Mosque Loudspeaker Case: मुंबई के पांच मस्जिदों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने पुलिस और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) द्वारा लाउडस्पीकर हटाने और उनके लाइसेंस रद्द करने या नवीनीकरण न करने की कार्रवाई को चुनौती दी है। मंगलवार को इस मामले में कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार, मुंबई पुलिस और MPCB को नोटिस जारी किया। यह घटना शहर में ध्वनि प्रदूषण नियमों (noise pollution rules, ध्वनि प्रदूषण नियम) के उल्लंघन को लेकर चल रही कार्रवाई का हिस्सा है, जिसने धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के उपयोग को लेकर बहस छेड़ दी है।
अंजुमन इत्तेहाद ओ तरक्की मदीना जामा मस्जिद और चार अन्य मस्जिदों की ओर से दायर इस याचिका पर जस्टिस रविंद्र घुगे और जस्टिस मिलिंद साठे की खंडपीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने सभी पक्षों से 9 जुलाई तक जवाब मांगा है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस ने मुस्लिम धार्मिक स्थलों, खासकर मस्जिदों और दरगाहों को चुनिंदा तरीके से निशाना बनाया है। याचिका में कहा गया कि पुलिस ने पूरे शहर में मस्जिदों और दरगाहों के खिलाफ अभियान शुरू किया है, जिसे वे धार्मिक भेदभाव का उदाहरण मानते हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अज़ान इस्लाम का एक अभिन्न हिस्सा है और मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहर में लाउडस्पीकर का उपयोग आवश्यक है। उन्होंने दावा किया कि पुलिस की कार्रवाई संविधान में दिए गए धर्म के पालन के अधिकार का उल्लंघन करती है। इसके अलावा, उन्होंने 11 अप्रैल 2025 को महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADG) द्वारा जारी एक सर्कुलर को भी चुनौती दी है। इस सर्कुलर में मस्जिदों के लाइसेंस नवीनीकरण के लिए जमीन के मालिकाना हक और संरचनात्मक वैधता जैसे विवरण मांगे गए हैं, जिन्हें याचिकाकर्ताओं ने “अनावश्यक” और “निजता का उल्लंघन” बताया।
याचिका में यह भी कहा गया कि पुलिस द्वारा जारी नोटिस में ध्वनि प्रदूषण नियम 2000 के उल्लंघन के लिए तारीख, समय या डेसिबल माप जैसे महत्वपूर्ण विवरण शामिल नहीं हैं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यह कार्रवाई कुछ राजनीतिक हितों के इशारे पर की जा रही है और इसमें छिपा हुआ उद्देश्य है। उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ मुच्छाला और अधिवक्ता मुबिन सोलकर ने तर्क दिया कि यह अभियान मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने का एक उदाहरण है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
पिछले हफ्ते, मुंबई पुलिस आयुक्त देवेन भारती ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि किसी विशेष समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया है। उन्होंने दावा किया कि पुलिस सभी धार्मिक स्थलों पर ध्वनि प्रदूषण नियमों (loudspeaker crackdown, लाउडस्पीकर कार्रवाई) का पालन कराने के लिए निष्पक्ष रूप से काम कर रही है। यह मामला जनवरी 2025 के बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश से जुड़ा है, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और सभी धार्मिक स्थलों को ध्वनि प्रदूषण नियमों का सख्ती से पालन करना होगा।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के 2005 के ध्वनि प्रदूषण से संबंधित फैसले के आधार पर स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करे। यह मामला न केवल धार्मिक स्वतंत्रता और ध्वनि प्रदूषण के बीच संतुलन को लेकर चर्चा में है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि शहर में सभी समुदायों के लिए समान नियम लागू करने की चुनौती कितनी जटिल है।
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