर्दे के पीछे सारी कमान रमुगड़े और पुरोहित के हाथों में थी। यह दोनों मिलकर मिठी नदी घोटाला (Mithi River Scam) को अंजाम दे रहे थे। नदी की डिसिल्टिंग के नाम पर कोई काम नहीं हुआ। इसके बजाय, ठेकेदार निजी बिल्डरों से निर्माण कचरा इकट्ठा करते थे और उस पर गाद की पतली परत चढ़ाकर डंप ट्रकों में ले जाते थे। यह सब कुछ इस तरह किया जाता था कि बाहर से लगे कि नदी की सफाई हो रही है। लेकिन हकीकत में नदी की गाद हटाने का कोई काम नहीं हुआ, और बीएमसी को फर्जी बिल देकर लाखों रुपये का भुगतान लिया गया। यह एक सुनियोजित फर्जी डिसिल्टिंग धोखाधड़ी (Fake Desilting Fraud) थी।
ईओडब्ल्यू ने यह भी पाया कि रमुगड़े ने पुरोहित की चार कंपनियों—त्रिदेव, तनिषा, एमबी ब्रदर्स और डीबी—को बार-बार बीएमसी के ठेके दिलवाए। इन ठेकों की शर्तें इस तरह बनाई गई थीं कि केवल पुरोहित की कंपनियां ही योग्य ठहरें। यह एक सोची-समझी साजिश थी, जिसमें नदी की सफाई के नाम पर जनता के पैसे का दुरुपयोग किया गया। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि फरवरी 2021 में मिठी नदी की सफाई के लिए चार टेंडर जारी किए गए थे, जिनमें कम से कम आठ डिसिल्टिंग मशीनों की जरूरत थी। लेकिन जून 2021 तक एक भी मशीन का इस्तेमाल नहीं हुआ। फिर फरवरी 2022 में छह टेंडर जारी किए गए, जिनमें 12 मशीनों की जरूरत थी, लेकिन फिर भी कोई मशीन इस्तेमाल नहीं हुई। इसके बावजूद, इन कंपनियों को लगातार भुगतान किया जाता रहा।
2022-23 में नए टेंडर जारी किए गए, लेकिन इस बार भी मशीनों का उपयोग नहीं हुआ। एक कंपनी, मैटप्रॉप, ने कथित तौर पर पुरोहित की फर्म को मशीनें बेचीं, ताकि वह टेंडर की पात्रता शर्तों को पूरा कर सके। यह सब कुछ ठेके हासिल करने की प्रक्रिया को हेरफेर करने के लिए किया गया। इस तरह, मिठी नदी घोटाला (Mithi River Scam) ने न केवल बीएमसी की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाई, बल्कि मुंबई की बाढ़ रोकथाम की तैयारियों को भी कमजोर किया।
यह घोटाला सिर्फ पैसे की बर्बादी की कहानी नहीं है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे कुछ लोग अपने निजी फायदे के लिए सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं। मिठी नदी की सफाई का काम, जो शहर के लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी है, इस फर्जी डिसिल्टिंग धोखाधड़ी (Fake Desilting Fraud) की वजह से प्रभावित हुआ। ईओडब्ल्यू की जांच अभी जारी है, और इस मामले में और भी बड़े खुलासे होने की उम्मीद है।
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