महाराष्ट्र

नक्सलवाद की टूटी रीढ़: गढ़चिरौली में सीनियर कमांडर सोनू ने 60 साथियों संग किया सरेंडर

घने जंगलों की छांव में छिपी बंदूकों की गूंज अब थमने लगी है! महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सलवाद को अब तक का सबसे बड़ा झटका लगा, जब वरिष्ठ माओवादी कमांडर मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू उर्फ भूपति ने अपने 60 साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। ये नजारा दिल जीत लेने वाला है। एक तरफ हिंसा का दौर खत्म होने की खुशी, दूसरी तरफ उन परिवारों की आंसू भरी राहत, जो सालों से अपने प्रियजनों को खोने के डर में जी रहे थे। पुलिस और सरकार ने इसे ‘बड़ी सफलता’ बताया, जो शांति की नई सुबह का संकेत है। क्या ये नक्सलवाद के अंत की शुरुआत है? आइए जानते हैं पूरी दास्तान…

सरेंडर का रोमांचक पल
कल देर रात गढ़चिरौली के दक्षिणी इलाके के घने जंगलों में एक गुप्त जगह पर ये ऐतिहासिक घटना हुई। सोनू, जो माओवादी संगठन की केंद्रीय कमेटी और पोलित ब्यूरो का सदस्य था, ने 60 माओवादी साथियों के साथ पुलिस के सामने हथियार डाले। इनमें 10 DVCM (डिवीजनल कमेटी मेंबर) रैंक के कमांडर भी शामिल हैं। वो लोग जो इलाके में आतंक का पर्याय थे। कल्पना कीजिए, सालों की भागदौड़, छिपकर लड़ाई और अब मुख्यधारा में वापसी! ये सरेंडर मई में माओवादी जनरल सेक्रेटरी नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू के एनकाउंटर के बाद की कड़ी है, जिसने दंडकारण्य इलाके में नक्सलियों की रीढ़ तोड़ दी।

सोनू की आंखों में शायद पछतावा झलक रहा होगा, जब उसने हथियार रखे। पिछले दिनों उसने प्रेस नोट जारी कर सशस्त्र संघर्ष छोड़ने और शांति वार्ता की अपील की थी। गढ़चिरौली डिवीजन, उत्तर बस्तर और माड़ डिवीजन के कमांडरों ने भी समर्थन दिया, जिससे सरेंडर की अफवाहें उड़ने लगीं। सितंबर में ही सोनू ने हथियार डालने का इरादा जाहिर किया था। पुलिस की लगातार मुहिम में छापेमारी, विकास योजनाएं और सरेंडर पॉलिसी ने ये चमत्कार कर दिखाया।

नक्सलियों की कमजोरी उजागर
महाराष्ट्र पुलिस के डीजी ने कहा, “ये हमारे अभियानों की जीत है। सोनू जैसे वरिष्ठ नेता का सरेंडर माओवादी संगठन को अंदर से खोखला कर देगा।” आंकड़े चौंकाने वाले हैं, गढ़चिरौली में पिछले पांच सालों में 200 से ज्यादा नक्सली सरेंडर कर चुके हैं, लेकिन 60 का ये ग्रुप रिकॉर्ड है। इससे इलाके में माओवादी गतिविधियां थमेंगी, एनकाउंटर कम होंगे और आदिवासी इलाकों में स्कूल, अस्पताल जैसा विकास पहुंचेगा। आसपास के राज्यों छत्तीसगढ़, तेलंगाना में भी असर पड़ेगा, क्योंकि दंडकारण्य नक्सल बेल्ट की रीढ़ है।

भावुक अपील
ये पल उन माओं के लिए खुशी की लहर है, जिनके बेटे जंगलों में भटक रहे थे। सोनू की वापसी बताती है कि बंदूक से नहीं, बातचीत से बदलाव आता है। सरकार की सरेंडर नीति (पुनर्वास, नौकरी, सुरक्षा) ने दिल जीते। लेकिन सवाल बाकी है, क्या बाकी नक्सली भी मुख्य धारा में आएंगे? पुलिस उम्मीद करती है कि इससे शांति बहाल होगी, आदिवासी भाई-बहन मुख्यधारा में आएंगे।

दोस्तों, ये घटना उम्मीद जगाती है। नक्सलवाद ने हजारों जिंदगियां छीनीं, लेकिन अब मोड़ आया है। सरेंडर करने वालों को नई जिंदगी की शुभकामनाएं। जागरूकता फैलाएं, शांति का संदेश पहुंचाएं।

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