क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे भारत के बच्चे, जो भारत का भविष्य हैं, किस कदर कुपोषण की चपेट में हैं? जून 2025 के पोषण ट्रैकर के आंकड़े दिल दहला देने वाले हैं। एक ऐसा राज्य, जहां 68.12% बच्चे बौनेपन का शिकार हैं, और ये केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि लाखों बच्चों की जिंदगी की सच्चाई है। ये खबर सुनकर आपका दिल भी पसीज उठेगा, क्योंकि ये कहानी हमारे देश के भविष्य की है, जो कुपोषण की मार झेल रहा है।
बौनेपन का दंश: एक चुपके से फैलती महामारी
कुपोषण, जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को ठप कर देता है, भारत के कई हिस्सों में चुपके से अपनी जड़ें जमा रहा है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 0-6 साल की उम्र के 8.19 करोड़ बच्चों में से 35.91% बच्चे बौनेपन से जूझ रहे हैं, जबकि 16.5% बच्चों का वजन सामान्य से कम है। और अगर हम पांच साल से कम उम्र के बच्चों की बात करें, तो यह आंकड़ा और भी भयावह है – 37.07% बच्चे बौनेपन का शिकार हैं। यह आंकड़े केवल संख्या नहीं, बल्कि उन मासूमों की कहानी हैं, जिनका बचपन कुपोषण की भेंट चढ़ रहा है।
सबसे ज्यादा प्रभावित जिले: कहां जल रही है आग?
क्या आप जानते हैं कि भारत के कुछ जिले इस त्रासदी का सबसे ज्यादा दंश झेल रहे हैं? महाराष्ट्र का नंदुरबार जिला इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां 68.12% बच्चे बौनेपन से ग्रस्त हैं। इसके बाद झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम (66.27%), उत्तर प्रदेश का चित्रकूट (59.48%), मध्य प्रदेश का शिवपुरी (58.20%), और असम का बोंगाईगांव (54.76%) जैसे जिले हैं। उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे गंभीर है, जहां 34 जिलों में बौनेपन का स्तर 50% से अधिक है। मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और असम भी इस दुखद सूची में शामिल हैं।
कम वजन की समस्या: एक और चिंता
बौनेपन के साथ-साथ कम वजन की समस्या भी बच्चों को जकड़ रही है। नंदुरबार में 48.26% बच्चे कम वजन के हैं, जो देश में सबसे अधिक है। मध्य प्रदेश के धार (42%), खरगोन (36.19%), बड़वानी (36.04%), गुजरात के डांग (37.20%), डूंगरपुर (35.04%), और छत्तीसगढ़ के सुकमा (34.76%) जैसे जिले भी इस संकट से जूझ रहे हैं। यह स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने बच्चों को क्या दे रहे हैं?
कुपोषण की जड़ें: क्यों हो रही है यह त्रासदी?
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, दीर्घकालिक या बार-बार होने वाला कुपोषण बौनेपन का प्रमुख कारण है। यह केवल भोजन की कमी नहीं, बल्कि पौष्टिक आहार की अनुपस्थिति और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का नतीजा है। हालांकि, पिछले 19 वर्षों में बौनेपन की औसत दर 42.4% से घटकर 29.4% हुई है, लेकिन कुछ जिलों में यह स्तर अभी भी चिंताजनक है।
एक उम्मीद की किरण
यह सच्चाई दुखद है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम हार मान लें। आंगनवाड़ियों और पोषण ट्रैकर जैसे प्रयास बच्चों की स्थिति को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। हमें चाहिए कि हम सब मिलकर इस दिशा में कदम उठाएं। हर बच्चे को पौष्टिक भोजन, स्वच्छ पानी, और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें, ताकि हमारा भविष्य सुरक्षित हो।
आइए, इस त्रासदी को खत्म करने का संकल्प लें। अपने आसपास के बच्चों की मदद करें, उनकी आवाज बनें, और सरकार से बेहतर नीतियों की मांग करें। क्योंकि हर बच्चा अनमोल है, और उनका स्वस्थ भविष्य हमारी जिम्मेदारी है।
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