Mohan Bhagwat on Pahalgam: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस दुखद घटना में 26 पर्यटकों की जान चली गई, और देश में आक्रोश की लहर दौड़ पड़ी। इस संकट की घड़ी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मुंबई में एक कार्यक्रम में देशवासियों को संबोधित किया। उनका भाषण राष्ट्रीय एकता (National Unity) और सांस्कृतिक पहचान (Cultural Identity) पर केंद्रित था, जिसमें उन्होंने आतंकवाद, हिंसा, संगठन शक्ति और भारतीय तिरंगे में धर्म चक्र के महत्व पर गहरे विचार साझा किए।
आतंकवाद: रावण जैसी मानसिकता का अंत जरूरी
मोहन भागवत ने पहलगाम हमले को इंसानियत के खिलाफ एक जघन्य अपराध बताया। उन्होंने कहा कि आतंकवादी धर्म पूछकर निर्दोष लोगों को मार रहे हैं, जो पूरी तरह अमानवीय है। उनके शब्दों में, “एक सच्चा हिंदू कभी ऐसा काम नहीं करता। यह लड़ाई धर्म और अधर्म के बीच है।” भागवत ने आतंकवादियों की तुलना रावण से की और कहा कि जैसे भगवान राम ने रावण को सुधरने का मौका दिया, लेकिन जब वह नहीं माना, तो उसका अंत किया, वैसे ही आतंकवादियों को अब राम जैसा जवाब देना होगा।
उन्होंने युवाओं को समझाया कि आतंकवाद सिर्फ बंदूक से नहीं आता। यह एक मानसिकता है, जो समाज को बांटने और कमजोर करने की कोशिश करती है। भागवत ने डेमोग्राफिक बदलाव को भी एक “मौन युद्ध” बताया, जिसके प्रति समाज को जागरूक होने की जरूरत है। उनके इस बयान ने नई पीढ़ी को यह सोचने पर मजबूर किया कि देश की सुरक्षा सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि सामाजिक एकता में भी छिपी है।
हिंसा के खिलाफ मजबूत अहिंसा की वकालत
भागवत ने अपने भाषण में हिंसा के प्रति RSS का स्पष्ट रुख दोहराया। उन्होंने कहा, “हिंसा हमारे स्वभाव में नहीं है, लेकिन चुपचाप सहना भी सही नहीं।” उनके अनुसार, सच्ची अहिंसा वही है, जो ताकत के साथ हो। एक कमजोर व्यक्ति की अहिंसा को दुनिया नहीं सुनती, लेकिन एक मजबूत इंसान की अहिंसा दुनिया को बदल सकती है। यह संदेश नई पीढ़ी के लिए खासतौर पर प्रेरक है, जो अक्सर शांति और ताकत के बीच संतुलन खोजती है।
उन्होंने एक उदाहरण के जरिए समझाया कि जैसे एक बकरी को यज्ञ में बलि के लिए चुना जाता है क्योंकि वह कमजोर होती है, वहीँ घोड़ा, हाथी या शेर को कोई छूने की हिम्मत नहीं करता। यह तुलना देशवासियों को एकजुट और संगठित होने का संदेश देती है। भागवत का यह विचार न केवल आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करता है, बल्कि युवाओं को व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर सशक्त होने के लिए प्रेरित भी करता है।
संगठन शक्ति: एकता में ही बल
मोहन भागवत ने संगठन शक्ति (Organization Strength) को देश की सबसे बड़ी ताकत बताया। उन्होंने कहा कि अगर हम धर्म, जाति और भाषा से ऊपर उठकर एकजुट रहें, तो कोई भी दुश्मन हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। उनके शब्द थे, “अगर हम एक रहेंगे, तो कोई हमारी तरफ आंख उठाकर नहीं देखेगा, और जो देखेगा, उसकी आंखें निकाल दी जाएंगी।” यह बयान नई पीढ़ी को सामूहिक शक्ति की अहमियत समझाता है।
भागवत ने RSS के स्वयंसेवकों का उदाहरण दिया, जो समाज में सद्भाव, पर्यावरण जागरूकता और स्वदेशी मूल्यों को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे संगठित होकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाएं। यह संदेश आज के समय में खासतौर पर प्रासंगिक है, जब सोशल मीडिया और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं समाज को बांटने का काम कर रही हैं। भागवत का यह विचार नई पीढ़ी को एकजुट होकर देश के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।
धर्म चक्र: तिरंगे का गहरा संदेश
भागवत के भाषण के बाद RSS के संयुक्त महासचिव मनमोहन वैद्य ने एक अन्य कार्यक्रम में तिरंगे में बने धर्म चक्र (Dharma Chakra) के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत विविधताओं का देश है, लेकिन हमारी संस्कृति एक है। तिरंगे का धर्म चक्र हमारे देश के मूल सिद्धांतों का प्रतीक है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को दर्शाता है। वैद्य ने बताया कि “धर्म” का मतलब सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, बल्कि वह जीवन शैली है, जो समाज को जोड़ती है और प्रगति की ओर ले जाती है।
उन्होंने यह भी कहा कि धर्म चक्र का उपयोग सुप्रीम कोर्ट, लोकसभा और राज्यसभा जैसे महत्वपूर्ण स्थानों में होता है, जो भारत की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है। यह संदेश नई पीढ़ी को यह समझाने में मदद करता है कि हमारी विविधता ही हमारी ताकत है, और राष्ट्रीय एकता इसे और मजबूत बनाती है। वैद्य के इस बयान ने युवाओं को अपने देश के प्रतीकों के गहरे अर्थ को समझने और उसका सम्मान करने के लिए प्रेरित किया।
सांस्कृतिक पहचान और नई पीढ़ी की भूमिका
मोहन भागवत ने अपने भाषण में यह भी जोर दिया कि भारत की सांस्कृतिक पहचान (Cultural Identity) सिर्फ अतीत की कहानियों में नहीं, बल्कि वर्तमान की एकता में है। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे अपनी संस्कृति को समझें और उसे दुनिया के सामने पेश करें। उनके अनुसार, भारत का धर्म और संस्कृति पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है, जो शांति और समृद्धि का रास्ता दिखा सकती है।
भागवत ने यह भी कहा कि आतंकवाद और हिंसा का जवाब सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि एकजुट समाज और मजबूत संस्कृति से भी दिया जा सकता है। यह संदेश नई पीढ़ी के लिए एक आह्वान है कि वे अपनी जड़ों से जुड़ें और देश की प्रगति में योगदान दें। उनके शब्दों ने यह स्पष्ट किया कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है, और इसे संरक्षित करने की जिम्मेदारी आज के युवाओं पर है।
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