मुंबई, जो देश की आर्थिक राजधानी और न्याय का गढ़ है, एक बार फिर बम की धमकी से दहल उठी। शुक्रवार को मुंबई हाई कोर्ट को मिली बम की धमकी ने प्रशासन को हाई अलर्ट पर ला दिया। मुंबई पुलिस, एटीएस, और डॉग स्क्वाड की टीमें तुरंत हरकत में आईं और परिसर की बारीकी से जांच शुरू की। हालांकि, गहन तलाशी के बाद कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली, लेकिन ये घटना सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती है। ये दूसरी बार है जब हाल के दिनों में हाई कोर्ट को निशाना बनाया गया, जिसने जांच एजेंसियों की नींद उड़ा दी है।
धमकी की खबर मिलते ही मुंबई पुलिस ने हाई कोर्ट परिसर की सुरक्षा को और कड़ा कर दिया। हर गलियारे, हर कोने की तलाशी ली गई। डॉग स्क्वाड ने भी संदिग्ध गतिविधियों की जांच की, लेकिन कोई खतरा नहीं पाया गया। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, ये घटना 12 सितंबर को मिली एक ऐसी ही धमकी के बाद हुई, जब परिसर को खाली करवाकर बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया गया था। उस बार भी कोई खतरा नहीं मिला, लेकिन लगातार बढ़ती धमकियां सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौती बन रही हैं।
देशभर में फर्जी धमकियों का सिलसिला
ये सिर्फ मुंबई की कहानी नहीं है। हाल के महीनों में दिल्ली, गुजरात, और अन्य हाई कोर्ट्स को भी ऐसी फर्जी धमकियां मिल चुकी हैं। इस सप्ताह की शुरुआत में गुजरात हाई कोर्ट को ई-मेल के जरिए बम की धमकी मिली थी, जो बाद में फर्जी साबित हुई। ये इस साल जून के बाद गुजरात हाई कोर्ट को मिली तीसरी ऐसी धमकी थी। विशेषज्ञों का मानना है कि इन फर्जी कॉल्स का मकसद प्रशासन को परेशान करना और न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालना हो सकता है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर इन धमकियों के पीछे का स्रोत कौन है?
जांच में जुटी एजेंसियां
मुंबई पुलिस और एटीएस अब इस मामले की गहराई से जांच कर रही हैं। साइबर विशेषज्ञों की मदद से धमकी के स्रोत को ट्रैक करने की कोशिश की जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि हाई कोर्ट जैसे संवेदनशील स्थानों की सुरक्षा को और मजबूत करने की जरूरत है। इलेक्ट्रॉनिक निगरानी बढ़ाने और तकनीकी ट्रैकिंग पर जोर दिया जा रहा है। साथ ही, ये सुनिश्चित करने की कोशिश हो रही है कि ऐसी घटनाओं से जनता में दहशत न फैले।
भले ही धमकियां फर्जी हों, लेकिन यहां गौर फरमाने वाली बात है कि फर्जी धमकियां भले ही तत्काल खतरा न बनें, लेकिन ये प्रशासन और जनता के बीच भय का माहौल पैदा करती हैं। मुंबई हाई कोर्ट जैसी संस्थाएं देश की न्याय व्यवस्था का आधार हैं, और इन्हें निशाना बनाना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि लोकतंत्र पर भी हमला है।
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