प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान ने कर्नाटक की राजनीतिक गतिविधियों पर नए सिरे से बहस छेड़ दी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रज्ञा रेवन्ना जैसे व्यक्तियों के लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई जानी चाहिए। यह बयान उनके द्वारा कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर लगाए गए आरोपों के बाद आया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया कि कर्नाटक सरकार ने जनता दल (सेक्युलर) के सांसद को देश से बाहर जाने दिया और वोक्कालिगा बहुल क्षेत्र में चुनाव पूरा होने के बाद आपत्तिजनक सेक्स वीडियो जारी किए गए। उन्होंने इस पूरी घटना को बेहद संदिग्धपूर्ण बताया और कहा कि अगर राज्य सरकार के पास पहले से ही जानकारी थी, तो उसे हवाई अड्डे पर सतर्क रहना चाहिए था।
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस तरह के ‘खेल’ बंद होने चाहिए और किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई जानी चाहिए और उपलब्ध सभी कानूनी विकल्पों का उपयोग करके उन्हें कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
यह पूरा मामला और प्रधानमंत्री के आरोप राजनीतिक गलियारों में गरमाहट ला रहे हैं। इससे राजनीतिक दलों, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच तनाव बढ़ गया है। ऐसे आरोपों और बयानों से न केवल राजनीतिक दलों बल्कि आम जनता के बीच भी विभिन्न प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।
कुछ लोग प्रधानमंत्री के रुख का समर्थन कर रहे हैं और मानते हैं कि गंभीर अपराधों के मामले में ‘जीरो टॉलरेंस’ की आवश्यकता है। दूसरी ओर, विपक्ष इसे राजनीतिक हमले के रूप में देख रहा है और आरोप लगा रहा है कि केंद्र सरकार राज्य सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रही है।
इस पूरे मामले ने एक बार फिर राजनीति और नैतिकता के बीच के संबंधों पर गहरी बहस छेड़ दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है और इस घटनाक्रम का राजनीतिक परिदृश्य पर क्या असर पड़ता है।